महात्मा गांधी के दो शब्द, और हिल गईं 200 साल पुरानी ब्रिटिश हुक़ूमत की जड़ें
गोवालिया मैदान आज़ादी की भावना से प्रेरित लोगों से खचाखच भरा था. लोग उत्सुकता से वक्ता को सुन रहे थे. वक्ता थे महात्मा गांधी. महात्मा गांधी ने इस बैठक में पहले हिंदी में भाषण दिया फिर इंग्लिश में.
वो 8 अगस्त 1942 का दिन था. मुंबई की गोवालिया टैंक मैदान में लाखों लोग जुटे थे.
14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस की कार्यसमिति (Congress Working Committee) की बैठक हुई थी. यहीं निर्णय लिया गया था कि अंग्रेजों को भारत तुरंत भारतवासियों के हाथ में सौंप देना चाहिए.
इसके बाद, एक महीने के भीतर ही, यानी 7 अगस्त को मुंबई में कांग्रेस की कार्यसमिति की हुई बैठक में 8 अगस्त को ‘भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. गोवालिया टैंक मैदान में हुई ऐतिहासिक बैठक में इस प्रस्ताव की घोषणा की गई. मौजूद लोगों में सिर्फ 13 लोग इस प्रस्तावना के पक्ष में नहीं थे.
गोवालिया मैदान आज़ादी की भावना से प्रेरित लोगों से खचाखच भरा था. लोग उत्सुकता से वक्ता को सुन रहे थे. वक्ता थे महात्मा गांधी. महात्मा गांधी ने इस बैठक में पहले हिंदी में भाषण दिया फिर इंग्लिश में. लम्बा भाषण है. किताबों में यह भाषण 12 पन्नों तक छपा है. इसी लम्बे भाषण में कहे गए गाँधी के दो शब्दों ने ब्रिटिश राज के अंत की उद्घोषणा कर दी थी. वह दो शब्द ‘क्विट इंडिया’ नहीं थे, वह शब्द थे ‘करो या मरो’ (Do or Die). उन्होंने कहा, 'भारत की 40 करोड़ आबादी को यह प्रण लेना होगा कि हम अपने देश को आज़ादी दिलाएंगे या इस लड़ाई में मारे जाएंगे. बीच का कोई रास्ता नहीं होगा.'
“पूर्ण स्वराज” की मांग के साथ गाँधी ने दो शब्द और कहे, ‘क्विट इंडिया’- ‘भारत छोड़ो’ और इसी नारे के साथ भारत से अंग्रेजी हुकूमत का अंतिम अध्याय शुरू हुआ.
आपको बता दें, यह द्वितीय विश्व युद्ध का भी दौर था जहां ब्रिटेन की तरफ़ से भारत के सैनिक भी युद्ध में भेजे जा रहे थे. 'भारत छोड़ो' आन्दोलन का मुख्य कारण था देश को बगैर सहमती के दूसरे विश्व युद्ध में झोंकना. वॉर कैबिनेट के सदस्य सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के सहयोग को सुरक्षित करने के प्रयास के लिए भारत भेजा गया था. भारत को युद्ध के प्रति वफादार रखने के बदले अंग्रेज़ भारत को अधिराज्य (Dominion rule) का दर्ज़ा देना चाहते थे. लेकिन कांग्रेस को यह स्वीकार नहीं था और यहीं से 'पूर्ण स्वराज' की परिकल्पना ने जन्म लिया. 1942 आते-आते कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वतंत्रता' और 'किसी भी शर्त पर सहमती' से साफ़ इनकार कर दिया. इस मांग ने कांग्रेस को देश भर में काफी लोकप्रिय बना दिया और इस भावना ने पुरे देश को एकजुट कर दिया था.
यही वजह रही, कि 14 जुलाई को पास किए प्रस्तावना की गंभीरता को समझते हुए अंग्रेजों ने लोगों को भ्रमित करने के उद्देश्य से 17 जुलाई को एक सर्कुलर पास किया. इसके तहत आम जनता के बीच कांग्रेस की प्रस्तावना के खिलाफ लोगों को भ्रमित करने के लिए कार्टून्स और पोस्टर्स बनाकर चिपकाए गए. इसमें हिटलर, मुसोलिनी इत्यादि के कैरेक्टर्स को माइक्रोफोन के जरिये एक-दुसरे से कहते हुए दिखाया गया कि “मैं कांग्रेस की प्रस्तावना के पक्ष में हूँ.” मंशा साफ़ थी, कि अगर आप कांग्रेस की प्रस्तावना के पक्ष में हो, मतलब आप हिटलर के पक्ष में हो.
पर इसका जन-मानस पर कोई असर नहीं हुआ और इसका गवाह इतिहास है.
'भारत छोड़ो' आंदोलन को आज़ादी से पहले भारत का सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है. महात्मा गांधी ने अपने इस भाषण से छात्रों, व्यापारियों, युवाओं, महिलाओं, नेताओं- सभी को इस आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. सभी सत्याग्रही थे. सभी को अहिंसक रहते हुए लड़ाई लड़नी थी. और जब तक अंग्रेज भारत छोड़ नहीं देते तब तक लड़ाई जारी रहनी थी.
अहिंसा को इस आन्दोलन में पॉलिसी के रूप में अपनाने की बात कहते हुए महात्मा गांधी ने खुद को बनिया बताते हुए कहा था कि "स्वराज उनका बिजनेस है, और इसे जीतने की पॉलिसी है अहिंसा."
गांधी के हिंदी भाषण की समाप्ति तक लोग टस से मस नहीं हुए थे. गांधी ने लोगों को धन्यवाद देते हुए इंग्लिश भाषण की शुरुआत में ही कहा, " इस दिन के लिए 22 साल से अपने कलम, अपनी भाषा और अपनी ऊर्जा बचाकर रखी थी." गांधी आज़ादी की इस अंतिम लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार थे और पूरा देश भी. 'भारत छोड़ो' नारे ने समूचे भारत में लोगों को प्रभावित किया और वो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में अभूतपूर्व संख्या में जुड़े.
लोगों की ताकत का अंदाजा सबसे पहले सरकारों को होता है. अगले ही दिन 9 अगस्त की सुबह गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, और जवाहर लाल नेहरु को जेल भेज दिया गया. गांधी को पुणे के आग़ा ख़ान महल में रखा गया. जबकि आंदोलन में हिस्सा लेने वाले दूसरों नेताओं को देशभर की अलग-अलग जेलों में भेजा गया. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका था और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था. शहर और गांवों के स्थानीय नेता भी गिरफ्तार हुए थे. जिसके कारण आंदोलन को चलाने के लिए कोई नेता नहीं था, लेकिन इसके बावजूद करीब डेढ़ साल तक आंदोलन लगातार चलता रहा. इसीलिए इस आन्दोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है.