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SheSparks 2023: वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़े?

देश की कुल आबादी का 48 फीसदी महिलाएं हैं और वर्कफोर्स में उनका कुल योगदान 20 फीसदी भी नहीं. क्‍या यह चिंताजनक स्थिति नहीं है ?

SheSparks 2023: वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़े?

Friday March 03, 2023 , 5 min Read

यह जेंडर बराबरी का दौर है. यह बराबरी भले अभी हासिल न हो पाई हो, लेकिन यह सवाल तो है कि स्त्रियों के साथ सदियों से होता रहे सिस्‍टमैटिक भेदभाव को कैसे खत्‍म किया जाए और उन्‍हें सामाजिक और आर्थिक स्‍तर पर बराबरी की जगह दी जाए.


स्‍त्री-पुरुष बराबरी हासिल करने की दिशा में आज सबसे बड़ा सवाल और चुनौती ये है कि वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्‍या कैसे बढ़े. यही केंद्रीय सवाल था SheSparks के पहले दिन एक महत्‍वपूर्ण सेशन का. इस सवाल पर चर्चा करने के लिए पैनल में मौजूद थीं अकमाई टेक्‍नोलॉजीज (Akamai Technologies) की ऑपरेशंस एंड इनोवेशन डायरेक्‍टर नेहा जैन और उसी समूह की टैलेंट डेवलपमेंट हेड चारुस्मिता राव. पैनल का संचालन कर रही थीं योर स्‍टोरी की ब्रांड कम्‍युनिकेशन डायरेक्‍टर इप्सिता बासु.  


इप्सिता ने इस बातचीत की शुरुआत एक चिंतित करने वाले आंकड़े के साथ ही. वर्ल्‍ड बैंक का डेटा कहता है कि महिलाएं भारत की कुल आबादी का 48 फीसदी हैं, फिर भी वर्कफोर्स में उनकी सीधे हिस्‍सेदारी महज 20 फीसदी है. हर ओर जेंडर बराबरी की बातें तो होती हैं, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्कफोर्स में इस जेंडर गैप को भरने में हम काफी हद तक नाकाम रहे हैं.

इस जैंडर गैप को भरने के लिए इस दिशा में कौन से जरूरी कदम उठाने की जरूरत है.   


बातचीत की शुरुआत ने अपने अनुभव साझा करते हुए की. उन्‍होंने बताया कि इस फील्‍ड में काम करते हुए उन्‍हें 20 साल हो गए हैं और इन 20 सालों की यात्रा को देखें तो वह सारे कारण अब दिखाई देते हैं और समझ में आते हैं, जिन्‍होंने मेरी सफलता में भूमिका अदा की. उन्‍होंने विस्‍तार से अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे शुरुआत में उन्‍हें टेक क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं था. आत्‍मविश्‍वास की भी कमी थी और खतरे उठाने का साहस नहीं था.


जिस चीज ने उनकी सफलता में बुनियादी भूमिका निभाई, वह थी सही लीडरशिप, अवसर, पॉजिटिव माहौल और इंपावरमेंट और रिस्‍क लेने, मौकों को भुनाने की क्षमता. 


नेहा ने कहा कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं लीडरशिप भूमिका निभाऊंगी. लेकिन मुझे ये मौका मिला. मुझ पर भरोसा किया गया और मैंने भी जोखिम उठाने की हिम्‍मत दिखाई. आज मुझे यह कहने में काफी गर्व है कि पिछले 19 सालों में मैंने अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं और मुझे हर तरह का सपोर्ट भी मिला. 


नेहा की पूरी बातचीत का सार ये था-


1- कंपनी ने इंपावर किया, इनेबल किया, मौका दिया.

2- नेहा उन मौकों को भुनाने और अपने स्‍तर पर जोखिम उठाने का साहस दिखाया. 


दरअसल जब हम वकफोर्स में और लीडरशिप भूमिकाओं में महिलाओं की कमतर संख्‍या की बात करते हैं तो यह बात करना भूल जाते हैं कि कैसे कंपनी का माहौल और लीडरशिप की इसमें बड़ी भूमिका होती है कि महिलाएं दफ्तर में पुरुष सहकर्मियों के बराबर सफल मुकाम पर नहीं पहुंच पातीं.  


यही सवाल चारुस्मिता राव से भी था, जिसके जवाब में उन्‍होंने अपनी बेटी के साथ बातचीत का एक सुंदर उदाहरण दिया. उन्‍होंने कहा कि एक बार मैं अपनी पांच साल की बेटी से बात कर रही थी. मैंने उससे पूछा कि तुम बड़ी होकर क्‍या बनना चाहती हो तो जवाब में उसने कहा, “मैं एस्‍ट्रोऑक्‍टर बनना चाहती हूं.” मैंने हैरान होकर पूछा, “ये क्‍या चीज है” तो उसने कहा, “मतलब कि एक ऐसी ऐस्‍ट्रोनॉट जो आर्टिस्‍ट भी है, लेकिन असल में वो एक डॉक्‍टर है.”


चारु ने आगे कहा कि यही स्थिति कमोबेश हम महिलाओं की भी है. हमें एक साथ कई सारी भूमिकाएं निभानी होती हैं, मल्‍टीटास्किंग हमें करनी होती है और इन सबके बीच सफलता इस बात से तय होती है कि आपके काम का इनवायरमेंट कितना इंक्‍लूसिव और फ्लेक्जिबल है.


चारु ने कहा कि यह बातें पेपर पर, सेमिनारों और शब्‍दों में तो बोली जाती हैं, लेकिन वास्‍तविक सवाल यह है कि यह जमीनी हकीकत में कितना बदल पाता है. आपको इस बात को स्‍वीकार करना होगा कि महिला कर्मियों की बहुत सारी जरूरतें पुरुषों से अलग होती हैं. केयरगिविंग आज भी मुख्‍य रूप से महिलाओं का ही कार्यक्षेत्र है. ऐसे में उनकी खास जरूरतों को देखते हुए फ्लेक्जिबिलिटी बहुत जरूरी है.


नेहा कहती हैं कि अगर एक महिला के सामने ऐसी चयन की स्थिति आ जाए कि या तो वो अपने बच्‍चे की देखभाल कर ले या ऑफिस जाए तो जाहिर है कि वो बच्‍चे के साथ रहना ही चुनेगी. क्‍या हम महिला को ऐसा माहौल दे सकते हैं कि उसे इन दोनों चीजों के बीच चुनाव न करना पड़े.


इसी संदर्भ में इप्सिता ने योर स्‍टोरी के साथ काम करने का अनुभव बताते हुए कहा कि यहां काम और जिम्‍मेदारी में कोई कमी नहीं आई है. हमें बहुत सारे टारगेट पूरे करने होते हैं, लेकिन इस ग्रुप के साथ काम करने की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां फ्लेक्जिबिलिटी बहुत है.  

कुल मिलाकर बातचीत का सार ये रहा कि जेंडर बराबरी एक भावनात्‍मक मुद्दा न होकर ठोस मैनेजमेंट का सवाल है. केयरगिविंग की चुनौतियों को देखते हुए महिलाओं को फ्लेक्जिबल ढंग से काम करने की सुविधा दी जानी चाहिए. महिलाएं ज्‍यादा संख्‍या में तभी कार्यक्षेत्र में आ सकती हैं और नेतृत्‍व की भूमिका तक पहुंच सकती हैं, जब उन्‍हें अलग से इंपावर किया जाए, मौके दिए जाएं, उन पर भरोसा किया जाए और इस सबके लिए विशेष रूप से पॉलिसीज बनाई जाएं.


Edited by Manisha Pandey