सहारा ग्रुप और सुब्रत रॉय सहारा की बढ़ीं मुश्किलें; बैंक, डीमैट खातों की होगी कुर्की
वैकल्पिक पूर्ण-परिवर्तनीय डिबेंचर (ओएफसीडी) जारी करने में सहारा समूह से जुड़े पांच लोगों के खिलाफ कुर्की की प्रक्रिया शुरू की जा रही है.
सहारा समूह (Sahara Group) के प्रमुख सुब्रत रॉय सहारा (Subrata Roy) की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. बाजार नियामक SEBI ने ओएफसीडी जारी करने में नियामकीय मानकों के उल्लंघन के मामले में सहारा समूह की एक कंपनी और समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय एवं अन्य अधिकारियों से 6.42 करोड़ रुपये की वसूली के लिए उनके बैंक एवं डीमैट खाते कुर्क करने का आदेश दिया है.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने आदेश में कहा कि वैकल्पिक पूर्ण-परिवर्तनीय डिबेंचर (ओएफसीडी) जारी करने में सहारा समूह से जुड़े पांच लोगों के खिलाफ कुर्की की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. उनसे जुर्माना और ब्याज समेत सभी मदों में कुल 6.42 करोड़ रुपये की वसूली होनी है.
खातों में जमा करने की छूट
कुर्की का आदेश सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन (अब सहारा कमोडिटी सर्विसेज कॉरपोरेशन), सुब्रत रॉय, अशोक रॉय चौधरी, रविशंकर दुबे और वंदना भार्गव के खिलाफ दिया गया है. सेबी ने अपने नोटिस में सभी बैंकों, डिपॉजिटरी और म्यूचुअल फंड इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे इनमें से किसी के भी डीमैट खातों से निकासी की मंजूरी न दें. हालांकि, इन लोगों को अपने खातों में जमा करने की छूट होगी.
लॉकर भी होंगे कुर्क
इसके अलावा सेबी ने सभी बैंकों को इन चूककर्ताओं के खातों के अलावा लॉकर को भी कुर्क करने को कहा है. सेबी ने गत जून में जारी अपने आदेश में सहारा समूह की फर्म और उसके चार प्रमुख अधिकारियों पर कुल 6 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. यह जुर्माना सहारा की तरफ से 2008-09 में ओएफसीडी जारी कर निवेशकों से पैसे जुटाने के मामले में लगाया गया था. सेबी ने कहा कि यह डिबेंचर उसके नियामकीय मानकों का उल्लंघन करते हुए जारी किया गया था.
सेबी के मुताबिक डिबेंचर जारी करने में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ था. इस मामले में कुछ दिनों पहले सेबी ने रिकवरी के लिए इन पैसों का भुगतान करने को कहा था लेकिन यह रकम तय समय नहीं चुकाई गई. यही वजह है कि अब सेबी ने कुर्की की इस कार्रवाई का आदेश दिया है.
सहारा हाउसिंग बॉन्ड घोटाला साल 2010 में सामने आया. घोटाले की रकम 24 हजार करोड़ रुपये थी. सहारा ग्रुप की दो कंपनियों SIRECL और SHICL के जरिए साल 2008 से ऑप्शनली फुली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OFCDs) की मदद से निवेशकों से करीब 24 हजार करोड़ रुपये उठाए गए. साल 2009 में जब सहारा ग्रुप की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने आईपीओ लाने का प्लान किया तो बाजार नियामक सेबी ने ड्राफ्ट प्रोसपेक्टस की जांच की और फंड रेजिंग में अनियमितताएं पाईं. सेबी को शिकायत भी मिली कि SIRECL और SHICL, OFCDs जारी कर रही हैं और गलत तरीके से फंड जुटा रही हैं. सेबी ने जांच करते हुए सहारा ग्रुप से सवाल किया कि फंड रेजिंग के लिए सेबी की इजाजत क्यों नहीं ली गई. इस पर सहारा ने दावा किया कि कथित बॉन्ड हाइब्रिड प्रॉडक्ट हैं और सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं. मामला थमा नहीं और सेबी ने दोनों कंपनियों को बैन कर दिया और निवेशकों के पैसे 15 फीसदी रिटर्न के साथ वापस देने को कहा. इसके बाद मामला कोर्ट तक जा पहुंचा.
Edited by Ritika Singh