कचरे को बेचकर बच्चों की फीस भरने वाले टीचर से मिलिए
इस बात से किसी को इनकार नहीं होगा कि हमारे देश में हजारों समस्याएं हैं, लेकिन ये बात भी सच है कि उन समस्याओं का समाधान भी है। अगर हम थोड़ी सी भी मेहनत करें और पूरी ईमानदारी से कोशिश करें तो किसी भी मुश्किल को आसान बनाया जा सकता है। सिक्किम में एक स्कूल है जहां पढ़ाने वाले टीचर लोमस धुंगेल कचरे से पैसे बना रहे हैं और उन पैसों से गरीब बच्चों की फीस भरी जा रही है।
34 वर्षीय लोमस सिक्किम के माखा गांव में सरकारी उच्चतर माध्यमिक स्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाते हैं। उन्होंने 'हरियो माखा-सिक्किम अगेंस्ट पल्यूशन' नाम से एक योजना की शुरुआत की है। 2015 में शुरू हुए इस प्रॉजेक्ट के तहत उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे कई तरह से कचरे को एकत्रित कर उसे रिसाइकल करवाते हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए लोमस कहते हैं, 'मैं यहां से 15 किलोमीटर दूर गांव में पैदा हुआ और वहीं पला बढ़ा। लेकिन मैंने कभी वहां प्रदूषण नहीं देखा। लेकिन जब मैं शहर गया तो वहां प्रदूषण ही प्रदूषण नजर आता है।'
2001 में लोमस गंगटोक में थे जब प्रदेश में डिस्पोजेबल पॉलीथीन बैग्स पर पाबंदी लगाई गई। इसके बाद उन्होंने प्लास्टिक के बारे में अध्ययन करना शुरू किया। 2013 में उन्होंने कचरे को रिसाइकिल करने के बारे में जानकारी जुटाई और अपने आसपास से प्लास्टिक कचरे को उठाकर नजदीकी कबाड़ी को बेचना शुरू किया। लेकिन इससे उन्हें बड़ी सफलता नहीं मिली। उन्होंने देखा कि पर्यटक यहां घूमने आते हैं और चिप्स और अन्य सामानों के पैकेट्स छोड़कर चले जाते हैं। कूड़ा बीनने वाले भी इन पैकेट्स को नहीं उठाते हैं क्योंकि इनसे उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता।
इन पॉलीथीन को बाद में जला दिया जाता है जिससे जहरीला धुआं निकलता है। 2015 में लोमस ने इन पैकेट्स को इकट्ठा करना शुरू किया और उन्हें टेप से जोड़कर किताबों के ऊपर चढ़ाने के लिए कवर के तौर पर इस्तेमाल किया। इस आइडिया को उन्होंने बच्चों और स्कूल प्रशासन के सामने रखा जिसे काफी सराहा गया। अब तक स्कूली बच्चों ने 50,000 से भी ज्यादा पैकेट्स इकट्ठा किए हैं और उन्हें किताबों के लिए कवर बनाकर पास के गांवों में बेचा। इनसे मिले पैसों से उस बच्चे की मदद हुई जो पैसों के आभाव में स्कूल नहीं जा पा रहा था।
अब हर तीन महीने में लोमस और उनके बच्चों का ग्रुप आसपास के घरों में जाता है और वहां टिन के गिलास, प्लास्टिक, बोतल जैसी बेकार सामग्रियों को इकट्ठा करता है और उन्हें कबाड़ी के पास बेत दिया जाता है। ऐसी पहलों से न केवल पर्यावरण की सुरक्षा की जा रही है बल्कि एक सकारात्मक पहल के रूप में गरीब बच्चों की मदद भी हो रही है। लोमस की लगन और उनकी प्रतिबद्धता इस बात का सबूत है कि हमारे पास करने के लिए काफी कुछ है, लेकिन हमारे भीतर समाज को बदलने का जज्बा होना जरूरी है।
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