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देश के सबसे बड़े दानवीर अजीम प्रेमजी की रियासत संभालेंगे रिशद

देश के सबसे बड़े दानवीर अजीम प्रेमजी की रियासत संभालेंगे रिशद

Monday June 10, 2019 , 5 min Read

आगामी 30 जुलाई 2019 को अजीम हशम प्रेमजी विप्रो के कार्यकारी चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं, पूरे ग्रुप की बागडोर उनके बड़े बेटे रिशद प्रेमजी संभालने वाले हैं। कई सवाल सामने हैं कि क्या वह पिता की तरह परोपकारी छवि के साथ पिछड़ रही विप्रो कंपनी को आईटी सेक्टर में पुनः ऊंचाइयों पर ले जा पाएंगे! 
azim premji

पिता अजीम प्रेमजी के साथ रिशद

ऐसे वक़्त में जबकि रतन टाटा कंपनी का नेतृत्व सायरस मिस्त्री को सौंपे थे, टाटा ग्रुप के अंदर और बाहर बेचैनी रही, देश के विकास में शीर्ष भूमिका निभाने वाले रतन टाटा अपी विरासत को लेकर आखिर तक असुरक्षा की भावना से घिरे रहे। कुमार मंगलम बिड़ला के बेटे आर्यमन बिड़ला ने पिता की विरासत से अलग क्रिकेट में करियर बनाने का निश्चय किया तो धीरुभाई अंबानी की विरासत पुत्रों के बीच अंतर्कलह का सबब बन गई लेकिन विप्रो के चेयरमैन अजीम हशम प्रेमजी के मुताबिक, उनके पिता हशम प्रेमजी ने विप्रो की शुरुआत की थी।


उन्होंने 1966 में पिता के देहांत के बाद खुद विप्रो की कमान संभाल ली। उन्होंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को 2.2 बिलियन दान के साथ शुरू किया, जो वर्तमान में भारत के एजुकेशन सेक्टर में कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में राज्य सरकारों के साथ घनिष्ठ साझेदारी के साथ काम करता है। पांच दशक से ज्यादा समय से वह विप्रो का सफल नेतृत्व करते आ रहे हैं। एक बड़ी आईटी कंपनी बनाने के साथ ही उद्योग जगत में उनकी अत्यंत उदार परोपकारी उद्योगपति की छवि है। वह आगामी 30 जुलाई 2019 को विप्रो के कार्यकारी चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं।


अजीम प्रेमजी कहते हैं- अमीरी उन्हें रोमांचित नहीं करती है। उन्हे दृढ़ विश्वास है कि जिन्हें धन रखने का विशेषाधिकार है, उन्हें उन लाखों लोगों के लिए बेहतर दुनिया बनाने में योगदान देना चाहिए, जो बहुत कम विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इसीलिए वह अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा सर्वजन सुखाय दान कर चुके हैं। अब विप्रो की कमान उनके बड़े बेटे रिशद प्रेमजी के हाथों में आ रही है। तारिक उनके कनिष्ठ पुत्र हैं।


रिशद प्रेमजी ने वर्ष 2005 में अपनी बचपन की दोस्त अदिति से शादी रचाई थी। उनके दो बच्चे हैं रोहन और रिया। वह मुंबई में रहते हैं। उन्होंने ने वेस्लेयन यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया है और हार्वर्ड से एमबीए। वह पहले से विप्रो में विभिन्न पदों पर काम करते आ रहे हैं। वह बैन एंड कंपनी के साथ दो साल काम कर चुके हैं। रिशद प्रेमजी को विप्रो में अपनी पहली नौकरी कई इंटरव्यू के बाद मिली थी। उन्होंने वर्ष 2007 में बिजनेस मैनेजर के पद पर विप्रो ज्वॉइन करने के बाद बैंकिंग और फाइनेंस सर्विस को संभालने लगे। रिशद बताते हैं कि विप्रो ज्वॉइन करने से पहले इस कंपनी के पूर्व को-सीईओ गिरीश परांजपे ने उनका इंटरव्यू लिया था। उस समय वह लंदन में थे। वर्ष 2010 में उनको विप्रो में चीफ स्ट्रैटजी ऑफिसर का पद मिला।





आईटी सेक्टर के जानकार बता रहे हैं कि रिशद प्रेमजी चेयरमैन के रूप में अपने पिता से भी बेहतर मुकाम हासिल कर सकते हैं। उनको विप्रो की कमान उस वक्त मिली है, जब भारतीय आईटी सर्विस इंडस्ट्री एक चुनौतीपुर्ण दौर से गुजर रही है। अभी तक नैसकॉम के चेयरमैन रहे रिशद कहते हैं- 'उनके पिता ने पिछले 53 सालों में विप्रो को एक छोटे से कारोबार से बढ़ाकर इस मुकाम तक पहुंचाया है। उनका योगदान और उपलब्धि विप्रो की सफलता से परे है। वह आज वैश्विक स्तर पर आईटी उद्योग की शीर्ष हस्तियों में शुमार हैं। टाइम मैगज़ीन उनको सौ बार सबसे अधिक प्रभावशाली लोगों में सूचीबद्ध कर चुकी है।'


रिशद प्रेमजी लगभग एक दशक से प्रबंधन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और कंपनी को बेहतर तरीके से समझते हैं। उनकी कार्यशैली अपने पिता से अलग है क्योंकि वह बहुत जल्द फैसला लेते हैं। वर्तमान स्थितियों को मद्देनजर रखते हुए उनके डिजिटल सेवाओं और उत्पाद प्लेटफॉर्म के मोर्चे पर बड़े कदम उठाने की संभावना है ताकि कंपनी फिर से वृद्धि की लय हासिल कर सके।


एक ताज़ा सूचना के मुताबिक, आज आईटी सेक्टर की अगुआ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) जहां विश्व मंच पर तीसरे पायदान पर पहुंच चुकी है, इन्फोसिस की वृद्धि नौ फीसदी रही है, एचसीएल टेक्नोलॉजिज ने 11.8 फीसदी राजस्व वृद्धि दर्ज की है, विप्रो पिछली कुछ तिमाहियों से अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों से पिछड़ रही है। तुलनात्मक रूप से पिछले वित्त वर्ष के दौरान उसका राजस्व मात्र 5.4 फीसदी (6.01 करोड़ डॉलर) बढ़ा है। विप्रो का पुराना नाम वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स था। यह महाराष्ट्र के अमालनर में स्थित थी। तब इसका कारोबार तेल-साबुन जैसे उत्पादों तक सीमित था। 1966 में अजीम प्रेमजी के पिता का देहांत हो गया तो उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत आना पड़ा था।


अब, जबकि विप्रो का भविष्य पूरी तरह रिशद प्रेमजी के कंधों पर आने वाला है, पूरे विश्व के उद्योगपतियों की निगाहें इस संशय और सवाल के साथ उन पर जा टिकी हैं कि क्या अपने एक कामयाब, यशस्वी पिता की तरह उनकी विरासत को और ऊंचे सपनों का मुकाम दे पाएंगे? उस पिता की तरह क्या वह भी देश में बने परोपकार की मिसाल बनेंगे, जो विप्रो का अपना 67 फीसदी शेयर अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर चुका है?