‘Dhara’ का जलेबी ऐड: जब बच्चे जलेबी के लालच में घर छोड़कर भागने लगे
YourStory हिंदी की सीरीज़ 'प्रचार गाड़ी' (Prachaar Gaadi) में हम आपको बताएंगे इंडिया में बने कुछ ऐसे ऐड्स (ads) की कहानी जिन्होंने न सिर्फ विज्ञापनों की दुनिया को, बल्कि सामान को बेचे और खरीदे जाने के पैटर्न को ही बदल दिया. आज हम आपको ‘धारा’ रिफाइंड ऑइल के जलेबी ऐड की कहानी बता रहे हैं.
1990 का दशक और मुद्रा ऐड एजेंसी का दफ्तर. धारा रिफाइंड ऑइल की बिक्री में भारी गिरावट आ गई थी और एजेंसी के ऊपर इस वक़्त प्रेशर था एक ऐसा विज्ञापन बनाने का जो लोगों का दिल पिघला दे. एक ऐसा विज्ञापन जो लोगों को मजबूर कर दे कि अगली बार घर में किराने का सामान आए तो तेल के नाम पर धारा ही आए. तभी एक सुझाव आता है कि ऐसा ऐड बनाते हैं जिसमें एक बच्चा नाराज़ हो जाए और मां उसे मनाने के लिए कचौरी बनाए. दूसरा सुझाव आता है कि इस बच्चे को गुस्से में घर छोड़ते हुए दिखाया जाए और बस स्टैंड से सीन ओपन किया जाए. तीसरा सुझाव आता है कि बस स्टैंड की जगह रेलवे स्टेशन दिखाना चाहिए क्योंकि वो ज्यादा रोमैंटिक लगता है. अंततः जो विज्ञापन बनता है उसमें बच्चा घर से भाग जाता है, रेलवे स्टेशन पर रामू काका को मिलता है. रामू काका बताते हैं कि घर में तो जलेबी बनी है. बच्चे को महसूस होता है कि ये घर छोड़ने के लिए सही समय नहीं है. 'जलेबी', कहते हुए बच्चे की आंखें चमक उठती हैं.
YourStory हिंदी की सीरीज़ 'प्रचार गाड़ी' (Prachaar Gaadi) में हम आपको बताएंगे इंडिया में बने कुछ ऐसे ऐड्स (ads) की कहानी जो हमें हमेशा के लिए याद रह गए. वो ऐड्स जिन्होंने विज्ञापनों के साथ साथ कंज्यूमर की परिभाषा भी हमेशा के लिए बदल दी. आप समझ ही गए होंगे कि आज हम बात कर रहे हैं धारा रिफाइंड ऑइल के जलेबी ऐड की. एक ऐसा ऐड जो 90 के दशक में टीवी देखने वालों को आजतक याद है.
इस ऐड की कहानी जानने के पहले धरा रिफाइंड ऑइल की कहानी जानना ज़रूरी है. और धारा रिफाइंड ऑइल की कहानी समझने के पहले समझते हैं ऑपरेशन गोल्डन फ्लो. ये नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) का प्रोग्राम था. इस प्रोग्राम की मदद से स्मॉल स्केल ऑयलसीड किसान और NDDB (नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड) साथ में आए थे.
1970 के दशक के मध्य तक भारत खाने के तेल के प्रॉडक्शन के मामले में लगभग 95 प्रतिशत आत्मनिर्भर था. 1973-74 तक सरसों, मूंगफली और कॉटनसीड तेल की भारत में खाने के तेल की कुल खपत में हिस्सेदारी 96 प्रतिशत थी. इन तेलों का घरेलू उत्पादन स्मॉल स्केल प्रोसेसिंग यूनिट्स और स्थानीय खरीद व डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क्स के जिम्मे था. लेकिन बाद में यह आत्मनिर्भरता घटती चली गई और इंपोर्ट पर निर्भरता बढ़ती गई.
साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और इसके अगले ही साल सूखा पड़ गया. इन दोनों घटनाओं की वजह से भारत में दूध, घी और खाने के तेल की बेहद ज्यादा कमी हो गई. हालांकि तब तक वनस्पति व हाइड्रोजेनेटेड वेजिटेबल तेल मार्केट में आने लगे थे. साल 1977 में जब जनता पार्टी देश की सत्ता में आई तो तत्कालीन वित्त मंत्री हीरूभाई एम पटेल ने देश में श्वेत क्रांति/दुग्ध क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन (Dr. Varghese Kurian) से खाने के तेल के मामले में भी ऐसी ही क्रांति करने की अपील की. इसके बाद नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) ने 23 अगस्त 1988 को धारा को लॉन्च किया.
धारा ने लॉन्च होने के 3 से 4 सालों के अंदर ही खाद्य तेल में संगठित बाजार के आधे से ज्यादा हिस्से पर कब्जा जमा लिया. धारा पहला ब्रांड था, जो सबसे पहले टैम्पर प्रूफ पैक लेकर आया था. साल 2003 तक धारा के डिस्ट्रीब्यूशन का अधिकार अमूल वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) के पास था. फिर NDDB, धारा ब्रांड को मदर डेयरी के स्वामित्व में ले आया. मदर डेयरी, NDDB की पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी है. 1990 के दशक में धारा सबसे बड़ा खाद्य तेल ब्रांड बन गया. 80 के दशक में धारा रिफाइंड ऑयल सब्सिडाइज था, जिसके चलते यह देश का सबसे ज्यादा बिकने वाला खाद्य तेल ब्रांड बन चुका था.
मगर समय बदलने वाला था. 1990 के दशक की शुरुआत में सरकार से मिलने वाली सब्सिडी विदड्रॉ कर ली गई. तब तक लोगों के बीच में धारा की इमेज 'राशन' तेल वाली बन गई थी जो बेहद सस्ता मिलता था. इसलिए कोई भी इसकी पुरानी कीमत से अधिक नहीं देना चाहता था. इसके चलते धारा की बिक्री को भारी गिरावट झेलनी पड़ी.
धारा को एक अच्छे ऐड कैंपेन की ज़रुरत थी. इसका जिम्मा आया मुद्रा अहमदाबाद पर. मुद्रा ने कई क्रिएटिव कैंपेन ट्राय किए. इसी दौर में 'धारा धारा शुद्ध धारा' टैगलाइन का भी जन्म हुआ. मगर एक वक़्त सबसे ज्यादा बिकने वाले इस तेल की बिक्री गिरती ही गई. आलम ये था कि एक लाख टन से गिरकर बिक्री 30,000 टन पर सिमट गई. ये वो वक़्त था जब मुद्रा के हेड जगदीश आचार्य को महसूस हुआ कि एक ऐसा ऐड कैंपेन बनाना ज़रूरी है कि लोग दामों के बारे में न सोचकर इस तेल की इमोशनल वैल्यू से जुड़ें.
इकनॉमिक टाइम्स से हुई एक बातचीत में जगदीश आचार्य बताते हैं कि उनके दिमाग में चार चीजें घूम रही थीं: बच्चा, मां, खाना और एक इमोशनल कनेक्शन जो इन्हें साथ में जोड़े. ये वो दौर था जब लगभग हर ऐड में बच्चे दिखते थे. चुनौती थी कुछ अलग बनाने की.
मुद्रा ने एक स्क्रिप्ट फाइनल की जिसमें बच्चा घर छोड़कर चला जाता है और कचौरी के लालच में वापस आ जाता है. जगदीश आचार्य ने जब ये स्क्रिप्ट अपनी मां को सुनाई तो मां ने कहा, इस स्क्रिप्ट में एक बुनियादी गलती है. छोटे बच्चे कचौरी के दीवाने नहीं होते क्योंकि वो उनके लिए स्पाइसी होती है. साथ ही साउथ इंडिया में कचौरी का कोई सीन नहीं है. बच्चे के हाथ में जलेबी होनी चाहिए. और इस तरह जन्म हुआ धारा के जलेबी ऐड का.
और हां, जलेबी के ऐड का सबसे महत्वपूर्ण पहलू, वो नन्हा बच्चा जिसका नाम बबलू था. बबलू यानी पारजान दस्तूर इस ऐड के लिए ऐड मेकर्स की पहली चॉइस नहीं थे. लेकिन जिस बच्चे को ऐड के लिए फाइनल किया गया था, वो शूट के टाइम बीमार पड़ गया. पारजान कुछ वक़्त पहले से बच्चों के लिए वॉइसओवर किया करते थे. उनसे जब ट्रायल करवाया गया तो 'जलेबी' बोलते वक़्त उनकी आंखों में आई चमक पर ऐडमेकर्स दिल हार बैठे.
पूरे 38 टेक्स के बाद बना ये विज्ञापन घर घर में छा गया. धारा की सेल्स पर लगा ग्रहण हट गया. और ऐड पूरे 5 साल तक टीवी पर चलता रहा. जब मुद्रा ने डॉक्टर कुरियन से कहा कि अब कोई दूसरा ऐड मार्केट में उतारा जाए तो उन्होंने कहा, "अगर ये ऐड टीवी से चला गया तो मैं उस बच्चे को कैसे देख पाऊँगा!"
ऐड के रिलीज के बाद ऐसा भी हुआ कि लोग चिंता जताने लगे कि कहीं बच्चे इस ऐड से प्रेरणा लेकर घर से भागने न लग जाएं. कुछ वक़्त के लिए ऐड बैन भी हुआ मगर टीवी पर वापस आ गया. दिलचस्प ये है कि ऐसी खबर भी आई कि ये ऐड देखने के बाद एक बच्चा अपने घर से भाग गया. इकनॉमिक टाइम्स से हुई बातचीत में आचर्य बताते हैं कि जब ये खबर डॉक्टर कुरियन को दी गई तो उन्होंने कहा, "मुबारक हो, ऐड ने अपना असर छोड़ना शुरू कर दिया है."
2002 में धारा ने इस ऐड का सीक्वल निकाला. जिसमें पारजान अपने छोटे भाई को घर छोड़ने से रोक रहे होते हैं. जलेबी का लालच देकर. वहीं 2018 में ऊबर ईट्स ने इस ऐड को पारजान के साथ रिक्रिएट किया जिसमें युवा पारजान एक बहस के बाद घर छोड़कर जाते हैं और तब लौट आते हैं जब उन्हें बताया जाता है कि बिरयानी ऑर्डर की गई है.
आज भी जब लोग जलेबी देखते हैं, इतने साल बाद भी इस विज्ञापन को याद करते हैं. एक विज्ञापन के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है! क्या आपके पास भी इस ऐड जुड़ी कोई याद है?