घर खरीदें या किराये पर रहें, फैसला करने से पहले इन बातों पर जरूर सोच लें
इस सवाल का जवाब शख्स और उसकी जरूरतों पर निर्भर करता है साथ में दोनों ही विकल्पों के नफा नुकसान पर भी. आइए देखते हैं दोनों विकल्पों के साथ क्या फायदे और घाटा होने की संभावना है….
भारत में तो कई लोगों के लिए घर खरीदना एक सपने जैसा रहा है. हालांकि, लंबे समय से इस बात की बहस चलती रही है कि घर खरीदना ज्यादा बेहतर विकल्प है या किराये पर रहना.
इसका जवाब शख्स और उसकी जरूरतों पर निर्भर करता है साथ में दोनों ही विकल्पों के नफा नुकसान पर भी. आइए देखते हैं दोनों विकल्पों के साथ क्या फायदे और घाटा होने की संभावना है….
किराये पर रहने से क्या फायदे?
कम भार पड़ता है
किराये पर रहते हुए आपको जो रकम हर महीने देनी पड़ती है वो घर खरीदने पर दिए जाने वाले एडवांस पेमेंट के मुकाबले कहीं कम होती है. रेनोवेशन का झंझट नहीं और ना ही मेंटनेंस की माथापच्चीसी.
किराये पर घर लेने के लिए बतौर किरायेदार मकानमालिक के साथ आपको बस एक अग्रीमेंट साइन करना होगा. जिसमें किराया और कितने समय के लिए आप मकान को रेंट पर ले रहे हैं उसकी जानकारी होगी.
वैसे तो मकानमालिकों के पास इस कॉन्ट्रैक्ट को तोड़ने का कोई अधिकार नहीं होता लेकिन ऐसे भी मामलों से भी इनकार नहीं किया जा सकता मकानमालिकों ने अग्रीमेंट के खिलाफ जाकर घर खाली कराया हो.
ऐसे मालिकों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं लेकिन कई मामलों में किरायेदारों ने तामझाम की वजह से शिकायत नहीं दर्ज कराने का फैसला किया है और मकानमालिक बच गए हैं.
बिना झंझट रिलोकेशन
अगर आप काम की वजह से किसी दूसरे शहर गए हैं और वहां आपको लंबे समय तक नहीं रहना है. ऐसी स्थिति में किराये पर घर लेना अधिक समझदारी वाला फैसला होता है.
कई बार ऐसा भी होता है कि आप उस शहर को लेकर फैसला नहीं ले पाते कि आप कुछ सालों बाद यहीं बसना चाहते हैं या नहीं. ऐसी स्थिति में भी किराये पर घर लेकर रहना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. आखिरकार जिस शहर में रहना नहीं वहां घर खरीदने की बेवकूफी क्यों रहना.
अगर आपका बजट इतना नहीं है कि आप प्रॉपर्टी में इनवेस्ट करके रिस्क झेल सकें खासतौर पर अगर आप सिर्फ और सिर्फ इनवेस्टमेंट के मकसद से पैसे लगाना चाह रहे हैं उस हाल में तो भी किराये पर घर लेना ही बेहतर होगा.
जब भी आप घर या कोई भी प्रॉपर्टी खरीदते हैं उसके साथ कई तरह का रिस्क जुड़ा होता है. खासतौर पर अगर वो एक नया प्रोजेक्ट है या ग्रीनफील्ड वेंचर है.
ऐसा सालों से कहा जाता रहा है कि अंडर डिवेलपमेंट इलाकों में प्रॉपर्टी डिवेलप्ड इलाकों में मौजूद प्रॉपर्टी के मुकाबले ज्यादा रिटर्न देती हैं. लेकिन ये भी उतना ही सच है कि डिवेलपिंग प्रोजेक्ट्स आपके अनुमान से ज्यादा समय तक खिंच जाएं और रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट उतना आकर्षक न रहे जिसका आपने अंदाजा लगाया था.
सही जगह निवेश कर रहे हैं या नहीं ये तो अलग मसला है ही इसके अलावा घर खरीदते समय बैंकों का इंटरेस्ट रेट में भी उतार चढ़ाव आपका बजट बिगाड़ सकते हैं.
अगर बैंकों ने होम लोन का रेट बढ़ा दिया तो आपकी प्रॉपर्टी का दाम अनुमान से बाहर निकल सकता है और घर खरीदना घाटे का सौदा साबित हो सकता है. अगर निवेश के लिहाज से प्रॉपर्टी खरीदने की सोच रहे हैं तो दूसरे विकल्पों के बारे में सोच सकते हैं. शेयर, म्यूचुअल फंड, ULIP के बारे में सोच सकते हैं.
ऊपर से घर खरीदते समय आपको होम लोन या मॉर्गेज के लिए अप्लाई करना पड़ता है, जिसमें बहुत समय लगता है, ढेरों कागज जमा कराने पड़ते हैं.
इसलिए जब भी कोई होम लोन या मॉर्गेज लें उसके नियम और शर्तों को सावधानी से पढ़ लें. अगर कुछ नियमों को आपने गलत समझ लिया तो बाद में आपके लिए ये मुसीबत खड़ी कर सकता है.
घर खरीदने के फायदे
अपने घर की फीलिंग ही अलग है
भारत में अपने घर का सपना सिर्फ सपना भर नहीं होता है एक फीलिंग होती है. जिसे बच्चे से लेकर घर का बुजुर्ग अपनी जिंदगी में पूरा होने से पहले कभी न कभी जरूर देखता है.
घरों के बढ़ते दाम और किराये के तौर पर हर महीने कमाई का एक स्त्रोत उन्हें खरीदने के लिए उत्साहित करता है. अपना घर होने पर आपके पास आजादी होती, अपने मन के मुताबिक बनवाने की रेनोवेट कराने की.
कोविड के दौरान सभी कंपनियों ने अपने एंप्लॉयीज को वर्क फ्रॉम दे दिया. बड़े शहरों में किराये पर रहने वाले लोग घर खाली कर अपने होमटाउन को लौट गए.
खासकर ऐसी स्थिति में अपना घर होने की जरूरत लोगों को ज्यादा समझ आई है. इतना ही नहीं कोविड खत्म होने के बाद कंपनियां दोबारा खुलने लगी हैं लोग वापस लौट कर एक बार फिर किराये पर घर ढूंढ रहे हैं, लेकिन इतनी भारी मांग को देखते हुए मकानमालिकों ने किराये में ताबड़तोड़ इजाफा किया है.
किराये में अनिश्चितता तो बनी रहती है. इन सभी परिदृश्यों का अलग आकलन करें तो हर महीने तय मॉर्गेज पेमेंट के बदले अपना घर खरीदना बेहतर होगा.
प्राइस अप्रिसिएशन
अगर ऐसा लगता है कि आप लंबे समय तक एक ही जगह पर रह रहे हैं तो घर खरीदने का ऑप्शन ज्यादा बेहतर होगा. अगर एरिया में आसपास डिवेलपमेंट हो रहे हैं तो आने वाले सालों में आपकी प्रॉपर्टी के दाम कई गुना बढ़ सकते हैं जिसका आपको आगे जाकर फायदा ही होगा.
होम इक्विटी
होम इक्विटी एक अन्य वजह है जिसके लिए लोग घर खरीदने को प्राथमिकता देते हैं. किरायेदार जब घर छोड़ते हैं तो उन्हें सिक्योरिटी अमाउंट वापस मिल जाता है और घर में कोई हिस्सेदारी नहीं होती.
लेकिन घर खरीदने के बाद होम इक्विटी बढ़ जाती है. होम इक्विटी यानी आपने जिस दाम पर घर खरीदा है उसके अलावा होम लोन पर ब्याज और बाकी अन्य चीजों में आपने कितने रुपये खर्चे हैं. जब आप घर बेचते हैं तब ये रकम आपके घर की ओरिजनल वैल्यू में ऐड हो जाती है.
इसलिए घर खरीदना और सालों तक उसमें रहने के बाद बेचना आपके लिए फायदेमंद डील हो सकती है. लेकिन सिर्फ इस फैक्ट को सुनकर आप घर नहीं खरीद सकते. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हर महीने एडवांस पेमेंट कभी भी आपकी सालाना इनकम के 30 फीसदी से ऊपर नहीं होनी चाहिए.
बाकी बैलेंस रकम सैलरी के 36 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा आपके पास डाउन पेमेंट और बाकी की चीजों के लिए अलग से रकम होनी चाहिए. इन सारी चीजों का मैनेजमेंट हो तभी आपको घर खरीदने का फैसला करना चाहिए. प्रॉपर्टी इनवेस्टमेंट में रिस्क तो हैं लेकिन भारतीय बाजारों ने लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के नजरिए से अच्छा खासा रिटर्न दिया है.
ऊपर से सरकार भी डिवेलपमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने पर काफी जोर दे रही है इसलिए प्रॉपर्टी के दाम ऊपर जाने लगभग लगभग तय ही हैं. फरक पड़ेगा तो सिर्फ दाम किस दर से बढ़ रहे हैं.
कुलमिलाकर आपको रेंट और बाइंग दोनों में आने वाले खर्च ऊपर बताए स्टैंडर्ड्स के हिसाब से कैलकुलेट करना चाहिए. अगर किराये पर रहने में और खरीदने में लागत में ज्यादा अंतर नहीं है तो बेहतर होगा आप प्रॉपर्टी खरीद लें. लेकिन अगर अंतर काफी ज्यादा आ रहा है तो किराये के घर लेना सही फैसला हो सकता है.