टीवी कंपोनेंट्स की छोटी सी दुकान को कैसे एक इंजीनियर ने बनाया 639 करोड़ के रेवेन्यू वाला फैमिली बिजनेस
स्वर्गीय प्रमोद गुप्ता ट्रांजिस्टर रेडियो को बनाने में हाथ आजमाते थे। उन्होंने उसमें जो फेरबदल किए, उसने उनके लिए एक कारोबारी सफलता की राह प्रशस्त की और PG Electroplast नाम की एक विरासत खड़ी है। आज इस भारतीय मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस का राजस्व 639 करोड़ रुपये का है और यह BSE और NSE में लिस्टेड हैं।
1975 में एक व्यक्ति पुरानी दिल्ली के अपने घर की छत पर एक छोटी से कार्यशाला में बैठे हुए कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ छेड़छाड़ कर रहा था। स्वर्गीय प्रमोद गुप्ता के पास एक सरकारी नौकरी थी, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं थे। वह दिल से एक आंत्रप्रेन्योर यानी कि उद्यमी थे। वह अपनी छत पर जाते और ट्रांजिस्टर रेडियो को बनाने में हाथ आजमाते। उन्हें शायद ही यह पता रहा होगा कि उनके फेरबदल एक दिन उन्हें कारोबारी सफलता की राह पर ले जाएंगे। साथ ही 639 करोड़ रुपये के राजस्व (वित्त वर्ष 20 के आंकड़े) और बीएसई व एनएसई में सूचीबद्ध एक भारतीय मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस की विरासत खड़ा कर पाएंगे।
नोएडा स्थित कंपनी PG Electroplast Limited (PGEL) — प्रमोद के उद्यमशीलता के जुनून से पैदा हुई था। यह एक इलेक्ट्रॉनिक्स और प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग, प्लास्टिक इंजेक्शन मोल्डिंग, और प्रिंटेड सर्किट बोर्ड बिजनेस कंपनी है।
इस बिजनेस को प्रमोद की फैमिली चलाती है और इसमें 2,000 से अधिक सदस्य हैं। कंपनी के प्रमुख ग्राहकों में लॉयड, फ्लिपकार्ट, रिलायंस रिटेल, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, वोल्टास, हायर, व्हर्लपूल, मारुति, महिंद्रा, टाटा मोटर्स और जगुआर जैसे नाम शामिल हैं। वैसे आधिकारिक रूप से पीजीईएल को 2003 में एक पैरेंट कंपनी के रूप में स्थापित गया था। हालांकि प्रमोद का मूल कारोबार 1977 में शुरू हो गया था।
एक भरोसे का कदम
प्रमोद के बेटे और पीजीईएल में ऑपरेशन वर्टिकल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर विकास ने YourStory को बताया,
“मेरे पिता एक इंजीनियर थे और उन्होंने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। उन्होंने विभिन्न रक्षा प्रणालियों और प्रतिष्ठानों में इस्तेमाल के लिए सेमीकंडक्टर को बनाने और उसके परीक्षण पर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ काम किया था। हालांकि, वह एक स्वाभाविक नेता और एक सहज उद्यमी थे। इसलिए वह अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। ऐसे में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स में कारोबार करने के मौकों की तलाश करनी शुरू कर दी।"
प्रमोद ने ट्रांजिस्टर रेडियो बनाने के अलावा टीवी की मरम्मत भी की। उन्होंने अपने तकनीकी कौशल को व्यावसायिक जानकारी के साथ तालमेल बैठाने की आवश्यकता महसूस की। इसीलिए उन्होंने पढ़ाई करने का फैसला किया और दिल्ली यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से मार्केटिंग एंड सेल्स मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्होंने उसी साल खुद पर भरोसा करते हुए एक छलांग लगाई और पूर्णकालिक उद्यमी बनने के लिए अपनी प्रतिष्ठित सरकारी नौकरी को छोड़ दिया।
विकास कहते हैं,
“उस समय, मेरे पिता को काफी विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वह आलोचकों के सामने भी आगे बढ़ते रहे। उन्होंने पाया कि बाजार में कंपोनेंट्स की उपलब्धता एक समस्या है क्योंकि अधिकतर स्पेयर्स या कंपोनेंट्स जापान या जर्मनी से आते थे। ऐसे में जाहिर है कि उन्हें आने में काफी वक्त लगता था।"
वह कहते हैं,
“इसलिए, उन्होंने इन कंपोनेंट्स का स्थानीय स्तर पर उत्पादन करने का विचार किया। 1977 में उन्होंने अपनी बचत के केवल कुछ हजार रुपये के साथ, उन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के डिफ्लेक्शन उपकरणों को बनाने एक प्रोपराइटरशिप को लॉन्च किया। (जिसे अब हम 'पीजी' के रूप में बताते हैं)।"
छोटा कारोबार, बड़ी चुनौतियां
उन्होंने पहली बार कोई बिजनेस शुरू किया था। ऐसे में शुरुआती साल उनके लिए काफी चुनौती भरे थे। इन कंपोनेंट्स की मैन्युफैक्चरिंग के लिए विशेष मशीनों की जरूरत होती है, जिसके बदले में बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, प्रमोद ने पहले मैन्युफैक्चरिंग के लिए जरूरी मशीनों को इंजीनियर करने और उन्हें बनाने का फैसला किया।
हालांकि, चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हो गईं। जब उन्होंने टीवी कंपोनेंट्स को बनाना शुरू कर दिया, तो उनके सामने इस कंपोनेंट्स को संभावित ग्राहकों तक पहुंचाने की चुनौती आई। उ, वक्त सलोरा, बेलटेक, टेलीविस्टा, क्राउन जैसी बहुत सी कंपनियां उनसे कंपोनेंट्स खरीदने के लिए तैयार नहीं थी।
विकास बताते हैं,
“ये ब्रांड अभी तक जापान और जर्मनी के स्थापित कंपोनेंट्स बनाने वाली कंपनियों से ही इन्हें खरीदा करती थीं। हालांकि मेरे पिता को अपनी क्षमताओं और अपने उत्पादों पर भरोसा था। ऐसे में उन्होंने अपने उन्होंने इन ब्रांडों को अधिक समय तक की वारंटी देने का वादा किया और उनसे कहा कि वह नए कंपोनेंट्स के मरम्मत की लागत को भी कवर करेंगे।”
वह आगे बताते हैं, “हालांकि ब्रांड इसके बाद भी हिचकिचा रहे थे और शुरू में उन्हें छोटे ऑर्डर दिए। लेकिन जैसे-जैसे उनका भरोसा जगा, उन्होंने उसके साथ ऑर्डर की संख्या भी बढ़ाना शुरू कर दिया।”
90 के दशक की शुरुआत में, इन टीवी ब्रांडों के साथ अच्छे कामकाजी संबंध बनाने के बाद, पीजी ने संपूर्ण टीवी सेट बनाने का फैसला किया। 1995 में, पीजी ने नोएडा में अपना पहली फैक्ट्री खोली और ओनिडा को अपने प्रमुख ग्राहकों में से एक के रूप में हासिल किया।
उसके बाद से प्रमोद के बिजनेस ने पूरी तरह से ब्लैक एंड व्हाइट टीवी बनाने लगे। पीजी ने 1997 में रंगीन टीवी बनाना शुरू किया।
कारोबार में बने रहने और आगे बढ़ने की रणनीति
विकास का दावा है कि पीजी भारतीय टीवी निर्माण बाजार में एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में विकसित हुआ, लेकिन 2011 में उसे एक झटका लग गया।
वह बताता हैं,
"इंडस्ट्री ने बहुत तेजी से फ्लैट स्क्रीन टीवी की ओर रुख कर लिया, जिसका निर्माण देश से बाहर चीन में ट्रांसफर हो गया। इससे हमने अपने व्यापार का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खो दिया है। साथ ही इस समय कई देशों के साथ मुक्त-व्यापार समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए, इससे स्थानीय विनिर्माण खतरे में लगने लगा था।”
इस बदलाव के चलते, पीजीईएल को प्लास्टिक मोल्डेड कंपोनेंट्स के निर्माण के लिए प्रेरित किया। विकास और कंपनी के बाकी टॉप मैनेजमेंट ने विचार किया कि चूंकि प्लास्टिक के कंपोनेंट्स भारी वस्तु हैं, इसलिए उनका आयात करना व्यवहारिक नहीं होगा। ऐसे में इस क्षेत्र में कदम रखना पीईजीएल के लिए एक सुरक्षित दांव रहेगा।
वह बताते हैं, "कारोबार में बने रहने के लिए, हमने प्लास्टिक इंजेक्शन मोल्डिंग, पीसीबी असेंबली, मोटर निर्माण, सीएफएल निर्माण, उत्पाद असेंबली और ODM उत्पाद आदि का काम शुरू किया।"
उसी वर्ष, पीजीईएल शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो गई। 2016 में, कंपनी ने एक OEM और ODM के रूप में कार्य करने वाले B2B बिजनेस के रूप में तैयार किए हुए प्रोडक्ट डिलीवर करना शुरू कर दिया। इनमें एयर कंडीशनर, वाशिंग मशीन, सैनिटरीवेयर आदि जैसे प्रोडक्ट शामिल थे।
वर्तमान में, PGEL के पास छह विनिर्माण इकाइयां हैं- तीन ग्रेटर नोएडा में, एक रुड़की में और दो अहमदनगर में। अहमदनगर की इकाई को छोड़कर बाकी सभी इकाइयों का स्वामित्व पीजीईएल के पास है। वहीं अहमदनगर वाली इकाई, बिल्ड-टू-सूट लीज के तहत है।
कोविड-19 के बीच टिके रहना और ग्रोथ
रिपोर्टलिंक के मुताबिक, प्लास्टिक इंजेक्शन मोल्डिंग का वैश्विक बाजार के 2021 से 2026 के बीच चार प्रतिशत से अधिक की सीएजीआर से बढ़ने की उम्मीद है।
इस ग्रोथ में एशिया-प्रशांत देशों के बीच भारत का बड़ा योगदान है। साथ ही पैकेजिंग, मोटर वाहन और परिवहन, स्वास्थ्य सेवा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रियल एस्टेट जैसी इंडस्ट्री से प्लास्टिक की मांग भी तेजी से बढ़ रही है।
विकास हालांकि अपने किसी प्रतिस्पर्धी का नाम नहीं लेते हैं, लेकिन उनका मानना है कि पीजीईएल उत्पादों की बाजार में पैठ अभी भी कम है और इन क्षेत्रों में तेजी से ग्रोथ के साथ, "बाजार में सभी विनिर्माण कंपनियों के लिए आगे बढ़ने के लिए बहुत जगह होगी।"
पिछले साल जब कोरोना महामारी आई, तब PGEL ने वित्त वर्ष की पहली तिमाही लॉकडाउन में और दूसरी तिमाही निर्माण में बिताया। इस दौरान कार्यस्थल पर अधिकतर कर्मचारियों की संख्या पर प्रतिबंध थी।
इसके कारोबार में ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी दोबारा से ग्रोथ हासिल करने वाले सेक्टरों की वजह से तेजी आई। वहीं कोरोना की दूसरी लहर में, पीजीआईएल का मुख्य रूप से ध्यान अपनी टीम के लिए जोखिम को कम करने पर है।
विकास कहते हैं,
“व्यापार के लिहाज से, हम उम्मीद करते हैं कि जून के बाद से हालात ठीक होने लगेंगे। मुझे नहीं लगता कि इस धीमी अवधि का लंबी अवधि में बाजार पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा। हमें उम्मीद है कि हमें जल्द ही अच्छी मांग देखने को मिलेगी और हम अपने प्रोडक्ट के बिजनेस को बढ़ाने पर काम कर रहे हैं- ओईएम और ओडीएम दोनों में।"
Edited by Ranjana Tripathi