सादगी की जीवंत मिसाल हैं झोपड़ी में रह रहीं बॉटनी की प्रोफेसर हेमा साने
अगर आपके जीवन में दिखावा, नाज़-नखरे, चमक-दमक न हो, लोग पागल-मूर्ख तक कहने से बाज नहीं आते पर पुणे में आजीवन बिना बिजली के, वनस्पतियों से ढके, पक्षियों से गुलजार अपनी झोपड़ी में रहकर अब तक कई किताबें लिख चुकीं बॉटनी की 80 वर्षीय प्रोफेसर डॉ हेमा साने के लिए तो यही जीवन जीने की एक कला है।
महाराष्ट्र में बुधवार पेठ (पुणे) में रह रहीं बॉटनी की रिटायर्ड प्रोफेसर हेमा साने कहती हैं- 'मैं किसी को कोई संदेश या सबक नहीं देती, बल्कि मैं बुद्ध की बात दोहराती हूं कि हमें अपने जीवन में अपना रास्ता खुद ही खोजना है।' अस्सी वर्षीय प्रो.साने की देश-दुनिया में एक ऐसी विशिष्ट महिला के रूप में पहचान बन चुकी है, जिन्होंने पर्यावरण बचाने के लिए अब तक की अपनी पूरी जिंदगी में एक भी दिन रोशनी के लिए बिजली का सहारा नहीं लिया है।
प्रोफेसर साने तरह-तरह की वनस्पतियों से घिरे अपने झोपड़ी नुमा घर में बिना बिजली के ही रहती हैं। उनके घर में आज तक बिजली का कनेक्शन लगा ही नहीं है। वह अपनी आगे की बाकी उम्र भी बिना बिजली के ही बिताना चाहती हैं। वह वनस्पति विज्ञान और पर्यावरण पर अब तक कई किताबें लिख चुकी हैं, जो बाजार में उपलब्ध हैं। वह आज भी किताबें लिखती जा रही हैं। पर्यावरण उनका प्रिय विषय है। उनको हर तरह के पशु-पक्षियों, जानवरों, वनस्पतियों की गहरी जानकारी है।
लैंप से रोशन झोपड़ी पर पसरी वनस्पतियों में प्रो. हेमा के साथ रात बिताने वाली पक्षियों की मीठी-मीठी चहक के साथ उनकी हर सुबह आंख खुलती है। वह कहती हैं कि ये पक्षी मेरे दोस्त हैं। जब भी मैं अपने घर का काम करती हूं, वे आ जाते हैं। मैं इन्हे छोड़कर कहीं न रह सकती हूं, न जाती हूं। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में पीएचडी एवं वर्षों तक महानगर के गरवारे कॉलेज में प्रोफेसर रहीं साने कहती हैं-
'भोजन, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरतें होती हैं। एक समय था, जब बिजली नहीं थी, बिजली तो काफी देर बाद आई। मैं बिना बिजली के सब कुछ कर लेती हूं। उनकी यह संपत्ति उनके कुत्ते, दो बिल्लियों, नेवले और बहुत सारे पक्षियों की हैं। यह उनकी संपत्ति है, मेरी नहीं। मैं सिर्फ देखभाल करती हूं।'
प्रोफेसर साने कहती हैं,
'लोग मुझे मूर्ख बुलाते हैं। मैं पागल हो सकती हूं, मगर मेरे लिए यह मायने नहीं रखता है, क्योंकि मेरे जीवन जीने का यही बेबाक तरीका है। मैं अपनी पसंद के अनुसार ही जिंदगी जीती हूं। मैंने कभी अपनी पूरी जिंदगी में बिजली की जरूरत महसूस नहीं की। लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि मैं कैसे बिना बिजली के जिंदगी जी लेती हूं, तो मैं उनसे पूछती हूं कि आप कैसे बिजली के साथ जिंदगी जीते हैं?'
पुणे के लोग प्राय: बॉटनी की प्रोफेसर रहीं डॉ साने को सुझाव देते हैं कि वह अपना घर बेच दें, उसका उन्हें अच्छा पैसा मिल जाएगा लेकिन उनका एक ही जवाब होता है कि वह बेचकर कहीं चली जाएंगी तो इन पेड़-पौधों और पक्षियों की देखभाल कौन करेगा।
वह तो इन सबके साथ ही यहां रहते हुए आखिरी सांस लेना चाहती हैं। खाना, घर और कपड़े जिंदगी जीने के लिए बुनियादी जरूरतें हैं, जो पूरी हो जाती हैं। बिजली रहे, न रहे, क्या फर्क पड़ता है।
प्रो.साने बताती हैं कि उनके माता-पिता और दादा-दादी भी इसी तरह रहते थे। जीवन जीने की यह उन्होंने अपने उन्ही बड़े-बुजुर्गों से सीखी है। उन्होंने वर्ष 1960 में पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक करने के बाद अपनी मर्जी से बिना बिजली के जीवनयापन करने का फैसला स्वयं लिया था। उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की पढ़ाई भी लैंप की ही रोखनी में पूरी की थी।