लाहौर से आकर लुधियाना में बनाया पापड़, आज ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में हो रहा है निर्यात
लाहौर से लुधियाना आकर शुरू किया पापड़ का बाज़ार आज देश समेत विदेशों में भी पसंद किया जा रहा है। ब्रांडिंग से लेकर रिटेल स्टोर में बिक्री तक हर जगह जीआरडी पापड़ बाज़ार में अपने प्रतिद्वंदियों से आगे है।
साल 1937 में, एस पाल सिंह लाहौर से लुधियाना आए। उस समय एसपी पाल सिंह के पास धैर्य, दृण संकल्प और जेब में महज 100 रुपये थे। जीविका अर्जन के संघर्ष में तब एस पल सिंह अपनी पापड़ बनाने की कला का उपयोग करना चाहते थे।
उस समय खास तौर पर पंजाब प्रांत में अमृतसरी पापड़ की ख़ासी मांग थी, हालांकि तब बाज़ार में प्रतिस्पर्धा लगभग न के बराबर थी। तब एस पल सिंह ने इस मौके को भुनाने की ठानी और खुद ही पापड़ बनाना शुरू किया।
योरस्टोरी से बात करते हुए एस पल सिंह के पोते एस अमनप्रीत सिंह बताते हैं कि
“मेरे दादाजी ने यह व्यवसाय अकेले ही शुरू किया। उस समय उनकी जेब में महज 100 रुपये ही थे, जबकि पापड़ उत्पादन जैसे व्यवसाय में मजदूरों की भी आवश्यकता होती है। उन्होने हार न मानते हुए अकेले ही पापड़ बनाना शुरू किया। उस समय मशीनें नहीं होती थीं, तो सारा काम हाथों से ही करना होता था।”
शुरुआत ऐसे हुई
शुरुआती दिनों में जब एस पाल सिंह ने पापड़ से का निर्माण शुरू किया, तब एक किलो पापड़ के उत्पादन की लागत 5 रुपये रुपये थी, जबकि वह दिन में 8 से 10 किलो पापड़ का उत्पादन करते थे। सिंह ने अपने पापड़ बेंचने के लिए लुधियाना के चौरा बाज़ार में ‘अमृतसरियन दी हट्टी’ नाम की दुकान खोली।
अमनप्रीत बताते हैं,
“दादा सुबह करीब 10 किलो पापड़ का निर्माण करते थे, जबकि शाम को वह पापड़ बेंचते थे, ऐसे में वह अकेले ही दोनों काम करते थे।”
एस पाल सिंह का यह कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन इस कारोबार को 1960 के दशक में उछाल तब मिली जब एस पाल सिंह के बेटे एसपी श्याम सिंह भी पिता का हाथ बटाने इस कारोबार से जुड़ गए। इसके बाद सिंह ने बड़ी तादाद पर पापड़ का उत्पादन करना शुरू कर दिया।
विदेशों तक कैसे पहुंचे?
साल 2000 के आस-पास अमनप्रीत भी इस पुश्तैनी कारोबार से जुड़ गए। अमनप्रीत ने इस कारोबार को पारंपरिक तौर तरीकों से आधुनिक तौर तरीकों की तरफ मोड़ा और आज चल रहे ब्रांड जीआरडी पापड़ की स्थापना की।
अमनप्रीत बताते हैं कि
“जब मैंने यहाँ शुरुआत कि तब कई सारी चीजें पहले से ही व्यवस्थित थीं, ऐसे में मुझे उन्हे आगे लेकर जाना था, तब मेरे कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ था।”
जब आधुनिक रीटेल का दौर शुरू हुआ और बिग बाज़ार जैसी कंपनियों ने बाज़ार में कदम रखा तब अमनप्रीत ने मौके का फायदा उठाते हुए ब्रांड को और आगे ले जाने का मन बनाया। साल 2005 में यह पापड़ बिग बाज़ार के रिटेल स्टोर पर ग्राहकों के लिए उपलब्ध हो गया था।
80 सालों से इस बाज़ार में मौजूद 'अमृतसरियन दी हट्टी' में 14 अन्य उत्पाद कि भी बिक्री हो रही है, इसमें पापड़, वड़ी, मंगोड़ी और सोया चाप जैसे उत्पाद शामिल हैं।
अमनप्रीत बताते हैं कि पापड़, मंगोड़ी और वड़ी का उत्पादन उनकी अपनी यूनिट में होता है, जबकि साबुदाना पापड़ और सोया चाप जैसे अन्य उत्पादों का वह देश के ही अन्य हिस्सों से आयात करते हैं।
बिग बाज़ार के बाद आज जीआरडी पापड़ बेस्ट प्राइस, रिलायंस फ्रेश व डी मार्ट समेत कई अन्य रिटेल स्टोर में उपलब्ध है। आज पंजाब-अमृतसर की पापड़ मार्केट में जीआरडी पापड़ की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है। अमनप्रीत के अनुसार कंपनी का कुल टर्नओवर 5 करोड़ रुपये के करीब है।
आधुनिक रिटेल सेक्टर में आने के बाद अमनप्रीत अपने ब्रांड को वैश्विक स्तर पर ले जाना चाहते थे, हालांकि इस काम के लिए उन्हे सरकार से एलसी लाइसेन्स की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होने कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अपने उत्पाद का निर्यात करने के लिए अलग रास्ता चुना। अमनप्रीत ने लुधियाना के एक डीलर के साथ मिलकर अपने उत्पाद का निर्यात शुरू कर दिया।
अमनप्रीत बताते हैं,
“लाइसेंस अर्जित करने में काफी समय लगता है और अब जब मैं ही इस व्यवसाय को देख रहा हूँ, तब मैंने इससे अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसीलिए मैंने डीलर की मदद लेते हुए निर्यात शुरू कर दिया।”
अमनदीप का दावा है कि आज जब मशीन से पापड़ों का निर्माण हो रहा है, वहीं जीआरडी पापड़ आज भी हस्तनिर्मित हैं। वह कहते हैं,
“पापड़ बनाने के लिए मशीन उपयुक्त नहीं हैं, अमृतसरी पापड़ हस्तनिर्मित क्वालिटी के लिए मशहूर है। आज हमारी यूनिट में 23 कारीगर हैं, जो हाथों से पापड़ का निर्माण कर रहे हैं। हम आज हर दिन करीब 15 सौ किलो पापड़ का उत्पादन कर रहे हैं, जबकि हम रोजाना 500 किलो पापड़ बेंच रहे हैं।”
भविष्य के लिए क्या प्लान है?
अमनप्रीत के अनुसार अब वह अभी जीआरडी पापड़ के फ्रैंचाइजी के लिए कई डीलरों से संपर्क कर रहे हैं, हालांकि अमनप्रीत इसके लिए अभी सही समय का इंतज़ार कर रहे हैं। इसी के साथ अमनप्रीत इस कारोबार को देश के अन्य हिस्सों के साथ ही विदेश में भी फैलाना चाह रहे हैं।
(Translation & Edited By- प्रियांशु द्विवेदी )