इस गाँव में गोबर के बदले गैस सिलेंडर पाते हैं लोग, पीएम मोदी भी कर चुके हैं इस खास मॉडल की तारीफ
बिहार के इस खास गाँव में लोगों को गोबर के बदले गैस सिलेंडर मिलते हैं। इस योजना के तहत आज गाँव की लगभग सभी महिलाओं को चूल्हे के धुएँ में परेशान होते हुए खाना बनाने से आज़ादी मिल गई है और यह संभव हो पाया है एक खास मॉडल की वजह से। सुखेत गाँव बिहार के मधुबनी जिले में स्थित है और गाँव के नाम पर ही इस मॉडल का नाम 'सुखेत मॉडल’ पड़ा है।
गाँव की अधिकतर महिलाओं को अब उपले और लकड़ी के चूल्हे से मुक्ति मिल चुकी है और अब वे सभी रोजाना गैस पर ही खाना बना रही हैं। गौरतलब है कि इसके पहले केंद्र सरकार की योजना के तहत ग्रामीणों को गैस सिलेंडर तो मिल गया था लेकिन ग्रामीण उसे दोबारा रिफिल नहीं करवा रहे थे।
गोबर के बदले मिल रही है गैस
बीते कुछ महीनों में गाँव में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और मधुबनी के कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा एक अनूठी पहल की शुरुआत की गई है जहां ग्रामीणों को गोबर और कचरे के बदले में भरा हुआ गैस सिलेंडर दिया जाता है। इस खास पहल की तारीफ पीएम मोदी खुद भी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कर चुके हैं।
पीएम मोदी ने तब ‘सुखेत मॉडल’ का जिक्र करते हुए कहा था कि इससे ग्रामीणों को चार लाभ सीधे तौर पर मिल रहे हैं, जिसमें प्रदूषण से मुक्ति, गंदगी से मुक्ति, गाँव वालों के लिए गैस सिलेंडर की उपलब्धता और जैविक खाद का जिक्र किया था। पीएम मोदी ने इसका जिक्र आत्मनिर्भर भारत से जोड़कर भी किया था।
फसल अवशेष से मिल रही है मुक्ति
इस मॉडल में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि आमतौर पर किसान फसल के अवशेष व गोबर फेंक देते हैं या गोबर से महिलाएं उपले तैयार कर उससे खाना बनाती हैं। उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस सिलेंडर अब किसानों के घरों में खाली पड़े हैं क्योंकि महिलाओं ने फिर से उपलों पर खाना बनाना शुरू कर दिया था।
अब ‘सुखेत मॉडल’ के तहत किसानों से गोबर और कचरा इकट्ठा किया जाता है और इस बात का भी पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है कि किस किसान से कितना गोबर इकट्ठा किया गया है। गाँव वालों से इसे लेकर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है अब हर 12 सौ किलो कचरे के बदले उन्हें एक भरा हुआ गैस सिलेंडर या उसके बराबर के पैसे दिये जाते हैं।
तैयार किया जा रहा है वर्मी कम्पोस्ट
किसानों के जरिये इकट्ठा किए जा रहे फसलों के अवशेष और गोबर के जरिये अब वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। यह वर्मी कम्पोस्ट आमतौर पर कंपनियों या किसानों द्वारा खरीदा जाता है लेकिन इस प्रोजेक्ट के तहत इस तैयार हुए वर्मी कम्पोस्ट को किसानों को ही दिया जाता है।
गौरतलब है कि वर्मी कम्पोस्ट को तैयार करने में जहां डेढ़ रुपये की लागत आती है वहीं वर्मी कम्पोस्ट का सरकारी रेट ही 6 रुपये प्रति किलो है। ‘सुखेत मॉडल’ की सफलता को देखते हुए अब इसी तरह के प्रोजेक्ट सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण के साथ ही बिहार के अन्य जिलों में भी शुरू किए जाने की तैयारी की जा रही है।
Edited by Ranjana Tripathi