वकालत छोड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बना की ऑर्गेनिक खेती, अब किसानों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा और महिलाओं को स्किल ट्रेनिंग दिला रही हैं अपर्णा
अपर्णा प्रकृति के प्रति अपने इस प्यार के माध्यम से न केवल पर्यावरण की भलाई में योगदान दे रही है, बल्कि अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से कृषक समुदाय को सशक्त भी बना रही है।
वकालत छोड़ ऑर्गेनिक खेती में कदम बढ़ाने वाली अपर्णा को आज देश भर में लोग जान रहे हैं। कृषि समुदाय के भले के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों की चर्चा भी हर ओर हो रही है। मूल रूप से चेन्नई से आने वाली अपर्णा राजगोपाल फिलहाल नोएडा की निवासी हैं। अपर्णा ने बेंगलुरु स्थित नेशनल लॉ स्कूल से स्नातक की डिग्री हासिल की है।
अपर्णा की इस कृषि यात्रा की शुरुआत दरअसल 2014 की एक घटना के साथ हुई जब अपर्णा और उनके पति ने एक घोड़े को गोद लेने का निर्णय किया था, लेकिन शहर में बने उनके घर में इतनी जगह नहीं थी कि घोड़े को वहाँ रखा जा सके। इसके लिए अपर्णा और उनके पति ने नोएडा के बाहरी इलाके में थोड़ी जमीन लीज पर लेने का निर्णय लिया।
रिसर्च के साथ की शुरुआत
अपर्णा शुरुआत से ही जानवरों के लिए काम कर रहे एनजीओ के साथ जुड़ी हुई थीं लेकिन उनके मन में किसानी को लेकर कोई प्लान नहीं था। अपर्णा के अनुसार उस घोड़े के लिए वह एक या दो बीघे भर जमीन चाहती थीं लेकिन जब वह साइट पर गईं तो वहाँ उनके सामने काफी जमीन बंजर पड़ी हुई थी जिसे वह लीज पर ले सकती थीं। उस जमीन को देखने के बाद ही अपर्णा के मन में वहाँ खेती करने का विचार आया।
कृषि की शुरुआत करने से पहले अपर्णा ने इस पर खूब रिसर्च की जिसके लिए उन्होंने किताबों, आर्टिकल और डॉक्युमेंट्री का भी सहारा लिया, हालांकि वह जमीन कृषि के लिए बेहद कम अनुकूल थी तो अपर्णा ने जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर का सहारा लिया। यह गोबर उनके फार्म में ही रह रहे सैकड़ों मवेशियों से एकत्रित किया गया था। अपर्णा के अनुसार उन्होंने गूगल की मदद से गोबर से खाद बनाना सीखा और नीम के पौधे और गोमूत्र से कीटनाशक बनाना शुरू किया।
20 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती
अपर्णा के लगातार प्रयास से जमीन धीरे-धीरे उपजाऊ होने लगी और उसमें खेती तमाम तरह की सब्जियाँ और दालें उगाना शुरू कर दिया गया। अपर्णा के अनुसार फसल उगाने के लिए प्राकृतिक कृषि तकनीकों और मुख्य रूप से पर्माकल्चर का उपयोग किया जाता है। फार्म में सभी पशु उत्पादों का उपयोग जैविक उर्वरकों व कीटनाशकों के निर्माण के लिए किया जाता है।
अपर्णा राजगोपाल अपने फार्म में कई तरह के मवेशियों को आश्रय दे रही हैं जिसमें केरल में पाई जाने वाली एक खास नस्ल की गाय भी शामिल है। यह गाय असल में सामान्य से काफी कम ऊंची होती है और इसी के साथ यह दूध भी कम ही देती है जिसके चलते इस गाय की मांग बेहद कम है और यह अब विलुप्त होने की तरफ बढ़ रही है। अपर्णा के अनुसार महज दूध के उद्देश्य से पाले जाने वाले मवेशियों को बाद में आवारा छोड़ दिया जाता है या मार दिया जाता है, जबकि उनके फार्म में मवेशियों को गोबर के उद्देश्य से पाला जाता है।
आज अपर्णा के करीब 20 एकड़ के ऑर्गेनिक फार्म और पशु अभयारण्य को ‘बीजोम’ नाम दिया गया है, जहां 5 एकड़ जमीन उन्होंने खरीदी हुई है जबकि 15 एकड़ जमीन फिलहाल लीज पर है। फार्म में उगाये गए ऑर्गेनिक कृषि उत्पादों को कृषि मेला के साथ ही नोएडा स्थित ज़ीरो पैकेजिंग किराना दुकान के जरिये बेचा भी जाता है।
‘बीजोम’ से किसानों का भला
जैविक से किसानों को जोड़ रहीं अपर्णा के अनुसार किसानों को सिर्फ साफ-सुथरा अनाज उगाने के लिए कहना ही काफी नहीं है, बल्कि उन्हें बुनियादी सुविधाओं की भी जरूरत है। जब किसानों को शिक्षा और स्वास्थ्य समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी तब ही किसान जैविक खेती पर अपना पूरा ध्यान लगा सकेंगे।
अपर्णा ने इस दिशा में आगे बदते हुए किसानों के बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से ‘बीजोम शिक्षा’ नाम से से स्कूल की स्थापना की है, इसी के साथ वह किसानों के लिए साप्ताहिक मेडिकल क्लीनिक भी चलाती हैं जिसे ‘बीजोम आरोग्य’ नाम से जाना जाता है। किसानी से जुड़ी महिलाओं के लिए भी अपर्णा स्पेशल ट्रेनिंग सेशन का आयोजन करती हैं जहां उन्हें सिलाई, बुनाई, बैग और पेंसिल निर्माण जैसी तमाम स्किल्स सिखाई जाती हैं।
अपर्णा प्रकृति के प्रति अपने इस प्यार के माध्यम से न केवल पर्यावरण की भलाई में योगदान दे रही है, बल्कि अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से कृषक समुदाय को सशक्त भी बना रही है।
Edited by रविकांत पारीक