ग्रामीण भारत अब सस्टेनेबिलिटी द्वारा $15B वैश्विक निर्यात क्षमता के साथ चीन का मुकाबला कर सकता है
यहां यह बताया गया है कि कैसे ग्रामीण भारत सस्टेनेबल आवश्यक वस्तुओं के निर्माण के लिए एक उभरते केंद्र के रूप में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है.
सस्टेनेबल डेवलपमेंट की अनिवार्यता के और ग्लोबल ट्रेड इकॉनमी के बदलते परिदृश्य में ग्रामीण भारत एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है. यह परिवर्तन बढ़ते स्टार्टअप इकोसिस्टम, खासकर वैसे स्टार्टअप जो उत्पादन से सम्बंधित है, के कारण संभव हो पा रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक यह क्षेत्र $15 बिलियन का एक संभावित और प्रभावशाली आंकड़ा प्रस्तुत करता है. जो कि ग्लोबल इकॉनमी में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है और यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर ग्रामीण भारत की बढ़ती प्रमुखता को रेखांकित करता है.
ये महत्वपूर्ण बदलाव किसी आकस्मिक परिस्थितियों का परिणाम नहीं है बल्कि इसके पीछे कई कारक मौजूद हैं जो ग्रामीण भारत की स्थिति में परिवर्तन ला रहे हैं. नवाचार, रणनीतिक संसाधन आवंटन और विकसित होते सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने जैसे परिवर्तनकारी शक्तियों ने साथ मिलकर ग्रामीण भारत के पुनरुत्थान में योगदान दिया है.
इसे ध्यान में रखते हुए, यहां यह बताया गया है कि कैसे ग्रामीण भारत सस्टेनेबल आवश्यक वस्तुओं के निर्माण के लिए एक उभरते केंद्र के रूप में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है.
एक सस्टेनेबल मनुफैक्ट्ररिंग हब के रूप में ग्रामीण भारत का उद्भव
गन्ने के रेशे जैसे कृषि-अपशिष्ट को प्लेट और कटोरे जैसी जरुरी रोजमर्रा की वस्तुओं में पुन: उपयोग करने का प्रयास एक समकालीन इनोवेशन के रूप में दिखाई दे सकता है. हालांकि भारत के संदर्भ में, यह प्रथा देश की सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन परंपराओं की याद दिलाती है.
विशाल परिदृश्य और कृषि योग्य ज़मीन की उपलब्धता के कारण ग्रामीण भारत की पहचान , लंबे समय से कृषि गतिविधि के केंद्र के रूप में रही है. यह संसाधन की प्रचुरता और नवीनता की समृद्ध विरासत से जुड़ा क्षेत्र है, जहां सस्टेनेबिलिटी पीढ़ियों से दैनिक जीवन के साथ जुड़ा रहा है. परम्परा और सहजता के कारण आज ग्रामीण भारत ऐसी प्रथाओं को जन्म दिया है जो अब वैश्विक स्तर पर सस्टेनेबल मनुफैक्ट्ररिंग के उदाहरण के केंद्र में खड़ा है.
ग्रामीण भारत में कृषि-अपशिष्ट और प्राकृतिक संसाधन की प्रचुरता हैं जो एक बड़े उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कृषि कार्य के बाद बचे इन उपेक्षित प्रतीत होने वाले अवशेषों को सस्टेनेबल और पर्यावरण के अनुकूल आवश्यक उपयोग की वस्तुओं में बदलने की अपार संभावनाएं हैं. कृषि-अपशिष्ट में नई जान फूंक कर, ग्रामीण समुदाय ऐसी वस्तुओं के निर्माण कर रहे हैं जो न केवल सस्टेनेबल है अपितु पर्यावरण और ग्रह के अनुकूल भी है.
आर्थिक क्षमता: $15 बिलियन के निर्यात के अवसर
15 अरब डॉलर की निर्यात क्षमता का अनुमान ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग डायनामिक्स में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है. ग्रामीण भारत, जिसे कभी इस मामले में निष्क्रिय भागीदार माना जाता था, अब सस्टेनेबल उत्पादों के निर्यात में चीन को टक्कर देने के लिए तैयार है. यह न सिर्फ वित्तीय सुधार का परिचायक है अपितु ग्रामीण समुदायों के भीतर स्थायी उद्यमिता की परिवर्तनकारी शक्ति का एक प्रमाण भी है.
ग्रामीण समुदायों का उत्थान
भारत में ग्रामीण समुदाय सस्टेनेबल वस्तुओं के उत्पादन की दिशा में न केवल आर्थिक योगदानकर्ता के रूप में उभरे हैं, बल्कि इस सकारात्मक बदलाव के प्रणेता के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं. कृषि-अपशिष्ट के पुनः उपयोग और सस्टेनेबल आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन के साथ उनका आर्थिक पुनरुत्थान भी हो रहा है, जो लंबे समय से हाशिए पर रहे जीवन जीने को बाध्य थे.
ये पहल उन समुदायों के लिए आशा की किरण के रूप में काम कर रही है, जिन्होंने दशकों से आर्थिक असमानता और शोषण का बोझ उठा रहे हैं. यह सस्टेनेबल मूवमेंट ग्रामीण निवासियों को स्थाई रोजगार के अवसर, उचित वेतन और अनुकूल कार्य परिस्थिति प्रदान करके उनके आर्थिक उत्थान के साथ उनमें एक नई भावना का संचार करता है.
यह सस्टेनेबल कार्यों की समावेशी क्षमता का प्रमाण है, जो ग्रामीण समुदायों में नए जीवन का संचार कर रही है जो इस विशाल बदलाव के एक प्रमुख घटक हैं. इस ठोस प्रयास के माध्यम से, ग्रामीण भारत न केवल वैश्विक आर्थिक मंच पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है बल्कि अपने सभी नागरिकों के लिए अधिक न्यायसंगत, समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.
(लेखक ‘EcoSoul Home’ के को-फाउंडर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक