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युवाओं के दिल टूटने पर सरकार ने बढ़ाया मदद का हाथ

न्‍यूजीलैंड सरकार की यह नई पहल देश के उत्‍पादक श्रम और जीडीपी को बेहतर बनाने की दिशा में उठा कदम है.

युवाओं के दिल टूटने पर सरकार ने बढ़ाया मदद का हाथ

Friday March 24, 2023 , 5 min Read

1- पूरी दुनिया में 10 से 19 आयु वर्ष के 14 फीसदी किशोर और युवा गंभीर अवसाद और डिप्रेशन के शिकार हैं.

2- 15 से 29 आयु वर्ष के लोगों की मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण पूरी दुनिया में आत्‍महत्‍या है.

3- पूरी दुनिया पर मेंटल हेल्‍थ पर मंडरा रहे खतरे का 13 फीसदी बोझ अकेले युवाओं के कंधों पर है.

4- पिछले डेढ़ दशक में यह खतरा 29 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है.

ये सारे आंकड़े विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के हैं, जो साफतौर पर यह इशारा कर रहे हैं कि युवाओं का मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, उनके जीवन के सबसे रचनात्‍मक और उत्‍पादक वर्ष और यहां तक कि उनका जीवन भी खतरे में है.

युवा किसी भी देश और समाज की सबसे बड़ी पूंजी हैं. वही भविष्‍य के नागरिक हैं, राजनीतिज्ञ हैं, वैज्ञानिक हैं, लेखक-कलाकार हैं, सभ्‍यता का भविष्‍य हैं. लेकिन यदि उन युवाओं पर इस तरह का संकट मंडरा रहा हो, उनके मानसिक, भावनात्‍मक स्‍वास्‍थ्‍य को खतरा हो तो यह सिर्फ उन इंडीविजुएल्‍स पर आया संकट नहीं है. यह उस देश में मंडरा रहा संकट भी है. यह किसी भी राष्‍ट्र के लिए खतरे की घंटी है, चेतावनी का संकेत है.

शायद इसी खतरे का भांपकर न्‍यूजीलैंड ने यह कदम उठाया है. न्यूजीलैंड की सरकार ने प्रेम और संबंधों में निराश होने और ब्रेकअप के बाद भावनात्‍मक रूप से टूट जाने वाले युवाओं की काउंसिलिंग, मदद और उन्‍हें डिप्रेशन से उबारने के लिए एक कैम्पेन की शुरुआत की है. मकसद है 16 से 24 साल के युवाओं को डिप्रेशन, एंग्‍जायटी और सुसाइडल टेंडेंसी के खतरे से बचाना.

इस कैम्पेन की शुरुआत करने वाली कोई और नहीं, बल्कि मौजूदा सरकार की मंत्री प्रियंका राधाकृष्णन हैं. प्रियंका भारतीय मूल की हैं और जेसिंडा अर्दर्न के दूसरी बार चुनाव जीतकर सत्‍ता में आने पर उनकी कैबिनेट में मंत्री बनी थीं. जेंसिंडा अब सरकार में नहीं हैं, लेकिन उनके चुने हुए लोग अब भी बेहतरीन काम कर रहे हैं.   

दुनिया में अपने तरह की पहली कोशिश

न्‍यूजीलैंड इस तरह का कोई कैंपेन शुरू करने वाला दुनिया का पहला देश है. इस कैंपेन की शुरुआत के पीछे कुछ ठोस सर्वे, स्‍टडी और आंकड़े थे, जो किसी भी समझदार राष्‍ट्र के लिए चिंता का सबब होने चाहिए.

वर्ष 2022 में न्‍यूजीलैंड के  कैंटर रिसर्च ग्रुप देश के युवाओं पर एक राष्‍ट्रव्‍यापी स्‍टडी की. इस स्‍टडी के मुताबिक देश में 16 से 24 आयु वर्ष के 80 फीसदी युवा रिलेशनशिप में हैं या ब्रेकअप से गुजर रहे हैं. इस स्‍टडी में पाया गया कि 87 फीसदी युवा ब्रेकअप का शिकार होने वाले युवा किसी ने किसी रूप में अवसाद, डिप्रेशन और एंग्‍जायटी का शिकार हुए. इतना ही नहीं उनमें सुसाइडल प्रवृत्ति भी दिखाई दी. इन युवाओं ने किसी ने किसी रूप में खुद को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की.

यह आंकड़े किसी भी देश के लिए चिंताजनक हैं. आंकड़े सभी विकसित और विकासशील देशों में तकरीबन इसके आसपास ही हैं, लेकिन सभी देश इस चिंता की दिशा में कुछ कदम उठाएं, जरूरी नहीं.

फिलहाल जब यह इस स्‍टडी के डेटा न्‍यूजीलैंड की कम्‍युनिटी एंड वॉलेंटरी सेक्‍टर मिनिस्‍टर (Minister for the Community and Voluntary Sector) प्रियंका राधाकृष्‍णन के पास पहुंचा तो उन्‍होंने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने की सोची. मंत्रालय के अधीन एक नए विभाग का गठन किया गया, उसके लिए अलग से बजट निर्धारित किया गया और एक कैंपेन की शुरुआत हुई. इस कैंपेन का नाम है लव बैटर. पहले फेज में 6.4 लाख डॉलर यानी तकरीबन 53 करोड़ रुपए का बजट इस कैंपेन के लिए निर्धारित किया गया है.

इस कैंपेन के तहत डिप्रेशन और एंग्‍जायटी से जूझ रहे युवाओं की सरकार डिप्रेशन से उबरने और रचनात्‍मक ढंग से जीवन को आगे जीने में मदद करेगी. इसके लिए काउंसिलिंग, थैरेपी प्रोग्राम, क्रिएटिव ट्रेनिंग, वर्कशॉप वगैरह के जरिए युवाओं को सकारात्‍मक दिशा में सोचने और बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा.  

आज के युवा भविष्‍य के नागरिक हैं. उन्‍हें एक समझदार और परिपक्‍व मनुष्‍य के रूप में विकसित करना एक सामूहिक जिम्‍मेदारी है, जिसमें परिवार के साथ-साथ पूरे समाज और सरकार का भी योगदान होना चाहिए. न्‍यूजीलैंड की सरकार और प्रियंका राधाकृष्‍णन ने इसी दायित्‍व को समझा है, जिसे आमतौर पर पिछड़े समाज और भ्रष्‍ट सरकारें नहीं समझ पातीं.

नेशनल मेंटल हेल्‍थ सर्वे के मुताबिक भारत में 16 से 24 आयु वर्ष के 3 फीसदी युवा गंभीर अवसाद के शिकार हैं. भारत की जनसंख्‍या को देखते हुए 3 फीसदी का आंकड़ा भी कोई कम नहीं है. बहुत मुमकिन है कि इस आंकड़े में बहुत सारे वास्‍तव में मानसिक समस्‍याओं से जूझ रहे युवाओं की गिनती ही न हो पाई हो क्‍योंकि हमारे देश में मेंटल हेल्‍थ को लेकर अभी जागरूकता भी बहुत कम है.   

आज की तारीख में मेंटल हेल्‍थ एक ठोस जमीनी हकीकत है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में तकरीबन 30 फीसदी लोग किसी न किसी रूप में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या से जूझ रहे हैं. अगर मनुष्‍यों का उत्‍पादक श्रम किसी राष्‍ट्र के जीडीपी का हिस्‍सा है तो उस देश के नागरिकों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर मंडरा रहा खतरा दरअसल देश के जीडीपी पर मंडरा रहा खतरा है.     

अपने शरीर और मन की सेहत का ख्‍याल रखना सिर्फ लोगों की निजी जिम्‍मेदारी भर नहीं है. अगर आंकड़े खतरे के निशान के ऊपर चले जाएं तो संकेत साफ है कि समाज में बुनियादी तौर पर कुछ गड़बड़ है. उस गड़बड़ को देखने और ठीक किए जाने की जरूरत है.

न्‍यूजीलैंड ने ये काम किया है. बाकी देशों को भी इस दिशा में सोचना और कदम उठाना चाहिए.