Sahara Scam: जब सेबी के बाहर लगी 127 ट्रकों की लाइन, दस्तावेज चेक करने में खर्च हुए 55 करोड़
एक दौर था जब सहारा 18 लाख से भी ज्यादा लोगों को नौकरी देकर उनका सहारा बना था. एक आज का वक्त है, जब इस कंपनी के मालिक सुब्रत रॉय खुद सहारा ढूंढते फिर रहे हैं. सहारा के सुब्रत रॉय पर 24 हजार करोड़ रुपये का फ्रॉड करने का आरोप है.
हाइलाइट्स
एक दौर था जब सहारा 18 लाख से भी ज्यादा लोगों को नौकरी देकर उनका सहारा बना था.
एक आज का वक्त है, जब इस कंपनी के मालिक सुब्रत रॉय खुद सहारा ढूंढते फिर रहे हैं.
सहारा के सुब्रत रॉय पर 24 हजार करोड़ रुपये का फ्रॉड करने का आरोप है.
इसी मामले में सहारा ने 127 ट्रक भरकर दस्तावेज जांच के लिए सेबी को भेजे थे.
सहारा... एक वक्त था जब ये नाम बेहद अदब से लिया जाता था. कंपनी को लोग सहारा (Sahara) परिवार कहते थे और इसके सिरमौर सुब्रत रॉय (Subrata Roy) को सहारा श्री कहकर बुलाते थे. वो भी एक दौर था जब सहारा 18 लाख से भी ज्यादा लोगों को नौकरी देकर उनका सहारा बना था. एक आज का वक्त है, जब सुब्रत रॉय खुद सहारा ढूंढते फिर रहे हैं. कभी नेता-अभिनेता-क्रिकेटर्स से लेकर आम आदमी तक के चहेते रहे सुब्रत रॉय आखिर कैसे बर्बाद हो गए, ये कहानी दिलचस्प है. आइए जानते हैं सहारा स्कैम (Sahara Scam) की कहानी, कैसे एक शख्स ने किया 24 हजार करोड़ रुपये का फ्रॉड.
चिट फंड के बिजनेस आइडिया ने बनाया अरबपति
सुब्रत रॉय 10 जून 1948 को एक बंगाली परिवार में पैदा हुए थे. बिजनेस की दुनिया में उन्होंने पहला कदम गोरखपुर में नमकीन के बिजनेस के जरिए रखा. उसके बाद उन्होंने छोटे दुकानदारों से ही पैसे ले-लेकर एक चिट फंड का ऐसा बिजनेस शुरू किया, जिसने उन्हें देश के दिग्गज अरबपतियों में शुमार कर दिया. देखते ही देखते सुब्रत राय रीयल एस्टेट से लेकर मीडिया, हेल्थकेयर हर सेक्टर में पहुंच गए. सालों तक भारतीय टीम की जर्सी पर सहारा का नाम रहा. इसके बाद उन्होंने भी तमाम बिजनेस की तरह आईपीओ लाने का फैसला किया और ये उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई.
आईपीओ के चक्कर में सहारा हुए बेसहारा
सितंबर 2009 में सहारा समूह की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने सेबी के पास आईपीओ लाने के लिए दस्तावेज भेजे. अक्टूबर 2009 में सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाऊसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने भी कंपनी रजिस्ट्रार के पास आईपीओ की अर्जी दी. इसी बीच सेबी के पास सहारा के खिलाफ गलत तरीके से पैसे जुटाने की शिकायत पहुंची. नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिए रौशन लाल नाम के एक शख्स ने भी सेबी के खिलाफ शिकायत की.
इसके बाद जांच शुरू हुई और पता चला कि सहारा समूह ने जिस तरीके (OFCD, Optionally Fully Convertible Debentures) से निवेशकों से पैसे जुटाए, वह गलत था. उस तरीके से 50 से अधिक लोगों से पैसे जुटाने होते हैं तो सेबी की इजाजत लेनी होती है, जबकि सहारा ने बिना इजाजत के ही करीब 3 करोड़ लोगों से पैसे जुटा लिए थे. इसके बाद सेबी ने दोनों कंपनियों के खिलाफ आदेश जारी किया कि उन्हें निवेशकों के पैसे 15 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने होंगे.
शुरू हुआ कोर्ट कचहरी का चक्कर
सेबी के खिलाफ सहारा समूह सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल पहुंच गया, जहां सेबी के आदेश को सही ठहराते हुए सहारा की दोनों कंपनियों को निवेशकों को 25,781 करोड़ रुपये चुकाने को कहा गया. फिर सहारा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपये सेबी के पास जमा कराने का आदेश मिला. पैसे 3 किस्तों में दिए जाने का आदेश दिया. पहली किस्त थी 5,120 करोड़ रुपये की, जिसे तुरंत चुकाना था. इसे तो कंपनी ने चुका दिया, लेकिन बाकी की दो किस्तें (10-10 हजार करोड़ रुपये) नहीं चुकाईं.
127 ट्रकों में भेजे दस्तावेज, जांच में खर्च हुए 55 करोड़
जब बाकी दो किस्तों की बात हुई तो सहारा ने कहा कि उसने 20 हजार करोड़ रुपये निवेशकों को खुद ही लौटा दिए हैं. फिर क्या था, सेबी ने कहा कि किसे, कब, कितने पैसे और कैसे भेजे, सारी जानकारी दो. सहारा ग्रुप अब मुसीबत में फंस गया था, लेकिन फिर सुब्रत रॉय ने करीब 127 ट्रकों में लगभग 32 हजार कार्टून्स में भरकर दस्तावेज सेबी के पास भेजे. सहारा को लगा था कि इतने सारे दस्तावेज चेक नहीं किए जाएंगे. वहीं सेबी ने इतने सारे दस्तावेजों को चेक करने के लिए एक अलग टीम लगा दी. करीब 55 करोड़ रुपये भी खर्च किए और पता चला कि सारे दस्तावेज फर्जी हैं.
सलाखों के पीछे पहुंच सुब्रत रॉय
ये साफ हो गया कि असल में पैसे किसी निवेशक को भेजे ही नहीं गए और सुब्रत राय पर शिकंजा कसने लगा. इसे मनी लॉन्ड्रिंग स्कैम की तरह देखा गया. इसके बाद सहारा के बैंक खाते फ्रीज किए जाने लगे और साथ ही उनकी संपत्तियां जब्त की जाने लगीं. 20 फरवरी 2014 को सुब्रत रॉय सलाखों के पीछे पहुंच गए. साल 2016 में वह पेरोल पर बाहर आ गए. 2022 तक सेबी ने 17,526 बॉन्डहोल्डर्स को करीब 138.07 करोड़ रुपये लौटाए हैं.