मैग्सेसे पुरस्कार लेने से इंकार करने के केरल की पूर्व शिक्षामंत्री शैलजा टीचर के फ़ैसले से हम क्या सीख सकते हैं?
केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के.के.शैलजा ने सामाजिक क्षेत्र का एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ‘रेमन मैग्सेसे अवार्ड' लेने से इंकार कर दिया है. उन्होंने अपने इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा है कि घातक निपाह वायरस और कोविड -19 के खिलाफ लड़ाई एक संयुक्त प्रयास था न कि किसी एक व्यक्ति का काम और इसलिए किसी एक व्यक्ति का उसके लिए पुरस्कार और श्रेय लेना उचित नहीं है. शैलजा को रेमन मैग्सेसे फाउंडेशन द्वारा अवार्ड सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति उनकी सेवा के लिए 64वें मैग्सेसे पुरस्कारों के लिए चुना गया था.
शैलजा ने यह भी कहा कि यह पुरस्कार किसी राजनीतिक व्यक्ति को दिया जाने वाला पुरस्कार नहीं है. इसलिए पार्टी ने सामूहिक रूप से इस सम्मान को छोड़ने का फैसला किया है. एक संबंधित घटनाक्रम में, माकपा महासचिव, सीताराम येचुरी ने नई दिल्ली में मीडियाकर्मियों से कहा कि मैग्सेसे पुरस्कार को स्वीकार नहीं करने का निर्णय पार्टी का था. यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी ने शैलजा को अवसर देने से इंकार किया है, येचुरी ने कहा, वह खुद पार्टी समिति की सदस्य हैं जो माकपा की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है. ऐसा माना जा रहा है कि वाम राजनीति में किसी एक व्यक्ति को तंत्र के ऊपर तरजीह न देने के तर्क के आधार पर शैलजा ने पार्टी विचारधारा को तरजीह देते हुए पुरस्कार लेने से मना किया है.
शैलजा का इंकार इस बात पर भी ध्यान ले जाता है कि एक लोकतंत्र में बड़े सामूहिक प्रयासों को समूह के काम की तरह देखा जाना चाहिए. इसी तरह सरकार के द्वारा किए जाने वाले काम को उसके द्वारा अपनी ज़िम्मेवारी के निर्वहन की तरह देखे जाने की आवश्यकता है. एक स्वास्थ्य मंत्री एक आपदा के समय अपने राज्य के नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए हर सम्भव कदम उठाए तो यह उसके पद और भूमिका का निर्वहन है, इसके लिए उस पदाधिकारी को नायक बनाए जाने के कोई आवश्यकता नहीं है.
केरल की कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई में अहम रहा है शैलजा का योगदान
के. के. शैलजा के प्रयास से यह संभव हुआ था कि जब 30 जनवरी को कोरोना का पहला मरीज चीन से केरल, अपने घर लौटा तो सरकार पूरी तरह से तैयार थी. दूसरे दिन भी मरीज़ पहुंचे और यह सिलसिला बना रहा. स्वास्थ्य विभाग और पूरे सरकारी तंत्र के सहयोग का नतीजा है कि जिस केरल में सबसे पहले कोरोना का प्रवेश हुआ था, जिस केरल में रोज़ बाहर से लोग आ रहे हैं, उस केरल मे इस महामारी पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया गया है.
इस फ्रंट का सबसे अधिक जाना-पहचाना चेहरा बतौर राज्य की स्वास्थ मंत्री. शैलजा का रहा. महिलाओं की कोविड से लड़ने वाली फ़ौज पेन पाड, अनोखे सामाजिक संगठन कुटुंबश्री, आंगनवाड़ीकर्मियों और स्वास्थकर्मियों के अथक परिश्रम और निष्ठा तथा नागरिकों के सहयोग और शैलजा के नेतृत्व के बूते कोविड महामारी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राज्य ने वैश्विक पहचान हासिल की थी.
प्यार से शैलजा टीचर के नाम से जानी जाने वाली माकपा की नेता और केरल की तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजनीति में आने से पहले शैलजा एक शिक्षक थीं. विज्ञान के लिए उनका प्यार उनके जीवन का हिस्सा रहा है. भौतिकी और जीवविज्ञान पढ़ने वाली शैलजा वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाली शिक्षिका रहीं हैं.
यही वजह रही कि निपाह वाइरस के दौरान दूर-दराज के गाँव तक शिलाजा मरीजों से मिलने गईं और कोविड के दौरान उस माहामारी से निपटने के लिए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया. मरीजों के लिए हरसंभव प्रयास किया गया और साथ ही साथ केरल के स्वास्थ कर्मियों की सरकार और स्वास्थ विभाग ने बहुत ख्याल रखा, उन्हें सुरक्षा किट और पीपीई के साथ लैस किया गया, उनके स्वास्थ्य पर नज़र रखी गई और हरसंभव उनका मनोबल बनाए रखा गया.