5G टेस्टिंग के दौर में देश में कितने PCO बूथ बचे हैं?
मोबाइल फोन ने पीसीओ-एसटीडी को धीरे-धीरे कैसे ख़त्म किया?
2003 में एक फिल्म आई थी 'बागबान'. तमाम बातों के बीच ये फिल्म ये भी बताती है कि उस वक़्त पब्लिक फोन बूथ हुआ करते थे. और अमिताभ बच्चन के पास एक-एक रुपये के पर्याप्त सिक्के और उतना ही धैर्य था जिसके इस्तेमाल से उन्होंने 4 मिनट 45 सेकंड का गाना गाया.
2022 के 4G से 5G की ओर बढ़ते मोबाइल युग में कॉल इसके पहले ही ड्रॉप हो जाती. या फिर नेटवर्क इतना मरा हुआ होता कि पापा बच्चन के इमोशन कॉलर ट्यून में ही सिमट गए होते. जैसे कुछ महीनों पहले तक कोरोनावायरस से जुड़ी हिदायतें देने में ख़त्म हो गए थे.
लेकिन ये सिर्फ इंडिया ही नहीं है जहां 'पीसीओ' का नॉस्टैल्जिया बना हुआ है. बीते महीने न्यू यॉर्क शहर का एक वीडियो ट्विटर पर छाया रहा. जिसमें शहर के आखिरी 'पे फ़ोन' को उखाड़कर हटा दिया गया.
न्यू यॉर्क के मैनहैटन इलाके के एक स्थानीय नेता ने वीडियो डालते हुए लिखा "अब अपनी जेबों में सिक्के तलाशने का दौर बीत गया." फ़ोन बूथ के हटाए जाने पर कई अधिकारी आए और आखिरी फोन बूथ को अलविदा कहा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पे फोन्स को हटाकर वाईफाई कियोस्क लगाने की कवायद साल 2015 से ही शुरू हो गई थी. ऐसा ही इस आखिरी बूथ को हटाकर भी किया जाएगा. नए वाईफाई कियोस्क में फ्री इन्टरनेट के साथ चार्जिंग पोर्ट और 911 इमरजेंसी कॉल सेवा शहर के मैप और दुकानों से लेकर तमाम जानकारी होगी.
हालांकि उखड़ा हुआ पे फ़ोन कचरे में नहीं जाएगा. बल्कि न्यू यॉर्क शहर के म्यूज़ियम में सजेगा.
इंडिया के 'पीसीओ'
पीले रंग के एक ढांचे पर काले रंग से लिखा हुआ 'पीसीओ' आपको देश के कोने-कोने दिख जाया करता था. पीसीओ यानी पब्लिक कॉल ऑफिस, पेफ़ोन्स का कॉन्सेप्ट था जो इंडिया ने अंग्रेजों से लिया था. और अंग्रेजों ने लिया था अमेरिकियों से. अमेरिका में 1889 में पहला पब्लिक टेलीफोन बूथ लगाया गया था. हालांकि इंडिया में इसे आकर पॉपुलर होने में लगभग 100 साल लग गए!
मोबाइल फोन्स आने तक टेलीफोन बूथ इंडिया में बहुत पॉपुलर रहे. अक्सर पीले बैकग्राउंड पर आपको काले रंग से पुता हुआ पीसीओ, आईएसडी (इंटरनेशनल सब्सक्राइबर डायलिंग और एसटीडी (सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग) लिखा हुआ दिख जाता था. 'लिंक्डइन' पर मौजूद सुनंदो बनर्जी के एक आर्टिकल के मुताबिक़, अपने आने के तीन-चार साल के अंदर ही देश में लगभग 10 लाख फोन बूथ खुल चुके थे, जिसमें लगभग 15 लाख लोग काम कर रहे थे.
90 के दशक के अंत तक टेलिकॉम इंडस्ट्री में प्राइवेट प्लेयर आने लगे थे. साथ ही सेलफ़ोन की एंट्री भी होने लगी थी. लेकिन सेलफोन तब भी महंगे खिलौने कहलाते थे, जिसकी वजह से एसटीडी बूथ इंडिया में चलते रहे.
मगर आने वाले समय में सेलफोन के साथ कॉलिंग और सस्ती होती चली और और लगभग दस साल में एसटीडी बूथ गायब होते चले गए.
समय के साथ पीसीओ बदल गए और वहां मोबाइल रीचार्ज कूपन बिकने लगे. कुछ पीसीओ इंटरनेट कैफ़े में भी बदल गए. ये और बात है कि इंटरनेट कैफ़े की भी उम्र के साथ मौत हो गई.
PCO 'एसेंशियल' नहीं
कई जगह विलुप्त हो जाने के बावजूद रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह थी जहां फ़ोन बूथ दिखा करते थे. मगर साल 2018 में जारी एक अनाउंसमेंट के बाद रेल मंत्रालय ने फोन बूथ को 'एसेंशियल' यानी ज़रूरी चीजों की लिस्ट से हटा दिया. मिनिस्ट्री के मुताबिक़, चूंकि लगभग सभी लोग मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं, फोन बूथ से बेहतर था हर स्टेशन पर चार्जिंग पॉइंट लगाना जिससे लोग अपने फोन की बैटरी चार्ज कर सकें.
NDTV की साल 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक़ उस वक़्त तक सभी रेलवे स्टेशन्स पर मिलाकर कुल 20,000 टेलीफोन बूथ चल रहे थे. 5G टेस्टिंग के आज के दौर में पीसीओ को लेकर कोई ठीक-ठीक आंकड़ा नहीं मिलता.
फ़िलहाल देश में 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन हैं. ऐसे में एसटीडी बूथ की उपयोगिता न के बराबर रहती है. साल 2015 में संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन मिनिस्टर ऑफ़ कम्युनिकेशन एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रविशंकर प्रसाद ने बताया था कि देश में लगभग 5.7 लाख फोन बूथ बचे हैं. ये संख्या 2014 के मुकाबले यानी एक साल के भीतर ही तेज़ी से बदल गई थी. मार्च 2014 से जून 2015 के बीच पब्लिक फोन बूथ्स की मौजूदगी में 26 फीसद की गिरावट(7.8 लाख से 5.7 लाख) देखी गई थी.
वहीं TRAI (टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) के डाटा के मुताबिक, 2009 में देश भर में 50 लाख पीसीओ थे. यानी 6 साल में देश भर के पीसीओ की संख्या 50 से 5.7 लाख हो गई थी.
भले ही इंडिया में टेलीफोन बूथ के अवशेष म्यूजियम में न दिख रहे हों. मगर 80 और 90 के दशक देखने वालों की स्मृति में ज्यों के त्यों बने हुए हैं.
Edited by Prateeksha Pandey