अंग्रेजों के गुलाम भारत में ब्रिटेन के प्रिंस ने किया था बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का उद्धाटन
जब महात्मा गांधी और कांग्रेस असहयोग आंदोलन कर रहे थे, उसी समय ब्रिटेन के राजकुमार बनारस की यात्रा पर आए थे.
आज 13 दिसंबर है. एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के उद्घाटन का 101वां साल. पिछले साल 13 दिसंबर को जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस पहुंचे तो देश के अखबरों की सुर्खियां थीं कि इसी दिन 1921 में ब्रिटेन के राजकुमार ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ भी बनारस आए थे, बीएचयू का उद्घाटन करने.
उस वक्त के ऐतिहासिक घटनाक्रम काफी रोचक हैं. अनथक प्रयासों के बाद महामना मदन मोहन मालवीय ने ऐनी बेसेंट के साथ मिलकर भारत के उस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की नींव डाली थी, जो आज 101 साल बाद भी एशिया की सबसे बड़े भूभाग में फैली सबसे विशालकाय यूनिवर्सिटी है.
वो आजादी की लड़ाई का दौर था. 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की और भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेजों के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग करना, उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में काम करना, उनके बनाए सामान खरीदना बंद कर दें. यह देश में पहली बार बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा सत्याग्रह था.
इसी समय मदन मोहन मालवीय ने वेल्स के राजकुमार प्रिंस एडवर्ड को बीएचयू का उद्घाटन करने के लिए भारत आमंत्रित किया. इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए मालवीय ने अंग्रेजों की भी मदद ली थी.
11 मार्च 1915 को ब्रिटिश भारत के तत्कालीन शिक्षा मंत्री हरकोर्ट बटलर ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय विधेयक पेश किया था. इसे पेश करते हुए अपने भाषण में उन्होंने कहा:
“माय लॉर्ड, यह कोई साधारण अवसर नहीं है. आज हम भारत में नई उम्मीदों के साथ एक नए और उन्नत श्रेणी के विश्वविद्यालय को जन्म लेते हुए देख रहे हैं. इस विश्वविद्यालय में ऐसी कई विशेषताएं हैं, जो बाकी मौजूदा विश्वविद्यालयों से इसे अलग करती हैं. जैसेकि यह एक शिक्षण और आवासीय विश्वविद्यालय होगा; दूसरे, यह सभी जातियों और संप्रदायों के लिए खुला होगा. और तीसरे इसके संचालन और प्रबंधन का पूरा काम हिंदू समुदाय के लोगों के द्वारा किया जाएगा.”
पूरे देश में असहयोग आंदोलन की हवा थी और ऐसे में गांधी और कांग्रेस ने मिलकर प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड की भारत यात्रा का विरोध करने का फैसला लिया. मदन मोहन मालवीय गांधी जी के इस फैसले से सहमत नहीं थे. उन्होंने बीएचयू को अंग्रेजी माध्यम से अंग्रेजी की पढ़ाई कराने वाली यूनिवर्सिटी के तौर पर स्थापित किया था. क्योंकि तब पूरे देश और दुनिया में अंग्रेजी ताकत की, सत्ता की, इंटरनेशनल कम्युनिकेशन की और कॅरियर में आगे बढ़ने की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी थी.
साथ ही वे अंग्रेजों से देश की आजादी के पक्ष में तो थे, लेकिन अंग्रेजों के विरोध में नहीं थे. वे चाहते थे कि प्रिंस एडवर्ड भारत आकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का उद्घाटन करें.
जब गांधीजी, उनके सहयोगियों और कांग्रेस कमेटी ने प्रिंस की भारत यात्रा का विरोध करना शुरू किया तो मदन मोहन मालवीय ने इसका विरोध किया. उन्होंने न सिर्फ प्रिंस का बनारस में स्वागत किया, बल्कि उनके हाथों यूनिवर्सिटी का उद्घाटन भी किया गया. ये 13 दिसंबर, 1921 की बात है.
Edited by Manisha Pandey