लॉकडाउन का एक साल: अलविदा कह चुके योद्धाओं को श्रद्धांजलि
महामारी का हमारे सभी के जीवन पर बुरा असर डालने के एक साल बाद, हम उन अलविदा कह चुके नायकों को याद कर रहे हैं जिन्होंने महामारी के खिलाफ युद्ध जीतने के लिए कड़ा संघर्ष किया।
मार्च 2020 की शुरुआत में, दुनिया भर में लोग अपने डेली कार्यक्रम के मुताबिक चल रहे थे और यहां तक कि गर्मियों के लिए इंटरनेशनल ट्रिप की योजना भी बना रहे थे। स्कूली बच्चे अपनी परीक्षा समाप्त करने और अपनी गर्मी की छुट्टी में गोता लगाने के लिए तैयार थे।
दुर्भाग्य से, पिछले मार्च के अंत तक, दुनिया की आबादी के लिए एक बड़ा मोड़ आया। कोरोनावायरस ने दुनिया भर के देशों में अपना रास्ता बना लिया था। पॉजिटिव मामलों और मौतों की बढ़ती संख्या के साथ, देश के नेताओं ने अपने संबंधित देशों में पूर्ण लॉकडाउन का आह्वान किया। 25 मार्च को पूरे भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'जनता कर्फ्यू' का आह्वान किया।
फिजिकल कॉन्टैक्ट से फैलने वाले वायरस से बचने के लिए पूरी आबादी को चार दीवारों के भीतर रहने के लिए के लिए मजबूर होना पड़ा। इस बीच, बीमारी क्या कर सकती है, इसके बारे में इतनी अनिश्चितता थी कि दुनिया भर की सरकारों ने सार्वजनिक स्थानों पर सामाजिक दूरी और अन्य स्वच्छ प्रथाओं को लागू करके तेजी से फैलने वाली बीमारी पर अंकुश लगाने की कोशिश की।
भारत में स्थिति काफी विकट हो गई। एक बार लॉकडाउन घोषित होने के बाद, कई कॉर्पोरेट्स ने अपने कर्मचारियों को निकाल दिया। वहीं, प्रवासी श्रमिकों और डेली मजदूरों की एक बड़ी आबादी के पास कहीं जाने के लिए कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि लॉकडाउन के चलते सभी परिवहन सुविधाओं को बंद करना पड़ा था। उनके पास कोई रोजगार भी नहीं था। जिसके परिणामस्वरूप, जनता हजारों मील दूर पैदल अपने गाँव वापस जाने लगी।
शहरों के भीतर और बाहरी इलाकों में लोगों को सुरक्षित रखने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर पुलिस अधिकारी जगह-जगह लगे हुए थे।
इस बीच, इन योद्धाओं का एक अन्य समूह अस्पतालों में अथक परिश्रम कर रहा था। ये स्वास्थ्य कर्मचारी वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन इस वायरस के खिलाफ लड़ाई में, दोनों वर्गों को जीवन की अपूरणीय क्षति हुई।
आज, 2.75 मिलियन से अधिक लोग इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई हार चुके हैं। लॉकडाउन की सालगिरह पर, योरस्टोरी को इन अलविदा कह चुके योद्धाओं को याद कर रही है, और हम उन सभी लोगों को अपना सम्मान देते हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत की है।
डॉक्टर साइमन हरक्यूलस
COVID-19 की खिलाफ गहन लड़ाई लड़ने के बाद, चेन्नई (तमिलनाडु) के 55 वर्षीय न्यूरोसर्जन डॉ. साइमन हरक्यूलिस ने 19 अप्रैल, 2020 को अपना जीवन दांव पर लगा दिया। डॉ. साइमन ने सैकड़ों रोगियों का इलाज किया है, उन्हें मानवता को सबसे पहले रखने के लिए याद किया जाएगा।
लेकिन जो दिल दहला देने वाला था, वह यह कि उनका परिवार उन्हें आखिरी गुडबाय तक नहीं कह सकता था। किलपौक (चेन्नई) के स्थानीय लोगों ने डॉक्टर को यह कहते हुए उचित दफनाने की अनुमति नहीं दी कि यह वायरस फैला सकता है। उन्हें कब्रिस्तान में भी नहीं दफनाने दिया गया। अंत में, साइमन के सहयोगी, डॉ. प्रदीप, अधिकारियों के साथ देर रात को उन्हें दफनाने में कामयाब रहे, जब भीड़ सो रही थी।
डॉ. देवराज
ऐसे समय में जब यह माना जाता था कि वृद्ध लोग इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, कर्नाटक के 29 वर्षीय डॉ. देवराज ने COVID -19 के चलते दम तोड़ दिया। जिस डॉक्टर के पास यूके से मास्टर डिग्री थी, उसे कम्युनिकेबल रोगों का विशेषज्ञ कहा जाता था। ग्रामीण कर्नाटक में COVID-19 ड्यूटी पर रहते हुए, उन्हें कोरोना हुआ और वे घर पर क्वारंटाइन थे, जहां उनकी हालत खराब हो गई थी। सितंबर में टुमकुर जिला अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई
डॉ. वी बासवराज
कर्नाटक के एक अन्य डॉक्टर, 40 वर्षीय डॉ. बासवराज कोविड-19 रोगियों की जांच और उपचार में सक्रिय रूप से लगे हुए थे। बेंगलुरु के ईएसआई अस्पताल में काम करने वाले आर्थोपेडिक डॉक्टर चार दिनों तक घर पर क्वारंटाइन थे और अक्टूबर में उनकी जान चली गई।
डॉ मंजूनाथ
जब COVID-19 की बात आती है तो डॉ. मंजूनाथ एसटी पहले मोर्चे पर सक्रिय थे। हालांकि, चीजें तब और खराब हो गईं जब तीन अस्पतालों ने उन्हें इलाज के लिए लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका COVID-19 टेस्ट का रिजल्ट अभी तक नहीं आया था।
उस समय, अस्पतालों को कोरोना मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए टेस्ट रिपोर्ट के बिना भी रोगियों को लेना चाहिए था। अंत में उन्हें इलाज के लिए दयानंद सागर कॉलेज में भर्ती कराया गया लेकिन उन्हें बैंगलोर मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ 27 जुलाई को उसकी मृत्यु हो गई।
डॉ. जोगिंदर चौधरी
दिल्ली स्थित डॉ. जोगिंदर चौधरी जून में कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। 27 वर्षीय डॉक्टर ने डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल में काम किया था। हालांकि, उनके इलाज में लोक नायक अस्पताल (एलएनजेपी अस्पताल) हॉस्पिटल्स एसोसिएशन और बीएसए डॉक्टर एसोसिएशन के डॉक्टर शामिल थे। इसके बाद हेल्थ में सुधार न होते हुए देख उनके परिवार वालों ने उन्हें सर गंगाराम अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया।
अस्पताल का बिल ज्यादा आने के बाद उनके 51 वर्षीय किसान पिता ने सर गंगा राम अस्पताल के समक्ष अपना मामला रखा जिसने अंत में उनके इलाज का खर्च उठाया। हालाँकि, हर किसी के निराशा हुई जब वे एक महीने बाद बीमारी का शिकार हो गए।
ब्लेसी थॉमस
इंडियन एक्सपैट नर्स ब्लेसी थॉमस रॉयल अस्पताल में ओमान में काम कर रही थीं, सितंबर में वायरस से उनकी मृत्यु हो गई, और ओमान में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दर्ज की गई पहली मौत भी बनी। ओमान ने उनके अथक प्रयासों के लिए उन्हें 'सच्चा हीरो' भी कहा।
अंबिका पीके
अंबिका पीके दिल्ली में नर्सिंग स्टाफ में पहली थीं जिनकी कोरोना के चलते मौत हुई थी। वह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर थीं और मई में बीमारी के चलते दम तोड़ दिया। मूल रूप से केरल के कोट्टायम जिले की रहने वाली अंबिका ने कालरा अस्पताल में 12 साल से अधिक समय तक नर्स का काम किया।
सोलसन सेविओर
आयरलैंड में काम करने वाले भारत के नर्स, सोल्सन सेविओर काउंटी किलकेनी में गोवरन एबे नर्सिंग होम में काम कर रहे थे। वे केवल 30 साल के थे। सोल्सन की मौत उनके सहयोगियों के लिए एक झटकी थी। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनके जितना युवा भी इस बीमारी का शिकार हो सकता है। नर्सिंग होम के निवासियों के लिए, सोल्सन एक दयालु और सौम्य नर्स थे, जिन्हें निश्चित रूप से याद किया जाएगा।
जोआन मैरी प्रिसिला
अपने जीवन के 50वें साल में बतौर नर्स, जोआन मैरी प्रिसिला रिटायरमेंट लेने ही वाली थीं, लेकिन उन्होंने अस्पताल लौटने का फैसला किया क्योंकि उन्हें COVID-19 ड्यूटी पर जाना था। राजीव गांधी अस्पताल, चेन्नई की नर्सिंग अधीक्षक मैरी प्रिसिला ने दो महीनों तक COVID-19 मरीजों की देखभाल की।
लेकिन इससे पहले कि वे अपनी रिटायरमेंट लाइफ का आनंद ले पातीं, मई में उन्हें भी कोरोना ने अपना शिकार बना लिया।
वीपी अजीथन
55 वर्षीय वीपी अजीथन केरल के पहले पुलिस अधिकारी थे जिनकी कोरोनावायरस बीमारी से मृत्यु हो हुई। पुलिस उप-निरीक्षक की कोरोना जांच में पॉजिटिव पाए जाने के बाद इडुक्की में कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई। उन्हें दिल की बीमारी के चलते कोरोना ड्यूटी पर भी नहीं लगाया गया था।
रमेश नांगरे
मुंबई के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) रमेश नांगरे को धारावी का 'कोविड हीरो' के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें इस महीने की शुरुआत में वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के बाद कार्डियक अरेस्ट आया था। भले ही उनकी मृत्यु का COVID-19 बीमारी या वैक्सीन से कोई संबंध न हो, लेकिन बीमारी पर अंकुश लगाने की दिशा में उनका काम उल्लेखनीय है।
मुंबई के धारावी में कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन 55 वर्षीय एसीपी ने अपनी ड्यूटी को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए, मलिन बस्तियों में लोगों को भोजन, राशन और स्वच्छता किट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।