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किसानी को स्मार्ट बिजनेस में बदल रहे रघु, विश्वजीत और श्रीलेश जैसे युवा

किसानी को स्मार्ट बिजनेस में बदल रहे रघु, विश्वजीत और श्रीलेश जैसे युवा

Tuesday February 25, 2020 , 4 min Read

तमाम युवा जहां कॉलेज-यूनिवर्सिटी से निकल कर स्मार्ट और शहरी बनने के लिए खेती, किसानी छोड़कर शहरों की ओर भाग रहे हैं, तो अनेक युवाओं ने कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर खेती को ही स्मार्ट बिजनेस बना लिया है। 'ट्रैक्ड्रील' के श्रीलेश, ‘खेती' के सत्य रघु, ‘ऑक्सेन फार्म सॉल्यूशन' के विश्वजीत ऐसे ही प्रयोगधर्मी युवा हैं।


पहाड़ी खेती की राह आसान करने वाला श्रीलेश का ट्रैक्टर ट्रैक्ड्रील

पहाड़ी खेती की राह आसान करने वाला श्रीलेश का ट्रैक्टर ट्रैक्ड्रील



नैसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एग्रीटेक सेक्टर में इस समय काम कर रहे 1000 से अधिक स्टार्टअप्स में से डेढ़ सौ से अधिक तो कुल लगभग 17 अरब रुपये तक फंडिंग हासिल करने में भी कामयाब रहे है।


आधुनिक कृषि बाजार में डिजिटल मौजूदगी के बीच आज दुनिया का हर 9वां एग्रीटेक स्टार्टअप भारत में शुरू हो रहा है। टेक्नोलॉजी से लैस बड़ी-बड़ी कंपनियां इस सेक्टर में तरह-तरह के बिजनेज मॉडल के साथ उतर रही हैं। हमारे कृषि प्रधान देश में आधुनिक कृषि की यही स्थितियां देश-विदेश में अच्छी-अच्छी नौकरियां छोड़कर युवाओं को एग्रीकल्चर सेक्टर में भविष्य आजमाने के लिए विवश कर रही हैं।


तमाम युवा जहां कॉलेज-यूनिवर्सिटी से निकल कर स्मार्ट और शहरी बनने के लिए खेती, किसानी छोड़कर शहरों की ओर भाग रहे हैं, तो अनेक युवाओं ने कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर खेती को ही स्मार्ट बिजनेस बना लिया है। IIM के फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट में तीन माह के प्रशिक्षण के बाद महाराष्ट्र के श्रीलेश माडेय ने पहाड़ी खेतों की जुताई के लिए विशेष तरह का ट्रैक्टर डिजाइन किया है- 'ट्रैक्ड्रील', कीमत सिर्फ 2 लाख रुपये। अब IIM ने कृषि मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को 'ट्रैक्ड्रील' स्टार्टअप के लिए फंड जारी करने की अनुशंसा की है।


ट्रैक्ड्रील ऊंचे, असमतल पहाड़ी खेतों तक आसानी से चढ़ाई कर लेता है। कम जगह में भी मुड़ जाता है। इससे जुताई और फॉगिंग दोनो में मदद मिलती है। पुणे गांव के ओजर निवासी श्रीलेश हाई स्कूल करने के बाद से ही डिजायन करने में जुट गए थे। वर्ष 2013 में उन्होंने मैकेनिकल डिप्लोमा के दौरान पहला मॉडल प्रस्तुत किया। इस बीच शिवनगर इंजनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की।


यहां ट्रैक्ड्रील के मॉडल को नया रूप मिला। मॉडल पेश करने के लिए मंत्रालय से उन्हे 10 लाख रुपये का बजट मिला। इसके बाद 25 लाख की अतिरिक्त मंजूरी के लिए कृषि मंत्रालय को भी प्रोजेक्ट भेजा गया। वहां पेटेंट कराने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। श्रीलेश के मुताबिक, ट्रैक्ड्रील के जुताई, बुआई, स्प्रेयर, रोटावेटर के साथ-साथ खरपतवार निकालने तक में काम आने से खेती की लागत काफी घट जाएगी।


आईआईएम कोलकाता इनोवेशन पार्क के चेयरमैन श्रीकांत शास्त्री कहते हैं कि वह अकसर देश के शीर्ष संस्थानों में चल रहे इनक्यूबेटर सेंटर्स में जाते हैं। फिर वह भारत सरकार का बिराक (बायोटेक इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल) हो या तकनीकी संस्थानों के इनक्यूबेटर सेंटर, वहां उन्होंने कृषि से जुड़े स्टार्टअप पर काम करते हुए कई युवाओं को देखा है। वे श्रीलेश की तरह वाकई अपने-अपने राज्यों की कृषि समस्याओं के हल के लिए नए तरीके ईजाद करने में लगे हैं।


चार्टर्ड अकाउंटेंट सत्य रघु पीडब्लूसी में शानदार नौकरी होने के बावजूद खुश नहीं थे। साल 2015 में अपने साथियों सौम्या, आयुष और कौशिक के साथ मिल कर स्टार्टअप ‘खेती' शुरू किया, जो देश के छोटे किसानों को अपने प्रोडक्ट ‘ग्रीनहाउस-इन-ए-बॉक्स' के जरिये बेहतर उपज पाने में मदद कर रहा है। उनका यह प्रोडक्ट पानी की बचत के साथ वातावरण के तापमान को नियंत्रित करता है। इस तरह किसानों को जलवायु परिवर्तन के असर से अपनी खेती को बेअसर रखना सिखा रहे हैं।  


आईआईटी कानपुर के स्टार्टअप इनक्यूबेटर सेंटर ने 2016 से अब तक कृषि से जुड़े 22 स्टार्टअप को तैयार किया है। यह सिंचाई व जल प्रबंधन से लेकर मिट्टी की उर्वरकता, फसल भंडारण, खेत से बाजार के संपर्कों जैसे कई स्तर पर काम कर रहे हैं। हाल ही में आईआईटी कानपुर में इंडिया एग्रीटेक इनक्यूबेशन नेटवर्क शुरू हुआ है, जिसे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और टाटा ट्रस्ट का साथ मिला है।


विश्वजीत सिन्हा ने अपने स्टार्टअप ‘ऑक्सेन फार्म सॉल्यूशन' से कृषि से जुड़ी कई समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की। वह किसानों को भूमि तैयार करने, फसल लगाने और दूसरे प्रबंधन को देखने के लिए उन्नत उपकरण किराये पर देते हैं। इससे श्रम का खर्च कम करने में कई किसानों को काफी मदद मिली है।