Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

प्लास्टिक की जगह बांस की हैंडमेड और ईको-फ़्रेंडली बोतलें बना रहा असम का यह शख़्स

प्लास्टिक की जगह बांस की हैंडमेड और ईको-फ़्रेंडली बोतलें बना रहा असम का यह शख़्स

Wednesday August 14, 2019 , 4 min Read

वर्तमान समय में पर्यावरण के संदर्भ में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि हम प्लास्टिक उत्पादों के ईको-फ़्रेंडली विकल्प ढूंढें और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उन्हें इस्तेमाल में लाना शुरू करें। पानी की बोतलों से लेकर ख़ाने-पीने का सामान पैक करने तक, हर जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों को जानने के बावजूद, हम दूसरे विकल्पों की ओर नहीं जा पा रहे हैं।


लेकिन असम के रहने वाले 36 वर्षीय धृतिमान बोराह ने दैनिक जीवन में प्लास्टिक के उत्पादों के इस्तेमाल को ख़त्म करने और उनकी जगह पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले विकल्पों को इस्तेमाल में लाने की दिशा में सराहनीय उदाहरण पेश किया है। धृतिमान प्लास्टिक की बोतलों की जगह बांस से बनी बोतलों का विकल्प पेश कर रहे हैं।



धृतिमान बोराह

बांस की बोतलों के साथ धृतिमान बोराह



इन बांस की बोतलों की क़ीमत 200 रुपए से लेकर 450 रुपए तक है और ये पूरी तरह से हैंडमेड हैं। इन्हें भालुका क़िस्म के बांस से तैयार किया जाता है। धृतिमान बताते हैं कि प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उनकी रुचि अचानक से नहीं विकसित हुई, बल्कि काफ़ी कम उम्र से वह इस दिशा में काम कर रहे हैं। इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने महज़ 16 साल में अपनी कंपनी शुरू की थी।


नॉर्थईस्ट नाऊ की रिपोर्ट्स के अनुसार, कला-शिल्प के क्षेत्र में धृतिमान को 18 सालों का लंबा अनुभव है और हाल में वह अपना पारिवारिक व्यवसाय चला रहे हैं और अपने छोटे भाई गौरव बोराह के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।


धृतिमान को एकाएक बांस की बोतलें बनाने का आइडिया नहीं आया, बल्कि उन्हें पूरे एक दशक लगे बोतलें बनाने के लिए प्लास्टिक का ईको-फ़्रेंडली विकल्प ढूंढने में और उसका उपयुक्त डिज़ाइन तैयार करने में। एक बोतल को बनाने में पांच घंटों का समय लगता है। बांस को कांटा जाता है; फिर उबाला जाता है, सुखाया जाता है और अलग-अलग हिस्सों का जोड़ा जाता है और अंत में उसे फ़िनिशिंग दी जाती है। उबालने से बोतलों के अंदर जो खोखला हिस्सा होता है, उसकी दीवारों की सफ़ाई हो जाती है और ये बोतलें कम से कम 18 महीनों तक चलती हैं। 


शुरुआत में इस उत्पाद को लोगों के बीच पहुंचाने और लोकप्रिय बनाने में धृतिमान को काफ़ी मुश्क़िलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने पहली बार इसे दिल्ली में एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया था, लेकिन उन्हें एक भी ग्राहक नहीं मिला। द हिंदु से बातचीत में उन्होंने बताया, "पहला ऑर्डर आठ महीनों पहले यूके से आया था, 200 बोतलों का। ख़रीददार को ऐसी बोतलें चाहिए थीं, जिनमें न तो कोई रंग चढ़ा हो और न ही उन्हें चमकाया गया हो। तब तक मैं बोतलों पर यूएस में बनने वाले वॉटरप्रूफ़ ऑयल की परतें चढ़ाता था, जो काफ़ी महंगा होता था। "


अब, धृतिमान अपनी बोतलों पर ग्राहकों की ज़रूरत के हिसाब से कोटिंग चढ़ाते हैं। माल की ढुलाई आदि के दौरान सुरक्षा के लिए वह कपूर और सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं। धृतिमान बताते हैं,


"मैं घर पर ही इन बोतलों को तैयार करता हूं और हर महीने 100-150 भालुका बांस मंगाता हूं। बांस तो स्थानीय सूत्रों से मिल जाता है, लेकिन मशीनों और उपकरणों के लिए गुवाहाटी जाना पड़ता है। हाल में हम हर महीने 1,500 बोतलें तैयार करते हैं और मांग इससे कहीं ज़्यादा की है। अगर हमारे पास सही मशीनें हों तो हम हर महीने 8 हज़ार बोतलें बना सकते हैं, लेकिन इसमें काफ़ी निवेश की ज़रूरत है।"


फ़िलहाल धृतिमान अपनी बोतलों के ऑर्गेनिक डिज़ाइन के लिए पेटेंट लेना चाहते हैं। द हिंदु ने जब धृतिमान से सवाल किया कि चाइनीज़ बोतलों के बारे में उनकी क्या राय है तो उन्होंने कहा कि चाइनीज़ बोतलें ऑर्गेनिक नहीं हैं और उनकी बोतलें पूरी तरह से ऑर्गेनिक हैं।