कभी हर जेब में होता था Rotomac का पेन, जानिए कैसे खुद लिख डाली बर्बादी की दास्तां
विक्रम कोठारी ने रोटोमैक कंपनी की स्थापना अपने पिता मनसुख कोठारी द्वारा खड़ी की गई पान मसाला कंपनी 'पान पराग' से अपने भाई दीपक कोठारी से अलग होकर 90 के दशक में की थी.
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) से जुड़े 750.54 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी के मामले में कानपुर की रोटोमैक ग्लोबल और उसके निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. पेन बनाने वाली कंपनी पर बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले सात बैंकों के गठजोड़ (कंसोर्टियम) का कुल 2,919 करोड़ रुपये का बकाया है. इस बकाये में इंडियन ओवरसीज बैंक का हिस्सा 23 प्रतिशत है.
जांच एजेंसी ने कंपनी और उसके निदेशकों साधना कोठारी और राहुल कोठारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अलावा आपराधिक साजिश (120-बी) और धोखाधड़ी (420) से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
बैंकों के गठजोड़ के सदस्यों की शिकायतों के आधार पर कंपनी पहले से ही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच के घेरे में है.
सीबीआई को अपनी शिकायत में इंडियन ओवरसीज बैंक ने आरोप लगाया कि कंपनी को 28 जून, 2012 को 500 करोड़ रुपये की गैर-कोष आधारित राशि सीमा स्वीकृत की गई थी. वहीं, 750.54 करोड़ रुपये की बकाया राशि में चूक के बाद खाते को 30 जून, 2016 को गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया था.
बैंक ने आरोप लगाया कि कंपनी की विदेशी व्यापार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने 11 साख पत्र (एलसी) जारी किए थे. ये सभी पत्र हस्तांतरित कर दिए गए थे, जो 743.63 करोड़ रुपये के बराबर है. बैंक का आरोप है कि दस्तावेजों के अभाव में लदान के बिलों में दावा किए गए व्यापारिक जहाज और यात्राओं की प्रामाणिकता पर संदेह है.
बैंक द्वारा किए गए फॉरेंसिक ऑडिट में बही-खाते में कथित हेरफेर और एलसी से उत्पन्न होने वाली देनदारियों का खुलासा न करने के संकेत मिले थे. ऑडिट में लेखापरीक्षा में बिक्री अनुबंधों, लदान के बिलों और संबंधित यात्राओं में भी अनियमितताएं पाई गई हैं. इसमें कहा गया है कि कुल की 92 प्रतिशत यानी 26,143 करोड़ रुपये की बिक्री एक ही मालिक और समूह के चार पक्षों को की गई.
बैंक ने आरोप लगाया कि इन पक्षों या पार्टियों को प्रमुख आपूर्तिकर्ता रोटोमैक समूह था. वहीं इन पक्षों की ओर से खरीद करने वाला बंज ग्रुप था. रोटोमैक समूह को उत्पादों की बिक्री करने वाला प्रमुख विक्रेता बंज ग्रुप था. इन चारों विदेशी ग्राहकों का समूह के साथ संबंध था.
कंपनी ने कथित रूप से बैंक के साथ धोखाधड़ी की और धन को इधर-उधर किया. इससे बैंक को वित्तीय नुकसान हुआ और कंपनी ने खुद गलत तरीके से 750.54 करोड़ रुपये का लाभ कमाया. अभी इसकी वसूली नहीं हो सकी है.
ऐसे हुई थी रोटोमैक की शुरुआत
विक्रम कोठारी ने रोटोमैक कंपनी की स्थापना अपने पिता मनसुख कोठारी द्वारा खड़ी की गई पान मसाला कंपनी 'पान पराग' से अपने भाई दीपक कोठारी से अलग होकर 90 के दशक में की थी.
दरअसल, 25 जुलाई 1925 को गुजरात के सुरेंद्र नगर जिले के नरैली गांव में जन्मे मनसुख कोठारी केवल 16 साल की उम्र में 500 रुपये लेकर कानपुर पहुंचे थे. मनसुख कोठारी किसी जमाने में साइलिक पर पान मसाला बेचते थे. परिवार कि किस्मत तब बदली जब उन्होंने पारले प्रॉडक्ट्स का कानपुर में डिस्ट्रिब्यूशन हासिल कर लिया.
इसके बाद, पान बहार मसाले को टक्कर देने के लिए मनसुख कोठारी ने 18 अगस्त 1973 में पान पराग पान मसाला की नींव रखी थी. 1983 में कोठारी प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई. उन्हानें 1985 में डिब्बे में बिकने वाले पान मसाला को पाउच में पेश करके क्रांति ला दी थी. विक्रम कोठारी और उनके भाई दीपक कोठारी ने लगातार बढ़ते पान मसाला साम्राज्य के प्रबंधन में अपने पिता मनसुखभाई की सहायता की.
देखते ही देखते ये ब्रांड सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में पसंद किया जाने लगा. 70 के दशक में इस ब्रांड के 5 रुपए के 100 ग्राम पैकेट ने ऐसी धूम मचाई की ये भारत के अलावा खाड़ी देशों, अमेरिका और यूरोप तक पहुंच गया और पसंद किया जाने लगा. मनसुख कोठारी को 1987 में पान पराग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया था.
पान पराग का एक विज्ञापन काफी मशहूर हुआ था. यह शम्मी कपूर और अशोक कुमार पर फिल्माया गया था. इस विज्ञापन का एक वाक्य ‘बारातियों का स्वागत पान पराग से कीजिएगा’ हर व्यक्ति की जुबान पर रहता था. इस विज्ञापन ने पान पराग ब्रांड को घर-घर तक न केवल पहचान दिलाई बल्कि इसे दुनिया भर में मशहूर कर दिया. 1983 से 87 तक पान पराग टीवी पर सबसे बड़ा एकल विज्ञापनदाता था.
1999 में Rotomac का कारोबार लेकर अलग हो गए थे विक्रम कोठारी
कारोबार के बढ़ने के साथ ही समूह ने दूसरे कारोबार में भी कदम रखा और 1992 में रोटोमैक पेन कंपनी का गठन किया गया. इसके कुछ साल बाद ही मिनरल वाटर ब्रांड यस को लॉन्च किया गया. मौजूदा समय में पान मसाला के अलावा रियल एस्टेट, मिनरल वाटर, विंड एनर्जी, ऑयल इंडस्ट्री के अलावा नोएडा में कोठारी इंटरनेशनल स्कूल भी है.
1999 में दोनों भाइयों ने अलग-अलग रास्ते जाने का फैसला किया. बड़े भाई विक्रम कोठारी 1,250 करोड़ रुपये लेकर ग्रुप से अलग हो गए और उन्होंने स्टेशनरी और कलम के कारोबार की कमान संभाली, जबकि छोटे भाई दीपक कोठारी ने पान मसाला साम्राज्य पर नियंत्रण किया.
‘लिखते-लिखते लव हो जाए’ विज्ञापन ने दी थी अलग पहचान
रोटोमैक कंपनी का करीब दो दशक तक बाजार में दबदबा रहा. वर्ष 1997 में, उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा सर्वश्रेष्ठ निर्यातक के रूप में सम्मानित किया गया था. 2005 में कंपनी सौ करोड़ के क्लब में शामिल हुई थी. 90 के दशक में रोटोमेक का ‘लिखते-लिखते लव हो जाए’ वाला विज्ञान काफी लोकप्रिय हुआ था. इसे उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री रवीना टंडन ने किया था.
ऐसे हुआ बर्बाद
2010 से इस कंपनी का पतन शुरू हो गया. इसकी दो मुख्य वजहें रहीं जिसमें एक तो कई बड़ी पेन कंपनियां बाजार में आ गईं तो वहीं दूसरी तरफ विक्रम कोठारी ने जिन दूसरे कारोबारों में पैसा लगाया, उनमें भी सफलता नहीं मिली और कंपनियां दिवालिया हो गईं. मामला (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) एनसीएलटी में पहुंच गया.
फरवरी 2018 में विदेश जाने की खबरों के बीच सीबीआई ने पहले विक्रम को और बाद में उनके बे राहुल को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें करीब दो साल जेल में बिताने पड़े. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें स्वास्थ्य के आधार पर जमानत दे दी थी. रोटोमैक ग्रुप के प्रबंध निदेशक विक्रम कोठारी का इस साल जनवरी में निधन हो गया.
दिसंबर 2020 में रोटोमैक का वजूद खत्म हो गया और 3.5 करोड़ में रोटोमैक ब्रांड का नाम नीलाम हो गया. रोटोमैक का ग्लोबल राइट और नाम 12 कंपनियों ने लिया है और ये सभी उनका इस्तेमाल ट्रेडमार्क के रूप में कर सकती हैं.
7 बैंकों से लिया कर्ज, लेकिन चुका नहीं पाए
विक्रम कोठारी ने अपना कारोबार खड़ा करने के लिए सात अलग-अलग राष्ट्रीयकृत बैंकों से 2008 के बाद से 2,919 करोड़ का लोन लिया था. भुगतान में बार-बार चूक होने के कारण बाद में जमा ब्याज सहित राशि बढ़कर 3,695 करोड़ रुपये हो गया. बैंकों के जुर्माने के साथ यह रकम सात हजार करोड़ से ज्यादा हो गई.
विक्रम कोठारी पर विभिन्न बैंकों की सात हजार करोड़ से ज्यादा की बकायेदारी सामने आने पर सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. जांच में पता चला था कि सौ करोड़ से कम टर्नओवर वाली कंपनी को तीन हजार करोड़ से ज्यादा का लोन बैंकों ने दिया था. कंसोर्टियम की सात बैंकों में कई बार ऑडिट हुआ लेकिन अनियमितता को नहीं पकड़ा जा सका.
इस एडटेक कंपनी ने 3.65 अरब रुपये की फंडिंग हासिल की, दुनियाभर में कारोबार बढ़ाने की योजना