पीली सतावरी की खेती में अस्सी हजार लगाकर पांच लाख कमा रहे हैं राम सांवले
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी समेत नौ जिलों में अफीम की खेती होती है। यहां के किसान सात जिलो में मशरूम की सप्लाई करते हैं, लेकिन उन्नत किसान रामसांवले शुक्ला की कमाई की बात ही कुछ और है। वह औषधीय फसल पीली सतावरी की खेती में प्रति एकड़ अस्सी हजार रुपए लगाकर पांच लाख रुपए तक की कमाई कर ले रहे हैं।
सिद्धौर (बाराबंकी) के गांव मनरखापुर में लगभग पचास फीसदी किसान मशरूम की खेती में दो से ढाई लाख रुपए लगाकर सात-आठ लाख रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं। उनका मशरूम कानपुर, गोरखपुर, फैजाबाद, सीतापुर, लखीमपुर, बस्ती, देवरिया तक सप्लाई हो रहा है। कभी इसी जिले में सुर्खियों में रही सदी के नायक अमिताभ बच्चन की जमीन वाले गांव दौलतपुर में ढाई सौ बीघे के काश्तकार अमरेंद्र प्रताप सिंह केला, हल्दी, खीरा, तरबूज, मशरूम, खरबूजे की खेती से सालाना अस्सी-पचासी लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में कुल नौ जिलों बदायूं, बरेली, रायबरेली, शाहजहांपुर, लखनऊ, फैजाबाद, मऊ, गाजीपुर और बाराबंकी में अफीम की खेती होती है। इस वर्ष बाराबंकी में अफीम के काश्तकारों की संख्या बढ़ने के साथ ही इस खेती की लागत में भी इजाफा हो गया है। इस जिले के किसान औद्यानिक खेती में पूरे देश में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। तुलसी की खेती में भी यह जिला पूरे प्रदेश में अव्वल है। लगभग एक दशक से इसकी खेती में किसान मामूली लागत से तीन गुना मुनाफा ले रहे हैं। उन्हे 20 हजार रुपए की लागत से मात्र सत्तर दिनो में एक लाख रुपए तक शुद्ध मुनाफा हो रहा है। फिलहाल, आज हम बात कर रहे हैं सूरतगंज ब्लॉक के गाँव टांड़पुर, तुरकौली के 65 वर्षीय किसान राम सांवले शुक्ला की, जो औषधीय खेती से इतनी कमाई करने लगे हैं कि उनका बेटा भी लखनऊ से नौकरी छोड़कर सैलरी से ज्यादा पैसे कमा रहा है।
राम सांवले शुक्ल बताते हैं कि जब पहली बार उन्होंने एक एकड़ में औषधीय पीली सतावरी की खेती की शुरुआत की थी तो उस समय लोग उनका मजाक बनाने के मूड में पूछा करते थे कि अनाज की खेती छोड़कर वह झाड़ियां क्यों उगा रहे हैं? जब पहली फसल में उनकी चार लाख रुपए की कमाई हुई तो उनकी खेतीबाड़ी को लेकर अपने आप लोगों का नजरिया बदल गया। अब तो उनकी किसानी से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। एक एकड़ में पीली सतावरी की खेती में लगभग अस्सी हजार रुपए की लागत आती है और एक एकड़ में 15-20 क्विंटल उपज व 70 हजार रुपए प्रति क्विंटल के रेट से चार-पांच लाख रुपए की कमाई हो जाती है। राम सांवले सतावरी के अलावा पीली आर्टीमीशिया, सहजन, अदरक और कौंच की भी खेती करते हैं। उन्होंने अपनी फसलें बेचने के लिए दिल्ली तथा मध्य प्रदेश की कुछ कंपनियों से अनुबंध कर रखा है। इस बार उन्होंने तीन एकड़ खेत में पहली बार सहजन की फसल बोई है। ये फसल एक बार बुवाई कर देने पर यह फसल पांच साल तक कमाई कराती है।
राम सांवले अपनी खेतीबाड़ी का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि अब पारंपरिक खेती में जीवन यापन भर की भी कमाई नहीं हो पा रही है। हर्बल खेती में फसल कटी नहीं कि सीधे खाते में कंपनी का पैसा आ जाता है। इसीलिए कुछ वर्ष पहले उन्होंने केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान के माध्यम से औषधीय खेती में हाथ डाला। सबसे पहले मलेरिया की दवा आर्टीमीशिया के लिए मध्य प्रदेश की एक कंपनी से उनका करार हुआ। अब उनका नोएडा की एक बड़ी दवा कंपनी से सहजन और कौंच की खेती का करार चल रहा है। राम सांवले की कमाई से प्रभावित होकर अब तो आसपास के दूसरे किसान भी सतावरी, सहजन, क्रौंच की खेती करने लगे हैं।
इससे राम सांवले शुक्ल को कमाई का एक और तरीका सूझा। वह औषधीय फसलों की पौध भी तैयार कर बेचने लगे हैं। इससे कई प्रदेशों के किसान उनके संपर्क में आ गए हैं। इसके अलावा वह घर पर ही डी-कंपोजर की 20 रुपए की एक शीशी से कई ड्रम केंचुआ खाद तैयार कर लेते हैं। वह फसलों के अवशेष की भी कंपोस्ट खाद बना लेते हैं। वह इन्टरनेट के माध्यम से खेती की नई-नई तकनीक सीखते रहते हैं। उनके क्षेत्र में मुनाफे की दृ्ष्टि से अब अनेक किसान बड़े पैमाने पर सतावर, सहजन और तुलसी की खेती करने लगे हैं। उद्यान विभाग के अधिकारी औषधीय खेती की विधि, रख-रखाव और फसल बेचने के लिए बाजार की भी पूरी जानकारी दे देते हैं।