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'शाकाहारी मीट' वाले स्टार्टअप्स को बढ़ावा दे रहा PBFIA, फंडिंग से इनोवेशन तक में कर रहा मदद

PBFIA एक नॉन प्रॉफिट एसोसिएशन है. इसकी शुरुआत इसी साल करीब 7 महीने पहले हुई है. अभी तक इस एसोसिएशन के साथ करीब 68 स्टार्टअप जुड़ चुके हैं.

'शाकाहारी मीट' वाले स्टार्टअप्स को बढ़ावा दे रहा PBFIA,  फंडिंग से इनोवेशन तक में कर रहा मदद

Tuesday August 30, 2022 , 5 min Read

आज के वक्त में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) ने सभी को चिंता में डाल दिया है. तभी तो अब तमाम देश रीन्यूएबल एनर्जी की तरफ मुड़ गए हैं. कोयले से निर्भरता को खत्म किया जा रहा है और धीरे-धीरे ग्रीन एनर्जी को अपनाया जा रहा है. पेट्रोल-डीजल का इस्तेमाल कम करने के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को प्रमोट किया जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन (GreenHouse Emissions) करने में जानवरों का भी बहुत बड़ा योगदान है? क्या आप जानते हैं कि नॉन-वेज की मांग के चलते जानवर पाले और काटे जा रहे हैं, जिससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है? क्या आपको इस बात की भनक भी है कि दूध-दही के लिए जो गाय-भैंस पाली जा रही हैं, वह भी मीथेन गैस का उत्सर्जन करती हैं?

ये सब देखते हुए ही अब प्लांट बेस्ड मीट या यूं कहें कि प्लांट बेस्ट फूड्स की डिमांड बढ़नी शुरू हुई है. प्लांट बेस्ट फूड्स दिखने में और कुछ हद तक खाने में भी नॉनवेज या एनिमल प्रोडक्ट जैसे लगते हैं. बहुत सारे स्टार्टअप इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं. कोई प्लांट बेस्ड मिल्क बना रहा है तो कोई प्लांट बेस्ड चिकन या मटन बना रहा है. उत्तर भारत में तो सोया चाप को वेज चिकन की तरह ही देखा जाता है और खूब खाया जाता है. हालांकि, इस फील्ड में काम करने वाले स्टार्टअप काफी छोटे हैं, इसलिए उनकी मदद कर रहा है प्लांट बेस्ड फूड इंडस्ट्री एसोसिएशन यानी पीबीएफआईए (PBFIA).

पहले जानिए क्या है ये एसोसिएशन?

PBFIA एक नॉन प्रॉफिट एसोसिएशन है, जिसकी शुरुआत की है संजय सेठी ने. वह इस एसोसिएशन के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर हैं. इसकी शुरुआत इसी साल करीब 7 महीने पहले हुई है. अभी तक इस एसोसिएशन के साथ करीब 68 स्टार्टअप जुड़ चुके हैं. यह एसोसिएशन प्लांट बेस्ड फूड्स की फील्ड में काम कनरे वाले तमाम स्टार्टअप्स की मदद करता है. पिछले कुछ सालों में देश में वीगन होने का ट्रेंड तेजी से चला है. वीगन यानी ऐसे प्रोडक्ट से बनी चीजें खाने वाला, जो ना ही मांसाहारी हों ना ही उनका जानवरों से कोई लिंक हो. यानी वीगन लोग दूध, दही जैसी चीजें भी नहीं खाते, सिर्फ पेड़-पौधों पर आधारित चीजें ही खाते हैं.

क्यों जरूरत पड़ी वीगन होने की?

संजय सेठी कहते हैं कि करीब 14 फीसदी ग्रीन हाउस गैस का इमिशन एग्रिकल्चर फील्ड से होता है. इसमें भी करीब 9 फीसदी सिर्फ पशुपालन से आता है. वह बताते हैं कि गाय-भैंस के पेट में 4 हिस्से होते हैं, इसी वजह से वह अपने खाने को दोबारा मुंह में वापस लाकर जुगाली कर पाती हैं. उनका पेट इतना कॉम्प्लेक्स होता है कि वह भूसे जैसी चीज को भी आसानी से पचा लेती हैं. हालांकि, इसी वजह से जब वह डकार मारती हैं या गैस निकालती हैं तो मीथेन गैस निकालती हैं, जो वातावरण के लिए हानिकारक है. जानवरों के लिए लगाए जाने वाले चारे में कीटनाशक और फर्टिलाइजर डाले जाने से भी वातावरण दूषित होता है.

क्यों बनाना पड़ा ये एसोसिएशन?

यह एसोसिएशन बनाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि प्लांट बेस्ड फूड इंडस्ट्री के स्टार्टअप्स के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं था. ऐसे में उनकी बात को कभी ठीक से सुना नहीं जा रहा था, तो कभी स्टार्टअप खुद ही अपनी बात को ठीक से कह नहीं पा रहे थे. ऐसे में जरूरत थी एक ऐसे एसोसिएशन की जो पॉलिसी लेवल से लेकर हर तरीके से उन्हें अच्छे से दुनिया के सामने रख सके. सेठी कहते हैं कि बहुत से लोग खाने की प्लेट और वैल्यू चेन से जानवर या उससे जुड़े प्रोडक्ट को छोड़ना चाहते हैं.

कैसे काम करता है ये एसोसिएशन?

यह एसोसिएशन सबसे ज्यादा स्टार्टअप्स की पॉलिसी लेवल पर मदद करता है. इसके अलावा यह एसोसिएशन उससे जुड़े तमाम स्टार्टअप्स की निवेश में या यूं कहें कि फंडिंग में भी मदद करता है. साथ ही यह एसोसिएशन इनोवेशन और सप्लाई चेन में भी मदद करता है. यानी यह एसोसिएशन उससे जुड़े सभी स्टार्टअप्स की हर संभव मदद करता है, जिससे उनकी ग्रोथ हो सके.

क्या है एसोसिएशन का रेवेन्यू मॉडल

संजय सेठी बताते हैं कि PBFIA को 4 तरीकों से पैसे मिलते हैं, जिससे एसोसिएशन की ऑपरेशनल कॉस्ट निकलती है. पहला है 10 हजार रुपये की मेंबरशिप फीस, बड़े मेंबर से 1 लाख रुपये की सालाना मेंबरशिप फीस ली जाती है. दूसरा तरीका है सरकारी मदद. सरकार की तरफ से भी एसोशिएशन को मदद दी जाती है. तीसरा तरीका है स्पॉन्सरशिप और चौथा तरीका है डोनेशन.

pbfia

चुनौतियां भी कम नहीं

प्लांट बेस्ड फूड की इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की राह में चुनौतियां भी बहुत सारी हैं. सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि चिकन-मटन खाने वालों को प्लांट बेस्ड फूड खिलाकर नहीं टाला जा सकता है. संजय सेठी बताते हैं कि मांसाहार खाने वालों को शाकाहारी खाना देकर मनाना सबसे मुश्किल काम है. लोग चिकन जैसा स्वाद, आकार, खुशबू सब चाहते हैं, लेकिन वैसा मुमकिन नहीं. एक बड़ी चुनौती ये भी है कि डिस्ट्रिब्यूशन में दिक्कत आ रही है. सुपर मार्केट में लिस्टिंग फीस बहुत ज्यादा मांगते हैं, लेकिन छोटे स्टार्टअप वह कीमत नहीं चुका पा रहे. ऐसे में एसोसिएशन कोशिश कर रहा है कि वह सारे स्टार्टअप की तरफ से सुपर मार्केट में जगह ले और अपने स्टार्टअप्स के प्रोडक्ट को वहां दिखाए.

क्या है भविष्य की प्लानिंग?

इस एसोसिएशन से तेजी से प्लांट बेस्ड फूड बनाने वाले स्टार्टअप जुड़ रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में उनके लिए बेहतर सुविधा मुहैया कराना इस एसोसिएशन का मुख्य मकसद है. प्लांट बेस्ड फूड को लेकर नवरात्रि के दौरान एक कैंपेन भी चलाया जाएगा, जिससे लोगों में इसकी जागरूकता बढ़ेगी. दुनिया के टॉप साइंटिस्ट और इंस्टीट्यूशन से जुड़कर स्टार्टअप की ग्रोथ के बारे में बात की जाएगी. आईआईटी दिल्ली और आईआईटी बेंगलुरु में इसके बारे में बात की जा चुकी है, अब आईआईटी लखनऊ में भी जाकर यह एसोसिएशन प्लांट बेस्ट फूड स्टार्टअप की बात रखेगा.