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संघर्षशील रिया के स्टार्टअप 'इकोवेयर' का सालाना टर्नओवर 25 करोड़ तक पहुंचा

संघर्षशील रिया के स्टार्टअप 'इकोवेयर' का सालाना टर्नओवर 25 करोड़ तक पहुंचा

Tuesday February 11, 2020 , 4 min Read

कैंसर से मां के निधन, बाद में पीएम मोदी की सिंगल यूज प्लास्टिक विरोधी मुहिम ने रिया को स्टार्टअप 'इकोवेयर' की सफलता के उस मोकाम पर पहुंचा दिया, जहां आज उनका सालाना टर्नओवर 25 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। उन्हे तसल्ली है कि बिजनस के साथ वह पर्यावरण के लिए भी कुछ कर पा रही हैं। 


रिया मजूमदार सिंघल

रिया मजूमदार सिंघल (फोटो क्रेडिट: Bhaskar)



ब्रिटेन में एक दशक का समय बिताने के बाद दिल्ली में सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम के साथ ही विगत लगभग दस वर्षों से 'इकोवेयर' स्टार्टअप चला रहीं रिया मजूमदार सिंघल एक फार्मा ग्रेजुएट के रूप में प्लास्टिक से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़न वाले खराब असर से अच्छी तरह वाकिफ भी हैं।


इकोवेयर के उत्पाद 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल होते हैं। उनका स्टार्टअप कुछ ही समय में काफी सफल हो गया। अब तो कंपनी का सालाना टर्नओवर 25 करोड़ रुपये से भी अधिक का हो गया है। वह प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर ही स्ट्रा, प्लेट, कप, कटोरे, ट्रे के कम्पोस्टेबल कटलरी का बिजनस चला रही हैं।


वह बताती हैं कि जब विदेश में थीं, वहां के लोगों को प्लास्टिक के बदले लकड़ी के पल्प से बनी कटलरी इस्तेमाल करते देखा तो खुद के इसी तरह का बिजनस भारत में करने का उनको आइडिया मिल गया। भारत में उन दिनो प्लास्टिक का इफरात था। उन्होंने भारत लौटकर प्लास्टिक के ईको-फ्रेंडली विकल्प के रूप में ईको-फ्रेंडली टेबलवेयर के निर्माण के लिए इसका स्टार्टअप शुरू किया। इसके प्रोडक्शन में उन्होंने सबसे पहले खेतों से निकलने वाले कचरे का इस्तेमाल किया।


उन दिनो रिया दिल्ली में सदर बाजार से चांदनी चौक तक लोगों को प्लास्टिक के नुकसान से आगाह करने के साथ ही कॉम्पोस्टेबल के लिए जागरूक किया करती थीं। यद्यपि लोग उस वक़्त उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे। उसके बाद वह ग्रासरूट लेवल से जब यह काम करने लगीं, लोगों को बात समझ में आने लगी।


रिया मुम्बई में पैदा हुईं और दुबई में पली-बढ़ीं। आगे चलकर उन्हें पढ़ाई के लिए लंदन के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया, जहां उन्होंने ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी से फार्माकोलॉजी ऑनर्स किया। शादी के बाद उन्हें पहली बार 29 साल की उम्र में भारत आने का मौका मिला। यहां जगह-जगह प्लास्टिक का कचरा देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। यही नहीं, अपनी मां को बहुत ही कम उम्र में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ते देखकर उनका नजरिया चीजों के प्रति बहुत बदल गया। फार्माकोलॉजी के अध्ययन के दौरान उन्हे पता चला कि कैंसर की बीमारी की सबसे बड़ी वजह तो प्लास्टिक ही है।


रिया बताती हैं कि उन्हीं दिनों में जब वह गुड़गांव के एक बड़े स्टोर पर जाकर अपने प्रोडक्ट सेल करने पर बात की तो स्टोर प्रबंधन ने ऐसा करने से मना कर दिया। आगे एक दिन ऐसा आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्लास्टिक मुक्त भारत की देश वासियों से अपील की, उसी स्टोर के मालिक ने उनसे फोन पर मेरे इकोवेयर प्रॉडक्ट की स्वयं डिमांड की।


रिया बताती हैं कि उन्होंने अपने प्रॉडक्ट की मार्केटिंग की खुद ही चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी संभाली। आज उनके प्रॉडक्ट के बड़े ग्राहकों में अमेरिकन एम्बेसी स्कूल, हल्दीराम की कंपनी, ओबेरॉय होटल, चायोस आदि जुड़ चुके हैं।


कॉमनवेल्थ गेम्स के समय उन्हें अपना प्रॉडक्ट्स सप्लाई करने का मौका मिला। यह स्टार्टअप चलाने के साथ ही वह लगातार लोगों को सिंगल प्लास्टिक यूज से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक भी करती रहती हैं। उन्हें इस बात बड़ी तसल्ली मिलती है कि वह अपने बिजनस के साथ पर्यावरण के लिए भी कुछ कर पा रही हैं।


इसी के लिए उनको हाल ही में राष्ट्रपति ने नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से भी उन्हें वुमन ऑफ एक्सिलेंस अवॉर्ड मिल चुका है।