डेनमार्क के स्कूलों में पढ़ाया जाता है भारत की बेटियों का आदर्श गांव 'पिपलांत्री'
जानकर हैरत हो सकती है कि हमारे देश में राजस्थान का कोई एक ऐसा गांव भी है, जो विश्व के टॉप टेन गांवों में शामिल है और जहां की बेटियों को डेनमार्क के स्कूलों में पढ़ाया जाता है! इस गांव में बेटियों के जन्म पर 111 पौधे रोपे जाते हैं। यहां की बेटियां रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाई के साथ ही यहां के वृक्षों को भी राखियां बांधती हैं।
राजस्थान में उदयपुर से क़रीब 70 किलोमीटर दूर राजसमंद जिले का पिपलांत्री, पूरी दुनिया में चर्चित वही अनूठा गांव है, जिसे कभी सैटेलाइट से पता चलने पर इसरो के वैज्ञानिक वहां तक पहुंचे। इस गांव की कन्याओं जितना महत्व शायद ही पूरी दुनिया के किसी और गांव या शहर की बेटियों को मिलता हो। कुल पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में बेटी पैदा होने पर 111 वृक्ष लगाए जाते हैं। इस गांव के किसी व्यक्ति का निधन हो जाए तो उसकी स्मृतियां ताजा रखने के लिए 11 पौधे रोपे जाते हैं। रक्षाबंधन पर यहां की बेटियां भाइयों के साथ ही यहां के पेड़ों को भी राखियां बांधती हैं।
अपनी ऐसी अदभुत कोशिश परवान चढ़ाने के कारण ही यह गांव डेनमार्क के स्कूलों में पढ़ाया जाता है। यह गांव कन्या-जन्म को पर्यावरण से जोड़कर अपना पूरा इलाका हरा-भरा कर चुका है। चार साल पहले यहां पहुंचकर डेनमार्क की मास मीडिया यूनिवर्सिटी की दो छात्राएं इस गांव पर रिसर्च कर चुकी हैं।
पिपलांत्री को मिली इस वैश्विक पहचान का श्रेय यहां के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर को दिया जाता है, जिन्होंने अपनी बेटी के असमय दुनिया से विदा हो जाने के बाद इस मुहिम की शुरुआत की थी, ताकि जन्म पर 111 पेड़ लगाकर उनके गांव की हर बेटी चिरंजीवी हो जाए। डेनमार्क सरकार ने विश्व के अनेक देशों के ऐसे 110 प्रोजेक्ट्स में से पिपलांत्री गांव को टॉप 10 में रखा है। वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से इस गांव को 'निर्मल पंचायत सम्मान' और वर्ष 2008 में 'गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है।
जब वर्ष 2005 में श्याम सुन्दर पालीवाल यहाँ के सरपंच बने, तब से आज तक पिपलांत्री से आदर्श कन्या ग्राम, वृक्ष ग्राम, निर्मल गाँव, पर्यटन ग्राम, जल ग्राम जैसी अनेकशः ख्यातियां जुड़ चुकी हैं। बेटियों के जन्म पर गाँव में अब तक तीन लाख से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर वृक्षाकार हो चुके हैं। पूरा गांव हर समय, हर मौसम में हरियाली से नहाया हुआ रहता है।
श्याम सुन्दर ने ही पहली बार इलाके के सुदूर गाँवों में बसे खेतीहरों, मार्बल खान मजदूरों और ग्रामीणों को साथ लेकर वाटरशैड योजना को भी आकार दिया। आज यहाँ की बेटियों के जन्म पर 111 पौधे ही नहीं लगाए जाते, बल्कि उनके नाम पर 21 हजार की एफडी भी करवाई जाती है। बेटियों के नाम पर गांव में 93 हजार पौधों वाला एक 'कन्या उपवन' भी है। रक्षाबंधन से एक दिन पहले पंचायत स्तर पर गांव में बेटियाँ का एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित होता है। गांव के लोगों में बेमिसाल एकजुटता रहती है। आज इस गांव में हर हाथ को काम है और हर बेटी के लिए एक एफडी। अब यह अब पर्यटक ग्राम बन चुका है।
श्याम सुंदर पालीवाल ने सबसे पहले गांव में पानी की समस्या को दूर करने की ठानी। बरसाती पानी जमा करने के लिए लगभग एक दर्जन स्थानों पर एनीकट तैयार करवाए। गांव के वृक्ष सींचे जाने लगे। जलस्तर ऊपर उठने लगा। इसके साथ ही शिक्षा में सुधार के लिए स्कूल की इमारतों को दुरस्त करवाया गया। गांव की तस्वीर बदलने लगी। जहां कभी जल स्तर 500 फुट की गहराई पर था, आज वहां पानी के सैकड़ों झरने फूट रहे हैं।
इस समय गांव में ढाई हजार आंवले के पेड़ों के अलावा सैकड़ो बीघे में एलोवीरा की खेती होती है। महिलाओं के स्वयं सहायता समूह यहां स्थापित एलोवीरा प्रोसेसिंग प्लांट से जूस, क्रीम आदि तैयार कर बाजार में बेच रही हैं। गांव में बांस उद्योग की भी रूपरेखा बन चुकी है। राजस्थान सरकार मॉडल गांव पिपलांत्री की तरह राज्य की दो सौ से अधिक पंचायतों को विकसित करने की योजना चला रही है।
इस गांव की हरियाली के साथ एक और बड़ा रोचक वाकया जुड़ा हुआ है। एक बार इसरो (हैदराबाद) की नेशनल रिमोट सेनसीन सेंटर (एनआरएससी) ने जब सैटेलाइट से पिपलांत्री पंचायत के कई सारे चित्र भेजे, वर्ष 2006 के उन चित्रों में पिपलांत्री क्षेत्र की पहाड़ियां निचाट वृक्षविहीन थीं।
उसके छह साल बाद वर्ष 2012 से 2016 के बीच सैटेलाइट ने फिर तस्वीरें भेजीं तो उसमें पूरा पिपलांत्री गांव हरियाली में डूबा हुआ दिखा। यह चौंकाने वाला दृश्य था।
इसके वेरिफिकेशन के लिए इसरो के वैज्ञानिक मनोज राज सक्सेना की टीम पिपलांत्री पहुंच गई। पूरे इलाके गांव दौरा कर वहां के चारागाहों, जल संरक्षण प्रणाली, नरेगा आदि के बारे में विस्तार से जाना-समझा।
उस समय उन्हे पता चला कि सात उप-गांवों, 18 ढाणियों वाला पिपलांत्री तो गांव करीब 2200 हैक्टेयर में फैला हुआ है।
उसके बाद पिपलांत्री का नया मैप सैटेलाइट सर्वे में प्रसारित हुआ। इसके बाद इस गांव पर इसरो का शोध शुरू हो गया।