72 किमी. लंबे खारदूंग ला चैलेंज में दूसरी बार हिस्सा लेने पूरी तैयारी के साथ पहुंची हैं 66 साल की पुष्पा भट्ट
66 वर्षीय एक अल्ट्रामैराथन रनर, पुष्पा भट्ट दुनिया के सबसे ऊंचे अल्ट्रामैराथन, खारदुंग ला चैलेंज में हिस्सा लेने जा रही हैं. इस चैलेंज में पुष्पा दूसरी बार हिस्सा लेने पहुंची हैं, यह मैराथन 9 सितंबर को होने वाली है.
Upasana
Tuesday September 06, 2022 , 8 min Read
तीन साल पहले की बात है, जब पुष्पा भट्ट 63 साल की थीं, तब उन्होंने समुद्र तल से 17,852 फीट की ऊंचाई पर 72 किमी लंबे ट्रैक पर दुनिया के सबसे ऊंचे अल्ट्रामैराथन, खारदुंग ला चैलेंज में हिस्सा लिया था. उन्होंने पहले तीन स्ट्रेच तो समय पर खत्म कर लिए थे. मगर आखिर और चौथे स्ट्रेच में पुष्पा किस्मत के हाथों मात खा गईं और चार मिनट की देरी से कट-ऑफ पार करने से चूक गईं. उनकी हार के पीछे गलत काउंटडाउन को वजह बताया जाता है. वो कहती हैं, 'मैं सदमे में थी, मेरी बेटी और मेरे आस-पास मौजूद सभी लोग रो रहे थे. मुझे लगता है कि हमें शुरू से ही कमजोर दिखने या भावुक होने की बजाय, भावनाओं को छिपाने की ट्रेनिंग दी जाती है. हारने के बाद मैं बहुत परेशान थी लेकिन अपना दुख जाहिर नहीं कर पा रही थी.'
दिमाग की ट्रेनिंग है अहम
पुष्पा समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊंचाई पर जिस्पा से अपनी कहानी हमें बता रही थीं. वहां वो 9 सितंबर को होने वाले 2022 लद्दाख अल्ट्रामैराथन के लिए ट्रेनिंग ले रही हैं. अधिक ऊंचाई पर माइंड ट्रेनिंग बिल्कुल आसान हीं होता है. पुष्पा ने एक दिन पहले ही जिस्पा के एक होटल में चेकइन किया था. जिस होटल में वो रुकी थीं वो नैशनल हाईवे पर था, और गाड़ियों की आवाज़ से उनकी नींद काफी टूटती थी. वो जोर देते हुए कहती हैं, यहां पर दिमाग की ट्रेनिंग बहुत अहम हो जाती है. आज हम तेज धूप में जिस्पा से दारचा तक पैदल चले. मैं सोच रही थी- मैं क्या कर रही हूं, इतना भागना क्यों, मैं आसानी से भी ये काम कर सकती हूं. इस तरह के खयाल हमेशा मन में आते रहते हैं.
पुष्पा कहती हैं, ‘इसके अलावा, पहले हम लोग सोलंग घाटी में थे जो 6,000 फीट की ऊंचाई पर थी. मगर जिस्पा, जहां हम हैं वो समुद्र से 10,000 फीट से और ऊपर है. इस मौसम में चलना बहुत मुश्किल होता है, आपका दिमाग आपको हार मान जाने के लिए कहेगा. लेकिन, आपको अपने दिमाग को अनुशासित करना सीखना होगा. आपको अपने दिमाग को दिखाना होगा कि बॉस कौन है.’ दिमाग पर कंट्रोल करने के अलावा पुष्पा की डाईट भी बहुत सख्त है. वह ज्यादातर समय साफ खाने की कोशिश करती हैं, कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम करती हैं. चिकन, अंडे, दाल, फल और सब्जियां, दही और प्रोटीन सप्लिमेंट से न्यूट्रिएंट्स प्राप्त करती हैं.
पुष्पा के लिए यहां तक पहुंचना बिल्कुल आसान नहीं था. उनकी जिंदगी हर कदम पर चुनौतियों से भरी रही है. मुंबई में जन्मी और पली-बढ़ीं, 12 साल में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. उन्होंने 17 साल की उमर से ही काम करना शुरू कर दिया था और अपनी पढ़ाई के लिए खुद ही पैसे जुटाए. उन्होंने एल्फिनस्टोन कॉलेज से बीए किया और फिर नारसी मुंजी इंस्टीट्यू ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए की डिग्री ली. उन्होंने गुडलैस नेरोलैक पेंट्स में सेक्रेटरी के साथ अपना करियर शुरू किया. वहां 13 साल काम करने के बाद पुष्पा ल्यूपिन लैब्स से जुड़ गईं. वहां भी उन्होंने एक दो साल किया और फिर शिपिंग कंपनी मार्स्क को जॉइन कर लिया.
वो कहती हैं, ‘मैंने आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए 50 साल की उम्र में मार्सक से इस्तीफा दे दिया. मैं उस समय तैरती थी, जिस वजह से मुझे पीलिया ही गया था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे पीलिया हुआ है, और मुझे लगा कि मेरी तनाव भरी नौकरी मेरे करियर और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही थी. मैं 17 साल की उम्र से काम कर रही थी और कुछ अलग करना चाहती थी.’
पुष्पा ने मलाड में लॉरियल सैलून की फ्रेंचाइजी में निवेश किया और कंसल्टेंट के पोस्ट पर एचआर असाइनमेंट भी लिया. आंत्रप्रेन्योर बनकर पुष्पा को कुछ खास मजा नहीं आ रहा था. इसलिए महामारी के दौरान जब उन्हें खाली समय मिला तो उन्होंने उसे लपक लिया. उन्होंने 65 साल की उम्र में एक योग्य न्यूट्रिशनिस्ट बनने के लिए अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स न्यूट्रिशन में एक कोर्स किया. पुष्पा को घूमने का भी बड़ा शौक है, और वो कविताएं भी लिखती हैं. लद्दाख मैराथन में उनकी पहली दौड़ को रनर्स ट्राइब नाम के एक संकलन में चित्रित भी किया गया है.
ऐसे चढ़ा खारदुंग ला का क्रेज
पुष्पा ने 47 साल की उम्र में दौड़ना शुरू कर दिया था. उनके सहयोगी स्टैंडर्ड चार्टर्ड मुंबई मैराथन में भाग लेने की योजना बना रहे थे, तो पुष्पा ने भी इसे आजमाने का फैसला किया. वो लोग हर दिन 10 किमी या 15 किमी ट्रेनिंग लेने की तैयारी कर रहे थे और पुष्पा सोच रही थीं कि मैं तो 15 मिनट भी नहीं चल सकती. उन्हें समझ में आया कि दौड़ना बहुत कठिन काम है लेकिन वह कायम रहीं और इसे गंभीरता से लिया. 2014 के बाद से, उन्होंने टाटा मुंबई मैराथन, सतारा मैराथन और ठाणे मैराथन सहित आठ अल्ट्रामैराथन और 11 फुल मैराथन दौड़ लगाई हैं और लद्दाख मैराथन को पूरा किया है. पुष्पा ने 2018 में न्यूयॉर्क मैराथन भी दौड़ी, जहां उन्होंने सभी ऊंचाईयों, पुलों और भारी भीड़ के बावजूद 4 घंटे 58 मिनट का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. उन्होंने सितंबर 2019 में बर्लिन मैराथन भी पूरा किया. खारदुंग ला चैलेंज उनके दिमाग में तब आया जब उन्होंने 2013 में एक पर्यटक के रूप में इस जगह का दौरा किया था.
वह याद करती हैं, “मैंने वहां बहुत से लोगों को साइकिल चलाते देखा, मैं खारदुंग ला के शीर्ष पर थी और सांस लेने के लिए जूझ रही थी. वह अनुभव मेरे साथ रहा. लद्दाख मैराथन के समय की बात है, मैं एक शुक्रवार को लेह बाजार में थी और मैंने वहां कई लोगों को दौड़ते हुए देखा. मैं देखकर हैरान हो गई- ऐसे उबड़-खाबड़ इलाके में लोग 72 किमी लंबे ट्रैक पर दौड़ रहे हैं. मैंने सोचा जब क्वालीफाई कर ही लिया है तो क्यों न आगे बढ़ा जाए.
पुष्पा कम दृश्यता और फिसलन भरी पहाड़ियों के बीच, घने कोहरे में दौड़ीं. वह दो, तीन, पांच, और अंत में, साढ़े छह घंटे तक ढलान पर ऊपर-नीचे दौड़ती रहीं. चैलेंज की तैयारी करने के लिए पुष्पा लोनावला में रात में 60 किमी दौड़कर तैयारी कर रही थीं. "जैसे-जैसे हम बूढ़े होते हैं, हम मांसपेशियां खो देते हैं; जब आप बहुत दौड़ते हैं, तो आपको अच्छा स्टेमिना और मांसपेशियों, पीठ, कोर, घुटनों, हैमस्ट्रिंग की जरूरत होती है. वह कहती हैं, जब मुझे मालूम पड़ा कि मेरे घुटने में गठिया है, उस समय मेैं अक्सा बीच पर दो-तीन घंटे तक दौड़ती थी, और उसी से अपने घुटने को मजबूत भी किया. पिलाटेज ने भी मुझे बहुत फायदा पहुंचाया है. 9 सितंबर आने के साथ ही पुष्पा को उम्मीद है कि इतने दिनों से जिस चैलेंज के लिए तैयारी कर रही हैं उसे इस बार जीत कर रहेंगी.
वो बताती हैं आप जिस जगह दौड़ रहे हैं. वहां 50 फीसदी कम ऑक्सीजन है. ऐसी जगहों पर कभी कभी एक किमी पूरा करने में भी 20 मिटन लग जाते हैं. ऊंची नीची पहाड़ियों पर आपसे दौड़ा नहीं जाता लेकिन फिर आप देखते हैं कि 32 किमी तो हो ही गए हैं थोड़ा और सही. दौड़ते-दौड़ते जब आप 48 किमी पर पहुंचते हैं तो आपको महसूस होता है आप फिर थक गए हैं. जब आप नीचे की ओर भाग रहे होते हैं, तो यह आपकी पिंडली को चोट पहुंचाता है, जिससे यह आपके घुटने सख्त हो जाते हैं. यह एक बहुत ही कठिन मैराथन है, और युवा खुद को बहुत साहस देने की कोशिश करते हैं, मगर एक समय के बाद उनकी सांस फूलने लगती है और वो रेस से बाहर हो जाते हैं. कट-ऑफ 8, 10.5, 12 और 14 घंटे है.
दरअसल जब आप नीचे जा रहे होते हैं, तो यह आपके पिंडली में दर्द करता है. जी हां, यह घुटनों के लिए बहुत ही कठिन है. 'उम्र सिर्फ एक नंबर भर है, ये सिर्फ कहने में अच्छा लगता है, आपका शरीर इस बात को नहीं सुनता. पुष्पा भी इस बात पर सहमति जताते हुए कहती हैं, “जिस्पा आने से ठीक पहले, मैंने माथेरान के पास नेरल की ऊंचाई पर दौड़ लगाई, जहां 7 किलोमीटर लगभग 700 मीटर है. मैंने वहां 50 किमी की दौड़ लगाई. जब मैं 42 किमी पर थी तभी मेरे पिंडली में दर्द शुरू हुआ मगर एक पॉइंट पर आकर दर्द रुक गया.
आप कभी-कभी अपने शरीर की नहीं सुनते. दर्द तो हमेशा ही होता है. अगर आप इसे अनदेखा करना सीख जाते हैं, तो यह सकारात्मक परिणाम देता है.” वह अपने दोस्तों की भी बड़ी तारीफ करती हैं, जो हमेशा उनका आत्मविश्वास बढ़ाते रहते हैं. पुष्पा कहती हैं उनकी बेटी उनकी सबसे बड़ी चीयरलीडर है. “मैं सुबह लगभग 5 बजे उठती हूं, एक घंटे दौड़ती हूं, योग करती हूं, जिम जाती हूं, पॉडकास्ट सुनती हूं, खाना बनाती हूं और ऑफिस के लिए निकल जाती हूं. शाम को, मैं कुछ पढ़ती हूं और अपनी छत सूर्यास्त देखती हूंं. मैं अपनी बेटी और अपनी बहनों से बात करती हूं. रात 9.30 बजे तक बिस्तर पर होती हूं. रविवार को, मैं एक ग्रुप के साथ लंबी दौड़ लगाती हूं और उनके साथ नाश्ता भी करती हूं. जीवन को लेकर उनकी क्या राय है? इस पर पुष्पा कहती हैं, मुझे अनुशासन के साथ और खुलकर जिंदगी जीने में यकीन है. अभी तो कई और ऊंचाइयों तक पहुंचना है और उसके लिए रेकॉर्ड तोड़ना है.