कैसे NGO से ई-कॉमर्स में बदले इस बिजनेस ने महामारी के दौरान 2,300 से बढ़कर 24,000 कारीगरों तक बनाई पहुंच
टाटा केमिकल्स सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट द्वारा 2008 में ओखाई सेंटर फॉर एम्पावरमेंट लॉन्च किया गया था। टीएएस (टाटा प्रशासनिक सेवा) की पार्टिसिपेट कीर्ति पूनिया ने महसूस किया कि ओखाई द्वारा बनाए गए उत्पाद दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना डिजर्व करते हैं।
कीर्ति पूनिया का हमेशा मानना था कि ट्रैवलिंग किसी भी व्यक्ति को किसी भी कॉलेज की डिग्री या शैक्षणिक संस्थान से ज्यादा कुछ सिखा सकती है। इसी विचार ने उन्हें 2010 में जागृति यात्रा के लिए खुद को नामांकित करने के लिए प्रेरित किया। जागृति यात्रा एक 15 से 18-दिवसीय ट्रेन यात्रा है, जिसमें दुनिया में प्रभाव डालने की इच्छा रखने वाले समान विचारधारा के युवा और चेंजमेकर हिस्सा लेते हैं। कीर्ति को इस दौरान देश की लंबाई और चौड़ाई का अच्छा खासा ज्ञान हुआ। बॉम्बे से कन्याकुमारी और दिल्ली तक, उन्होंने देश के कई कोनों को कवर किया।
जब यह शानदार एडवेंचर यात्रा खत्म होने के करीब थी, तो इसका आखिरी पड़ाव मीठापुर था, जोकि गुजरात का एक छोटा सा जिला है। यहां कीर्ति हांथ से कपड़े व अन्य सामान बनाने वाली महिला कारीगरों से मिलीं।
कीर्ति याद करते हुए कहती हैं कि उस समय, वह युवा और भोली थीं, और वास्तव में उस अनुभव को पूरी तरह से भुना नहीं पाईं। वह कहती हैं, "मुझे उस समय बीच पर जाने में अधिक दिलचस्पी थी।"
लेकिन, किस्मत ने करवट ली और कीर्ति को एक मौका देने का फैसला किया, जिसने उनके जीवन को बदल दिया।
कीर्ति 2007 से टाटा ग्रुप के साथ काम कर रही थीं। बाद में उन्हें कंपनी के लीडरशिप प्रोग्राम- टाटा एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज या TAS के लिए चुना गया। काम के हिस्से के रूप में, नसीब उन्हें फिर एक बार मीठापुर की ओर खींच लाया जोकि टाटा केमिकल्स का जन्मस्थान भी है। टाटा केमिकल्स सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट (TCSRD) ने ग्रामीण महिला कारीगरों को समर्थन देने के लिए 2008 में ओखाई सेंटर फॉर एम्पावरमेंट लॉन्च किया था।
जब कीर्ति एक बार फिर से कारीगर महिलाओं से मिलीं तो उन्हें काफी सुखद अहसास हुआ। वह कहती हैं, “ये औरतें अद्भुत प्रतिभाशाली थीं। मैंने महसूस किया कि उनके उत्पाद इतने मोहक थे कि उन्हें दुनिया के सामने ले जाना चाहिए था।”
इसके अलावा, कीर्ति इस बात पर जोर देती हैं कि उन महिलाओं को अपने शिल्प पर बहुत गर्व था, इतना कि उन्हें पता था कि उन्हें काफी कुछ और करना है। कीर्ति ने फुल टाइम ओखाई की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया और ओखाई को इसके प्रमुख के रूप में ज्वाइन किया।
उनकी टाइमिंग परफेक्ट थी, क्योंकि ईकामर्स वेव ने हाल ही में देश में एंट्री मारी थी, जो इंटरनेट अर्थव्यवस्था में तेजी से बदल रही थी।
कीर्ति ने 2015 में ओखाई वेबसाइट लॉन्च की। धीरे-धीरे, उत्पादों को Tata Cliq, Amazon, Nykaa और कई अन्य प्लेटफार्मों पर सूचीबद्ध करना शुरू कर दिया।
तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। कंपनी ने 2020 के महामारी वर्ष के दौरान भी आगे बढ़ना और विस्तार करना जारी रखा, हालांकि कंपनी को सेक्टर में बड़े पैमाने पर अप्रत्याशित दुविधाओं और कठिन परिस्थिति का भी सामना करना पड़ा लेकिन ओखाई ने 2020 को किसी तरह पार किया।
सहयोग की शक्ति
जब कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया में लॉकडाउन और अपने डर व भय के जरिए ठहराव ला दिया, तो स्पष्ट रूप से हस्तकला उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। वह बताती हैं, “बिक्री शून्य हो गई, बहुत सारे ऑर्डर रद्द कर दिए गए। मुझे कई कारीगरों के बारे में पता था जिनके पास स्टॉक में लगभग 400-बेड कवर थे, लेकिन खाने के लिए टेबल पर खाना नहीं था।”
आत्महत्या करने वाले कारीगरों की भी कई मीडिया रिपोर्टें थीं, जो लॉकडाउन के दबाव से निपटने में असमर्थ थे।
कीर्ति का कहना है कि तभी एक ही क्षेत्र में काम करने वाले ओखाई जैसे कई संगठन एक साथ ऐसे समाधान के बारे में सोचने लगे, जिससे कारीगरों और उद्योग को लाभ होगा। ओखाई ने 10 ऐसे संगठनों के साथ सहयोग किया जिनमें जयपोरे (Jaypore), इतोकिरी (itokri), गोकॉप (Gocoop) और ज़्वेंडे (Zwende) शामिल हैं।
जहां समस्याएं हैं, वहां समाधान हैं
पहला समाधान जो वे लेकर आए थे, वह डिजिटली कैटलॉग इन्वेंट्री जो आर्टिसन्स यानी कारीगरों के लिए उपलब्ध थी।
इसके लिए, कारीगरों को सिखाया जाता था कि कैसे फोटो खींचना, कैसे अपने स्टॉक की एक्सेल शीट बनाना है और कुछ मामलों में, यहां तक कि कैसे अपने स्टॉक को ऑनलाइन अपलोड करना है।
वह बताती हैं, “यह सब उन्हें वीडियो कॉल पर सिखाया जा रहा था। यह एक प्रकार से ऑनलाइन सेल्स में क्रैश कोर्स की तरह था।"
कीर्ति के अनुसार जो चीज इस प्रयास ने और भी रोमांचक और दिलचस्प बनाई वह यह कि कारीगरों में सीखने की इच्छा थी, भले ही टेक्नोलॉजी उनके दैनिक जीवन से बहुत दूर थी। महिलाओं की उनके परिवारों में युवा सदस्यों द्वारा मदद की गई थी, जिनमें से कई अधिक तकनीक-प्रेमी थे।
कीर्ति आगे कहती हैं, "शुरू में, महिलाएं हमें अपनी इन्वेंट्री और स्टॉक को कागज के एक टुकड़े पर लिखे विवरण के साथ भेजती थीं। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल काम था क्योंकि इसे मैनेज करना और डेटा मैच करना बहुत कठिन होता था।"
कागज से लेकर अब पूरी तरह से डिजिटल होने तक, ओखाई की महिलाओं ने सिर्फ एक साल में एक लंबा सफर तय किया है।
एकजुटता दिखाते हुए, ओखाई ने अपने प्लेटफॉर्म पर परिधान ब्रांड रंगसूत्र क्राफ्ट इंडिया लिमिटेड जैसे छोटे संगठनों को जोड़ा। ओखाई ने रंगसूत्र के कारीगरों को अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से बिक्री करने के लिए जोड़ा ताकि वे इसकी अच्छी खासी पहुंच का फायदा उठा सकें।
वह कहती हैं, "हम उन्हें रिब्रांड नहीं करना चाहते थे, हम उन्हें उनकी पहचान और हमारे प्लेटफॉर्म का उपयोग करने देना चाहते थे।" यह सबके लिए फायदे का सौदा था।
पहला लॉकडाउन घोषित होने के एक साल बाद, ओखाई देश भर से 24,000 कारीगरों का समर्थन करने का दावा करता है, सभी ओखाई के प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेच रहे हैं। ओखाई का मुंबई में एक ऑफिस है, लेकिन सेल्स ऑफिस, डिजाइन स्टूडियो और गोदाम अहमदाबाद में स्थित हैं। फुल टाइम के आधार पर ओखई द्वारा कुल 50 लोगों को नियुक्त किया गया है।
एक एनजीओ से एक स्टैंडअलोन व्यवसाय तक
ओखाई ने एक एनजीओ के रूप में शुरुआत की। आज, यह एक स्टैंडअलोन व्यवसाय है जो न केवल अपने लोगों का समर्थन कर रहा है, बल्कि एक समान स्थान पर काम करने वाले विभिन्न संगठनों को भी समर्थन दे रहा है। यह चैरिटी या डोनेशन के माध्यम से फंड नहीं जुटा रहा है, बल्कि इसने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अधिकार दिया है।
यह ऐसा करने में सक्षम कैसे है?
वह कहती हैं, “हमने हमेशा बिक्री के माध्यम से धन जुटाने का प्रयास किया है। इस इरादे ने हमें परिचालन रूप से बहुत मजबूत बनने के लिए प्रेरित किया।”
कीर्ति, जोकि मूल रूप से डेवलपमेंट सेक्टर से नहीं हैं, लेकिन अपने सामाजिक प्रभाव उद्यम के साथ अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं। उनका कहना है कि इस क्षेत्र को "ऐसे लोगों की जरूरत है जो व्यवसाय के बारे में सोचते हैं और मार्केटिंग स्ट्रेटजीज को अपनाते हैं।" इस तरह से इस क्षेत्र को फायदा होगा और इसका उत्थान होगा।
ओखाई महिलाएं अलग-अलग तरीकों से काम करती हैं। कुछ फुल टाइम और कुछ पार्ट टाइम काम करती हैं। और कुछ ऐसी भी हैं जो एक घंटे के आधार पर काम करती हैं। एक महिला जो फुल टाइम काम करती है (प्रतिदिन आठ घंटे) 12,000- 25,000 रुपये प्रति माह कमाती है।
जिस चीज ने ओखाई के लिए काम है वो हो सकता है कि उसकी ब्रांड पहचान रही हो। दरअसल संगठन ने ग्रामीण महिलाओं को अपने ब्रांड का चेहरा बनाया है।
वह बताती हैं, “जब हमने 2015 में शुरुआत की, तो हमने महिलाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं। इससे वास्तविक लोगों से जुड़ने में मदद मिली।”
कीर्ति कहती हैं, छोटे ब्रांडों के लिए भी समर्थन बढ़ रहा था, और स्थानीय रूप से और टिकाऊ बनाए गए कपड़ों के लिए भी, जिसने ब्रांड की यात्रा में योगदान दिया।
वित्त वर्ष 2021 में वित्त वर्ष 2020 से कारोबार में 67 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। हालांकि, कीर्ति को सही नंबर्स को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने की इच्छा नहीं है। ओखाई काफी हद तक स्वतंत्र रूप से चलता व्यवसाय है। यह कभी-कभी विकास-संचालित फंड्स के लिए TCSRD की मदद लेता है।
भविष्य की योजनाएं?
जैसे ही भारत COVID-19 के खिलाफ लड़ाई के साथ सहज हो रहा था, वैसे ही दूसरी लहर आ गई, जिसका असर घातक हो रहा है।
वर्तमान स्थिति के साथ ओखाई कैसे मुकाबला कर रही है, इस पर टिप्पणी करते हुए, कीर्ति कहती हैं, “हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि ग्रामीण कारीगर किन उत्पादों को बेच सकते हैं जो महत्वपूर्ण बिक्री उत्पन्न कर सकें। इसमें उनकी कीमत, रंग, डिजाइन आदि तय करना भी शामिल है।"
ब्रांड ने अक्टूबर में मुंबई के कालाघोडा में एक स्टोर भी लॉन्च किया। आगे बढ़ते हुए, यह समान उद्देश्य वाले ब्रांडों के साथ मिलकर स्टोर लॉन्च करने की योजना बना रहा है।
ओखाई वित्त वर्ष 2022 के अंत तक 60,000 कारीगरों तक पहुंचने के लिए अपने आउटरीच का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है, और वित्त वर्ष 2023 तक 1 लाख कारीगरों तक पहुंचना चाहता है।
यह संख्या विनम्र और आकांक्षी लगती है, लेकिन कंपनी ने अपनी ऑनलाइन उपस्थिति बढ़ाकर और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश करके इसे हासिल करने की योजना बनाई है।