Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

40 रुपये के मासिक खर्च पर जीने वाले सादगी और दृढ़ कार्यशैली की मिसाल लाल बहादुर शास्त्री

जवाहरलाल नेहरू के देहांत के बाद शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने (1964-1966). 1965 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान शास्त्री ही प्रधानमंत्री थे जिस दौरान उनका ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा लोकप्रिय हुआ था.

40 रुपये के मासिक खर्च पर जीने वाले सादगी और दृढ़ कार्यशैली की मिसाल लाल बहादुर शास्त्री

Saturday July 16, 2022 , 5 min Read

आधुनिक भारत का इतिहास ऐसे किस्से-कहानियों से लबरेज़ है जिनमें कम उम्र में देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत नौजवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गाँधी के आह्वान पर अपनी पढाई-लिखाई, घर-संसार छोड़ दी उनके साथ हो गए थे. ऐसे ही एक नौजवान का नाम था लाल बहादुर शास्त्री जो आगे चलकर स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने.


लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे. जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. पैसे की तंगी के कारण उनकी शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता.


थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें उच्च विद्यालय की शिक्षा के लिए वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया. वहीं रहते-रहते वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए. वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए थे. विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम का ही एक हिस्सा बन गया.


स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह गांधी के साथ स्वतंत्रता के मार्ग पर पूर्ण रूप से अग्रसर हुए. 1927 में उनकी शादी ललिता देवी से हुई जिसमे उन्होंने दहेज़ तो लिया पर उसमें सिर्फ एक चरखा और हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपडे थे.


फिर आया 1930 का दांडी मार्च जिसने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी थी.  लाल बहादुर शास्त्री अपनी पूरी ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए. उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल 7 वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे. आज़ादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया था. इसीलिए 1946 में जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री भी बनाये गए.


देश की आज़ादी के बाद साल 1951 में वे नई दिल्ली आए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री (1952); वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री (1959); गृह मंत्री (1961) रहे. जवाहरलाल नेहरू के देहांत के बाद शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने (1964-1966). 1965 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान शास्त्री ही प्रधानमंत्री थे जिस दौरान उनका ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा लोकप्रिय हुआ था.


5 फीट 2 इंच और दुबली-पतली काया का यह आदमी अपने विनम्र लेकिन दृढ कार्यशैली के कारण अपने कार्यकाल के दौरान ऐसा व्यक्ति बनकर उभरा जिसने युद्ध ऐसे कठिन समय में न केवल देश को देशा दी बल्कि नैतिक ज़िम्मेवारियां निभाने में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल भी कायम की. अपने कर्मो से अपने सिद्धांतों का परिचय देना शायद शास्त्री ने अपने राजनीतिक गुरु गांधी से ही सीखा था. अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था –

मेहनत प्रार्थना करने के समान है.

आज हम लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल और जीवन से जुड़े उन पहलुओं को देखेंगे जिससे उनके एक बेमिसाल नेता और इंसान होने का सबूत मिलता है.


युद्ध के बाद भारत को साल 1965 और 1966 में सूखे का सामना करना पड़ा. देश में खाद्यान की कमी होने के कारण शास्त्री ने देश में दूध के उत्पादन को बढाने के लिए हो रहे श्वेत क्रांति (White Revolution) में लोगो की मदद की. इसके साथ ही उन्होंने लोगों से घर में ही गेहूं या चावल उगाने का आग्रह किया. लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए, एक सच्चे नेता की तरह, उन्होंने दिल्ली के जनपथ पर अपने आवास में अनाज उगाकर इस आंदोलन की शुरुआत की थी.


यह वह भी दौर था जब एक ओर भारत अपनी गेंहू के उपज को एक्सपोर्ट करता था, वहीं दूसरी ओर आबादी का एक बड़ा हिस्सा भुखमरी के कगार पर था. इस मसले पर शास्त्री ने अपने एक वक्त का भोजन छोड़ने का विचार किया. जिसकी सफलता के बाद ऑल इंडिया रेडियो (AIR) पर प्रत्येक नागरिक से सप्ताह में सिर्फ एक बार भोजन न करने का आग्रह किया गया.


संवैधानिक मर्यादा की एक मिसाल उनके रेल मंत्री के पद के कार्यकाल से भी जुड़ा हुआ है. एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए शास्त्री ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा और उस वक़्त के प्रधानमंत्री नेहरू ने इस घटना पर संसद में लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की थी.


स्वतंत्रता के आन्दोलन में हिस्सा लेते हुए शास्त्री कई बार जेल गए. यह वही वक़्त था जब लाला लाजपतराय ने ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की थी जिसका मकसद आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे आर्थिक रूप से कमज़ोर नेताओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना था. क्योंकि शास्त्री खुद आर्थिक रूप से मजबूत नहीं थे इसीलिए यह सोसाइटी शास्‍त्री को भी घर का खर्चा चलाने के लिए महीने के 50 रुपये देती थी. शास्त्री जेल में थे. उन्हें पता चला कि दिए गए मासिक खर्चे में से 10 रुपये बच जाते हैं, तो उन्‍होंने सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि उनके परिवार का खर्च 40 रुपये ही है, इसलिए उनकी आर्थिक मदद घटाकर 40 रुपये कर दी जाए.


क्या हमें अपने दौर में ऐसे किसी भी नेता का नाम याद आता है जिसने किसी हादसे की जिम्मेवारी उठाते हुए अपना पद त्याग दिया हो? भ्रष्टाचार के इस दौर में हम यही कह सकते हैं कि शास्त्री का 10 रुपये वापस करना या आन्दोलन की शुरुआत पहले अपने घर से करना उनके जीवन को उनके नारे ‘जय जवान, जय किसान’ को चरितार्थ करता हुआ लगता है.

यह भी पढ़ें
सिर्फ़ किंगमेकर नहीं थे भारत रत्न के. कामराज, शुरू किया था पहला मिड डे मील कार्यक्रम