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कभी बेटियाँ होने पर झेलनी पड़ी थी प्रताड़ना, आदिवासी महिलाओं के लिए काम कर राष्ट्रपति से पाया सम्मान

आज पडाला भूदेवी को आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में एक रोल मॉडल की तरह देखा जाता है। गौरतलब है कि पडाला भूदेवी खुद भी आंध्र प्रदेश के सबरा आदिवासी समूह से आती हैं, जिनके प्रयासों की तारीफ खुद पीएम मोदी भी कर चुके हैं।

कभी बेटियाँ होने पर झेलनी पड़ी थी प्रताड़ना, आदिवासी महिलाओं के लिए काम कर राष्ट्रपति से पाया सम्मान

Thursday April 22, 2021 , 4 min Read

"शादी के महज कुछ सालों बाद ही पडाला भूदेवी को एक बेटी हुई, इसके बाद उन्हे दूसरी बेटी हुई और फिर तीसरी बेटी हुई। तीन बेटियों के जन्म के साथ ही ससुराल वालों का रवैया उनके प्रति रूखा होता चला गया। यहाँ से पडाला देवी के जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ और उन्हे ससुराल में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा।"

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पडाला भूदेवी, फोटो साभार: Deccan Chronicle

पडाला भूदेवी को आदिवासी महिलाओं और विधवा महिलाओं के लिए किए गए उनके प्रयासों की वजह से आज पूरे भारत भर में जाना जा रहा है। पडाला भूदेवी की यह कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरणा से भरपूर है जिसे आज हर कोई सम्मान दे रहा है।


आज पडाला भूदेवी को आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में एक रोल मॉडल की तरह देखा जाता है। गौरतलब है कि पडाला भूदेवी खुद भी आंध्र प्रदेश के सबरा आदिवासी समूह से आती हैं। मालूम हो कि पडाला भूदेवी के प्रयासों की तारीफ खुद पीएम मोदी भी कर चुके हैं।

संघर्ष भरा शुरुआती जीवन

पडाला भूदेवी शुरुआत से ही पढ़ाई में तेज़ थी, लेकिन उनकी शादी बेहद कम उम्र में कर दी गई। जब पडाला भूदेवी की शादी हुई तब वह महज 11 साल की ही थीं। इसके बाद से ही पडाला भूदेवी के लिए परेशानियाँ शुरू हो गईं। मायके से ससुराल पहुँचने के साथ ही पडाला भूदेवी को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ गई।


शादी के महज कुछ सालों बाद ही पडाला भूदेवी को एक बेटी हुई, इसके बाद उन्हे दूसरी बेटी हुई और फिर तीसरी बेटी हुई। तीन बेटियों के जन्म के साथ ही ससुराल वालों का रवैया उनके प्रति रूखा होता चला गया। यहाँ से पडाला देवी के जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ और उन्हे ससुराल में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा।

छोड़ दिया ससुराल, हुई नई शुरुआत

पडाला भूदेवी के लिए अब उनके ससुराल में रहना बदतर होता जा रहा था और अंततः उन्होने एक बड़ा फैसला लिया और साल 2000 में वह अपनी तीनों बेटियों के साथ अपने पिता के पास वापस आ गईं। मायके आने के बाद पडाला भूदेवी ने श्रीकाकुलम में आदिवासी परिवार की महिलाओं के बदतर हालात देखे और यहीं से उन्होने इस दिशा में काम करने का मन बनाया।


पडाला भूदेवी ने सबसे पहले आदिवासी महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों के बारे में गहन अध्ययन किया और इसके बाद उन्होने आदिवासी समुदाय की महिलाओं को इस बारे में जागरूक करना शुरू कर दिया। यह सब देख पडाला भूदेवी के पिता ने उन्हे चिन्ना आदिवासी विकास सोसाइटी की जिम्मेदारी भी थमा दी। पडाला भूदेवी के पिता द्वारा साल 1996 में शुरू किए गए इस खास संगठन का काम आदिवासी समुदाय की मदद करना था।

पीछे मुड़कर नहीं देखा

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सोसाइटी से जुड़ने के बाद पडाला भूदेवी आदिवासी लोगों के उत्थान में पूरी तरह समर्पित हो गईं। इस दौरान उन्होने अपनी तीनों बेटियों की परवरिश की और साथ ही महिलाओं को कृषि उद्यमी बनने म मदद करना शुरू कर दिया। जब 2007 में पडाला भूदेवी के पिता का देहांत हुआ तब उन्होने इस संगठन का नाम बदलकर अपने पिता के नाम पर चिन्नाया आदिवासी विकास ट्रस्ट कर दिया।


पडाला भूदेवी के प्रयासों का नतीजा था कि आदिवासी क्षेत्रों में पानी, सड़क, बिजली और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंच सकीं। इतना ही नहीं पडाला भूदेवी ने इसके बाद देश के तमाम हिस्सों के साथ ही कई अन्य देशों का भी भ्रमण किया और वहाँ पर उन्होने कई तरह के काम सीखे, जिसे बाद में उन्होने आदिवासी महिलाओं को उन कामों को सिखाने का काम किया और उन्हे उद्यमी बनाया।


साल 2020 में विश्व महिला दिवस के मौके पर पडाला भूदेवी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने महिला शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था, हालांकि इस पुरस्कार से पहले अधिकांश लोग उनकी संघर्ष और प्रेरणा से भरी कहानी से अंजान ही थे।


Edited by Ranjana Tripathi