पूर्व सॉफ्टवेयर पेशेवर से जैविक किसान बनकर किया 450 किस्म के चावल के बीजों का संरक्षण
बापाराओ किसानों को रसायनिक उपायों की जगह जैविक तरीकों से खेती करने के लिए प्रेरित करने के साथ ही उन्हे प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
![बापाराओ](https://images.yourstory.com/cs/12/511c01b01fd011ea8217c582b4ed63bb/Imagehzqy-1582026669131-1582105656263.png?fm=png&auto=format)
बापाराओ (चित्र: effortforgood)
भारत में कृषि आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। देश में सत्तर प्रतिशत ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र के महत्व के बावजूद इस क्षेत्र में जमीन के कार्यान्वयन से लेकर फसलों के उत्पादन प्रबंधन तक में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए नए समाधानों की आवश्यकता होती है। हैदराबाद से एथोटा में एक पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर बापराव अठोता ने एक नया तरीका पेश किया है, जिसमें पारंपरिक खेती को बेहतर उत्पादकता के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों या रासायनिक मदद के बिना आगे बढ़ने पर मदद करता है।
इनाडु की रिपोर्ट के अनुसार, इस सब के साथ ही वह अठोटा में किसान को स्वदेशी बीज रखने के लिए बीज बैंक विकसित करने में मदद कर रहे हैं। अब तक, बापाराओ ने चावल के बीज की 450 किस्मों को संरक्षित किया है, जिसमें कुलकर, काले चावल के साथ कई और वैराइटी शामिल हैं।
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(चित्र: effortforgood)
अपने शोध के दौरान बापराव ने यह महसूस किया कि फसलें उनके प्राकृतिक आवास में बेहतर रूप से उगाई जाती हैं और विकास के लिए बहुत अधिक रासायनिक मदद की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा, केंचुओं की मदद से उनकी फसल न केवल बेहतर हुई, बल्कि पानी की भी बढ़त हुई है। रासायनिक खेती के उत्पादन के समान परिमाण के लिए जैविक खेती के माध्यम से एक समान उपज होने में कुछ समय लगा।
वह खाने की आदतों के महत्व की भी वकालत करते हैं और जोर देते हैं कि लोग आयुर्वेद में वर्णित आवश्यकताओं के अनुसार खाना खाएं। बापाराव की प्राथमिकता लोगों को स्वस्थ खाने और बाजरा और अन्य पारंपरिक खाद्य पदार्थों के लाभों के बारे में शिक्षित करना है। उनका यह भी मानना है कि ये बीज उच्च प्रोटीन, स्टार्च, और तेल भंडार का एक समृद्ध स्रोत हैं जो विकास के शुरुआती चरणों में पौधों का समर्थन करते हैं।
अब विभिन्न मंडलों द्वारा पारंपरिक प्रथाओं और इसके कार्यान्वयन को समझने के लिए राज्य भर से लोग एथोटा जाते हैं। वह कहते हैं,
"स्वास्थ्य ही धन है और भोजन ही एकमात्र सच्ची औषधि है।"