‘टेक, मेक, वियर एंड थ्रो’ के दौर में भारत की सर्कुलर फैशन का अर्थतंत्र
वैश्विक फैशन उद्योग बड़े पैमाने पर ‘टेक, मेक, वियर एंड थ्रो’ के रास्ते पर चल पड़ा है. इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर होने वाला कपड़े का कचरा (अपशिष्ट) चौंकाने वाला है. कपड़े का कचरा 1.3 करोड़ टन होता है.
हाल के वर्षों में, कपड़ा उद्योग से होने वाले पर्यावरण और सामाजिक नकारात्मक प्रभावों की आलोचना होती रही है. कपड़ा उद्योग का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कई वजहों से हुआ है. तेजी से बदलता फैशन ट्रेंड और इस फैशन को प्रोत्साहित करने वाली संस्कृति इसके मुख्य कारक हैं. वैश्विक कपड़ा उद्योग से होने वाला ग्रीनहाउस उत्सर्जन सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और जहाज़ों के संयुक्त रूप से होने वाले उत्सर्जन से अधिक है. इसे फूड और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के बाद सबसे बड़ा प्रदूषण फैलाने वाला उद्योग माना जाता है. इसकी आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई- चेन) में तत्काल बदलाव की आवश्यकता है.
हालांकि उद्योगों में बदलाव करने से स्थाई पारिस्थितिकी तंत्र को रातोंरात हासिल नहीं किया जा सकता है. इस व्यवसाय का मॉडल सालों से ‘टेक, मेक, वियर एंड थ्रो’ के रास्ते पर चल रहा है. वैश्विक स्तर पर 1.3 करोड़ टन कपड़े का कचरा होता है जिसे गड्ढों में दफना दिया जाता है या जला दिया जाता है.
मानवशास्त्र के अनुमानों के मुताबिक़, कपड़ों का इतिहास 100,000-500,000 साल पुराना है. तब कपड़े मुख्य रूप से जानवरों के फर और प्राकृतिक सामग्री जैसे घास और पत्ते से बनाये जाते थे. समय के साथ इसमें लगातार नयापन आता रहा. धीरे-धीरे कपड़े और फैशन सामाजिक पहचान का सूचक बन गए.
आज, फैशन उद्योग वैश्विक स्तर पर 30 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार दे रहा है. भारत में, फैशन से जुड़े उद्योगों में 4.5 करोड़ लोगों को सीधा रोजगार मिला हुआ है और करीब 10 करोड़ लोग इस उद्योग से जुड़े अन्य उद्योगों से अपनी आजीविका कमा रहे हैं. आंकड़ों के अनुसार पुराने कारोबारी ढांचे में बदलाव के लिए एक सकारात्मक नजरिया आवश्यक है जो उद्योग और पर्यावरण दोनों का खयाल रखे.
आंकड़ों ने उद्योग के हितधारकों के बीच चेतना में धीमा ही सही पर विस्तार किया है. कपड़ा उद्योग के हितधारक अब अर्थव्यवस्था के अनुकूल, प्राकृतिक रूप से फिर से उपयोग करने लायक सर्कुलर फैशन का समाधान ढूंढ रहे हैं.
हरित सूक्ष्म-उद्यमियों के लिए मुफीद तंत्र का निर्माण
डोन (DOEN) फाउंडेशन के सहयोग से इंटेल कैप (Intellecap) की एक पहल मुंबई स्थित सर्कुलर अपैरल इनोवेशन फैक्ट्री सीएआईएफ (CAIF) खुद को एक इकोसिस्टम-बिल्डर बताती है. सीएआईएफ के लोग मुख्य रूप से दो स्तरों पर काम करते हैं. पहला, ब्रांडों के लिए नई पहल का रास्ता तैयार करना, वे उन्हें 2030 तक कार्बन फुटप्रिंट कम करने के स्थायी समाधान का लक्ष्य पाने में मदद करते हैं. दूसरा, उनका ध्यान एक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण और सर्कुलर टेक्सटाइल वेस्ट मॉडल को डिजाइन करने पर है. भारत के अनौपचारिक अपशिष्ट श्रमिकों (कचरे का निपटान करने वाले मजदूरों) की क्षमता और उनके कौशल का निर्माण करने के लिए नवंबर 2021 में, उन्होंने सस्टेनेबिलिटी इनोवेटर्स एनवियू (ENVIU) और आईकेईए फाउंडेशन (IKEA) के साथ भागीदारी की, ताकि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए ग्रीन जॉब्स का अवसर मिल सके.
सीएआईएफ और क्लाइमेट सॉल्यूशंस, इंटेलेकैप के निदेशक वेंकट कोटामाराजू, ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “कचरे के निपटान की जानकारी देने के लिए कोई व्यवस्थित प्रणाली नहीं थी जो यह पता लगा सके कि घरों और फैक्ट्रियों से कचरा इकठ्ठा करने वाले इसे कहां ले जाते हैं. हमने खुद से कुछ बुनियादी सवाल पूछा, हम अपशिष्ट (कचरा) के पारिस्थितिकी की उनकी वर्तमान समझ का लाभ कैसे उठा सकते हैं?”
कपड़े के कचरे को इकठ्ठा करने के लिए एक संगठित रास्ता बनाने के इरादे से, समूह ने मुंबई और बेंगलुरु में स्पेशल पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की. मुख्य रूप से कचरे का निपटान करने वाले मजदूरों को उपयोग होने लायक कचरे को छांटना सिखाया जाता है. उन्हें फिर से उपयोग होने लायक कपड़े और घिसे-पिटे कपड़े के बीच अंतर के बारे में बताया जाता है. इस तरह उन्हें “हरित सूक्ष्म-उद्यमी” बनने में सहायता करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
कोटामाराजू ने बताया कि वर्तमान में, कचरे का निपटान करने वाले मजदूरों को कपड़े की संरचना की पहचान करने के लिए औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जाता है. वे आमतौर पर पुराने कपड़े और कारखाने का कचरा किलो के भाव बेचते हैं. हम उन्हें इतना योग्य बना रहे हैं कि उन्हें यह पहचानना आसान हो कि फटी हुई टी-शर्ट की कीमत और डेनिम की कीमत में अंतर है. जब वे पहनावे की कीमत को समझते हैं और इसे सही रिसाइकलर्स या क्लॉथ एग्रीगेटर्स को देते हैं, तो हम पर्यावरण में कचरे के इस लीकेज़ को कम करने में सफल होते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि कपड़ा निर्माताओं (मन्युफेक्चरर्स) और उपभोक्ताओं (कंजूमर्स) दोनों के लिए हाइपर-लोकल कलेक्शन और सेग्रीगेशन सेंटर स्थापित करने का विचार है ताकि दोनों को सर्कुलरिटी की पहुंच के भीतर लाया जा सके.
इसके लिए सीएआईएफ, एंकर पार्टनर्स, हसीरू डाला और बेंगलुरु में सहस जीरो वेस्ट और मुंबई में आसरा वेलफेयर के साथ मिलकर काम करता है. ये भागीदार इन क्षेत्रों में अपशिष्ट (कचरा) इकठ्ठा करने वालों की पहचान करते हैं, जिन्हें विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जाता है. अब तक 38 कचरा संग्रहकर्ताओं के एक समूह को प्रशिक्षित किया जा चुका है. सीएआईएफ का लक्ष्य पहले चरण में 250 कर्मचारियों की संख्या बढ़ाकर एक ढांचा तैयार करना है जहां कचरे को ज़िम्मेदार तरीके से एकत्र किया जाए.
बाजार में पुराने कपड़ों की पहचान बनाना
फैशन ब्रांड ओखाई के पूर्व सीईओ के रूप में, कीर्ति पूनिया को अपने व्यवसाय को बढ़ाने और कारीगरों, ख़ास तौर से महिला कारीगरों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है. हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने ओवरफील्ड वार्डरोब की समस्या की भी पहचान की, जिसका मुख्य कारण एक महिला के शरीर में होने वाले बदलाव हैं. पूनिया ने कहा, “एक औसत महिला अपने जीवनकाल में 31 शारीरिक परिवर्तनों से गुजरती है.”
हालांकि यह समस्या का सिर्फ एक पहलू है. दूसरी तरफ, धरती पर रोज बदलते फैशन का पर्यावरण पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव भी है. यह महसूस करते हुए कि फैशन उद्योग में समस्याएं व्यवस्थित और बहुआयामी थीं, उन्होंने सामाजिक या पर्यावरणीय समस्याओं का पूंजीवादी समाधान खोजने की आवश्यकता महसूस की. क्योंकि यहां ब्रांड के प्रति जागरूकता काफी होती है.
फैशन प्रदूषण का उनका समाधान रिलव के रूप में सामने आया. यह एक ऐसी प्रौद्योगिक प्रणाली (टेक्निकल सिस्टम) है जो ब्रांडों को बचत करने में सक्षम बनाती है. पूनिया ने अपने साथी और सह-संस्थापक प्रतीक गुप्ते के साथ नवंबर 2021 में इंस्टाग्राम पर एक फैशन ब्रांड के साथ प्लेटफॉर्म लॉन्च किया. नौ महीने की अवधि में, उन्होंने 30 ब्रांडों के साथ साझेदारी की है.
जो चीज रिलवव को सबसे अलग बनाती है, वह है ब्रांडों के साथ उनकी सीधी साझेदारी, जो खरीददारों को परिधान के प्रामाणिक इतिहास से रूबरू कराता है.
पूनिया ने कहा, “हम बचत प्रक्रिया को प्रमाणिक बना रहे हैं. पुराने फैशन के नाम पर बेचे जा रहे कपड़ों के मूल, स्रोत या मालिक को कोई नहीं जानता.”
किसी कपड़े को दोबारा बेचने से उसकी उम्र बढ़ जाती है. गुप्ते के अनुसार, हर बार जब कोई कपड़ा फिर से बेचा जाता है, तो वह अपने वजन का छह गुना CO2 बचाता है. वे बताते हैं, “इस तरह आप अधिक संसाधान के उपयोग से बनने वाले उत्पाद के उत्पादन के पूरे चक्र को समाप्त कर रहे हैं.”
इस अवधारणा में बदलाव के बारे में बताते हुए, गुप्ते ने बताया कि उन्हें देश भर से ऑर्डर मिलते हैं, इससे देश में कपड़ों की पुरानी संस्कृति की बढ़ती स्वीकृति का पता चलता है. उन्होंने कहा, “हमारे पहले से पसंद किए जाने वाले परिधान की बिक्री का औसत समय छह दिन है.” यह ध्यान देने योग्य है कि पांच सालों के भीतर इसके 64 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
सर्कुलर फैशन में मूल्य निर्धारण की पहेली
सभी ब्रांडों की पुनर्विक्रय नीति नहीं होती है. न ही भारत में कपड़ा के कचरा को इकठ्ठा करने की कोई ठोस व्यवस्था है. हालांकि, भारत कई दशकों से कपड़ों के रिसाइकल का केंद्र रहा है और यह देश पुराने कपड़ों के प्रमुख आयातकों में से एक है. हालांकि बाद में भारत में केवल कपड़ों की बर्बादी और मौजूदा कपड़ों के कचरे का बोझ बढ़ा है. रीसाइक्लिंग कारखाने कई स्थायी ब्रांडों का फीड-स्टॉक रहे हैं. उनमें से एक दिल्ली स्थित फैशन लेबल डूडलेज है, जो 2012 से अपसाइकल किए गए कारखाने के कचरे को सीमित एडिशन में बदल रहा है. हालिया गतिविधि के तौर पर यह उपभोक्ताओं के कचरे को अलग-अलग करने के लिए इकट्ठा करता है, ताकि भारतीय खरीदारों को जिन कपड़ों को वे पहनना नहीं चाहते उन कपड़ों को छोड़ने के लिए ज़िम्मेदार बनाया जा सके.
सस्टेनेबल फैशन उद्योग का सबसे पहले लाभ उठाने वाला डूडलेज है, शुरुआती सालों में उनसे एक सवाल बार-बार पूछा गया था, उनके कपड़े कचरे से इतने महंगे क्यों थे?
ख़ास तौर से सभी सस्टेनेबल ब्रांडों के लिए, जिनके फैशन विकल्प कई ई-कॉमर्स वेबसाइटों और ब्रांडों द्वारा संचालित होते हैं और जो सस्ती कीमत पर तेजी से फैशन बेच रहे हैं, उनके लिए उच्च मूल्य निर्धारण की पहेली भारत में एक बड़े उपभोक्ता वर्ग तक उनकी पहुंच सीमित कर देती है. डूडलेज की सह-संस्थापक और रचनात्मक निदेशक कृति तुला ने बताया, “स्लो फैशन लेबल का प्राइस टैग, स्लो प्रोडक्शन की सही कीमत है जो उत्पादन करने वाले लोगों के लिए बेहतर है.”
इस बीच, कोटामाराजू ने मांग और आपूर्ति के अर्थशास्त्र के माध्यम से मूल्य निर्धारण की पहेली की जांच की, जिसमें बताया गया है कि स्केल किए गए ऑपरेशनल मॉडल, ऑफ-शोर निर्माण और कम मजदूरी के कारण तेजी से बढ़ते फैशन की लागत कम हो जाती है.
उन्होंने कहा, “इकाई मूल्य निर्धारण (यूनिट प्राइसिंग) का मूल कारण सर्कुलर अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण होना है. एक कंपनी के लिए जिसका बुनियादी ढांचा कपास की अर्थव्यवस्था के आधार पर डिज़ाइन किया गया है, यदि वह एक वैकल्पिक टिकाऊ सामग्री पर स्विच करे तो लागत बढ़ जाएगी.”
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: सीएआईएफ 20 से अधिक भारतीय और वैश्विक ब्रांडों के साथ विभिन्न पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और ‘हरित सूक्ष्म-उद्यमियों’ को तैयार करने की पहल में सक्रिय रूप लगी हुई है. तस्वीर - सीएआईएफ.
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