प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की अवधि पांच साल के लिए बढ़ी, 50 लाख नए लोगों को मिलेगा रोजगार
भारत सरकार ने रोजगार उत्पादन की अपनी महत्वाकांक्षी योजना को आगामी पांच सालों के लिए बढ़ाकर इसकी अवधि 2025-26 तक कर दी है, जिस पर कुल 13, 554.42 करोड़ रु. खर्च किए जाएंगे.
भारत में बेरोजगारी की भारत सरकार ने प्राइम मिनिस्टर एंम्प्लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम (प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम) को और पांच सालों के लिए बढ़ा दिया है. पहले यह कार्यक्रम वर्ष 2021-22 तक की अवधि के लिए ही लागू किया गया था. अब इसे बढ़ाकर वर्ष 2025-26 तक के लिए कर दिया गया है. इस महत्वाकांक्षी सरकारी योजना पर कुल 13, 554.42 करोड़ रु. खर्च किए जाएंगे.
देश भर में बेरोजगार युवाओं के लिए माइक्रो एंटरप्राइज यानि छोटे-छोटे उद्यमों के जरिए रोजगार पैदा करना इस योजना का मकसद है. इन छोटे उद्यमों में कृषि उद्यम से जुड़े क्षेत्र शामिल नहीं हैं. योजना की अवधि बढ़ाने के साथ-साथ इसके नियमों में भी कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं.
वर्ष 2008-09 में इस योजना की शुरुआत हुई थी. तब से लेकर अब तक सरकार कम से कम 7.8 लाख छोटे उद्यमों को आर्थिक सहायता दे चुकी है. तकरीबन 19,995 करोड़ रु. की आर्थिक सहायता के साथ ये 7.8 लाख छोटे उद्यम 64 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं.
इनमें 80 फीसदी से ज्यादा उद्यम छोटे-छोटे गांवों और कस्बाई क्षेत्रों में हैं और 50 फीसदी उद्यमों को चलाने वाले अनूसूचित जाति, जनजाति के लोग और महिलाएं हैं.
इस योजना की अवधि को आगे बढ़ाने के साथ-साथ सरकार ने जो महत्वपूर्ण बदलाव किया है, वो ये कि मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों के लिए दी जाने वाली लागत राशि को बढ़ाकर 50 रु. कर दिया गया है. पहले यह राशि सिर्फ 25 लाख रु. थी.
इसके अलावा सेवा इकाइयों के लिए पहले सरकार 10 लाख रु. देती थी, जो राशि अब बढ़ाकर 20 लाख रु. कर दी गई है.
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के कुछ नियमों में इस तरह बदलाव हुआ है कि अब ग्रामोद्योग और ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा में परिवर्तन हो गया है. अब जो भी क्षेत्र पंचायती राज संस्थानों के तहत आते हैं, उन्हें गांव माना जाएगा. नगर निगम के तहत आने वाले क्षेत्र शहर की श्रेणी में आएंगे.
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत मिलने वाली सब्सिडी के मौजूदा नियम पहले की तरह ही रहेंगे. अभी अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, महिला, ट्रांसजेंडर और दिव्यांगों आवेदकों को सामान्य श्रेणी के आवेदकों के मुकाबले ज्यादा सब्सिडी मिलती है. शहरी क्षेत्र के उद्यमों को 25 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमों को 35 फीसदी सब्सिडी दी जाती है. सामान्य श्रेणी के आवदेकों के लिए यह सब्सिडी शहर और गांव में क्रमश: 15 और 25 फीसदी है.
Edited by Manisha Pandey