हर भारतीय को विदेश नीति की परवाह करनी चाहिए: एस जयशंकर
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ बातचीत में राजनयिक निर्णयों का नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसके बारे में बताया.
हाइलाइट्स
- विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि विदेश नीति राजनीति या दफ्तरशाही तक ही सीमित नहीं है बल्कि नागरिकों और उनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करती है
- भारत ने बड़े जनहित को ध्यान में रखते हुए हाल के अंतरराष्ट्रीय मामलों में कुछ कड़े कदम उठाए हैं
- विदेश मंत्री ने दोहराया कि वैश्वीकरण एक बहुध्रुवीय दुनिया की ओर ले जा रहा है
- भारत की विदेश नीति की सफलताएँ देश में बढ़ती मैन्युफैक्चरिंग और नौकरियों से स्पष्ट हैं
2021 में, दुनियाभर में सेमीकंडक्टर या चिप की कमी के कारण स्मार्टफोन की लागत में वृद्धि हुई. इससे भी बड़ा प्रभाव ऑटोमोबाइल उद्योग पर पड़ा. वाहन उत्पादन लंबे समय तक चला और कीमतें बढ़ने की आशंका थी. अगले वर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध ने गेहूं की कीमतों को बढ़ा दिया क्योंकि यूक्रेन अनाज का एक प्रमुख निर्यातक था. गेहूं की बढ़ती कीमतों और बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए भारत को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा. हालाँकि ये भारत में हमारे लिए दूर की घटनाओं की तरह लग सकते हैं, हमारी जैसी परस्पर जुड़ी दुनिया में, विदेश नीति के फैसले हमारे दैनिक जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर कहते हैं, “हर भारतीय को विदेश नीति की परवाह करनी चाहिए क्योंकि इसका असर हर भारतीय पर पड़ने वाला है.”
उपरोक्त उदाहरण उनकी बात को सिद्ध करते हैं. विदेश नीति का सीधा प्रभाव न केवल आपके किराने के सामान और आवश्यक खरीदारी पर पड़ता है, बल्कि आपके दैनिक जीवन और नौकरी की संभावनाओं पर भी पड़ता है.
भारत की विदेश नीति पिछले कुछ दशकों में विकसित हुई है, जिसका मूल सिद्धांत वैश्विक मंच पर देश के हितों की रक्षा करना है. अपने सबसे हालिया निर्णयों में, देश ने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अपने निर्णयों में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी है. इनमें से कई निर्णय गरीबों या वंचितों के हितों की रक्षा की घोषित नीति द्वारा निर्देशित किए गए हैं.
तेल खरीद की पहेली को सुलझाना
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. लेकिन साथ ही, विदेश मंत्री बताते हैं कि कैसे सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है कि आम जनता को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना न करना पड़े.
मंत्री ने एक दिलचस्प बात के साथ इस पर प्रकाश डाला. वह 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत को याद करते हुए कहते हैं, “हम पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव था.”
युद्ध की शुरुआत के बाद से, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कनाडा ने रूस पर 16,000 से अधिक प्रतिबंध लगाए हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने तेल और गैस के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जो रूस के लिए कमाई का प्रमुख जरिया है. हालाँकि, भारत ने रूस से तेल आयात करना जारी रखा और पश्चिम से इसकी भारी आलोचना हुई.
मंत्री बताते हैं, “अगर हम रूसी तेल नहीं खरीदते और मध्य पूर्व से खरीदना जारी रखते, तो तेल की कीमतें बढ़ जातीं. इसका मतलब है कि भारतीय उपभोक्ताओं, जिनमें से कुछ वास्तव में कम आय वाले उपभोक्ता हैं, को पेट्रोल के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती.”
मुद्रास्फीति में वृद्धि, और सब्जियों से लेकर दूध और यहां तक कि किराना तक दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, ईंधन की कीमतों में वृद्धि के बाद होती है. उन्होंने आगे कहा, “यहां विदेश नीति और मूल्य वृद्धि के बीच संबंध है. इससे लागत में स्थिरता आएगी.”
हम बहुध्रुवीय विश्व में रह रहे हैं
मंत्री, जिन्हें अक्सर हमारे देश का सबसे रणनीतिक विचारक माना जाता है, बहुध्रुवीय दुनिया के विचार के मुखर समर्थक हैं.
उन्होंने बताया, “आज, हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं. कहीं भी जो कुछ भी बड़ा होता है वह हमारे घरों तक पहुंचता है.” उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहा है कि वैश्वीकरण हमारे समय की वास्तविकता है, और दुनिया के किसी भी हिस्से में विकास को अब अलग-थलग नहीं माना जा सकता है.
आत्मनिर्भर भारत पर भारत के फोकस के साथ-साथ यह विदेश नीति भी है, जिसने देश में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) अवसरों की एक नई लहर को बढ़ावा दिया है. महामारी के बाद, चीन से जोखिम कम करने के लिए पश्चिम तेजी से पूर्व की ओर देख रहा है. और भारत उस दौड़ में प्रबल दावेदार है. उदाहरण के लिए, अमेरिका भारत को "शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भागीदार" के रूप में देखता है.
मंत्री का कहना है कि कूटनीति नए दरवाजे खोलती है. उदाहरण के लिए, हमारे रणनीतिक संबंधों के कारण भारत अमेरिका से विमान, रूस से तेल और इज़राइल से मिसाइलें खरीद सकता है.
एक अन्य क्षेत्र जहां भारत ने काफी प्रगति की है वह है चिप निर्माण. मंत्री कहते हैं, “यह चिप्स या सेमीकंडक्टर की दुनिया है.” Apple और Google जैसी दिग्गज टेक कंपनियों ने भारत में अपने फोन का निर्माण शुरू कर दिया है. इन घटनाक्रमों में कूटनीति और विदेश नीति की बड़ी भूमिका है.
मंत्री के अनुसार, कूटनीति के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में देश भारत में विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के इच्छुक हैं. उन्होंने आगे कहा, “विनिर्माण एक संवेदनशील मुद्दा है. जब हम कूटनीति के माध्यम से कुछ देशों को भारत में (कारखाने) स्थापित करने के लिए मना सकते हैं, तो वे उन समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार होते हैं.” बदले में, ये समझौते हजारों नए रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देते हैं.
इंटरव्यू के आखिर में मंत्री लोगों को याद दिलाना चाहते हैं कि विदेश नीति हर भारतीय के लिए महत्वपूर्ण है. यह सिर्फ उनके जैसे मंत्रियों या भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों के लिए प्रासंगिक नहीं है. इसमें हम सभी की हिस्सेदारी है.
(Translated by: रविकांत पारीक)