चार राज्यों में बिना मिट्टी के खेती कर रहा स्टार्टअप बार्टन ब्रीज
आधुनिक खेती में नए नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं। आईएमए की पढ़ाई कर गुरुग्राम (हरियाणा) के शिवेंद्र सिंह इस समय चार राज्यों में बिना मिट्टी के 28 तरह ही ऑर्गेनिक फसलें उगा रहे हैं। इस खेती की खास विशेषता है कि विपरीत जलवायु में भी फल-फूल रही है। बिना मिट्टी के पौधे उगाने की इस तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं।
अभी तक हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का कई पश्चिमी देशों में फसल उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। अब राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम (हरियाणा) में शिवेंद्र सिंह का स्टार्टअप बार्टन ब्रीज सिर्फ पानी की मदद से बिना मिट्टी के पौधे उगा रहा है। कंपनी ग्राहकों को साल भर बिना रसायन और बिना पेस्टिसाइड वाली सब्जियां उपलब्ध कराती है। इन सब्जियों पर मौसम में होने वाले बदलावों का असर नहीं होता। वर्तमान में बार्टन ब्रीज स्टार्टअप 28 तरह ही फसलों पूरे भारत में उगा रहा है। इसमें खाने लायक फूल, 8 तरह के बेल पेपर, पत्तेदार सब्जी लैट्टूस, कई तरह के टमाटर और हरी सब्जियां शामिल हैं।
गौरतलब है कि इस समय राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में, जहाँ चारे के उत्पादन के लिए विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियाँ हैं, वहां यह तकनीक वरदान सिद्ध हो रही है। वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर में मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे वाली फसलें उगाने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहाँ के वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के नियंत्रित वातावरण में इस तकनीक से सेवण घास की पौध तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। इस हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से ही पंजाब में आलू उगाया जा रहा है।
सामान्यतः पेड़-पौधे जमीन पर ही उगाए जाते हैं। ऐसा लगता है कि पेड़-पौधे उगाने और उनके बड़े होने के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूर्य का प्रकाश जरूरी होता है लेकिन सच यह है कि पौधे या फसल उत्पादन के लिये सिर्फ तीन चीजों - पानी, पोषक तत्व और सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इस तरह यदि बिना मिट्टी के ही पेड़-पौधों को किसी और तरीके से पोषक तत्व उपलब्ध करा दें तो बिना मिट्टी के भी पानी और सूरज के प्रकाश की उपस्थिति में पेड़-पौधे उगाए जा सकते हैं। दरअसल, बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण जब फसल और पौधों के लिये जमीन की कमी होती जा रही हो तो बिना मिट्टी के पौधे उगाने वाली यह तकनीक काफी उपयोगी हो रही है।
फ्लैट में या घर में भी बिना मिट्टी के पौधे और सब्जियाँ आदि उगाई जा रही हैं हैं। बिना मिट्टी के पौधे उगाने की इस तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस ताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है। गोवा में चारागाह के लिये भूमि की कमी है, इसलिये वहाँ पशुओं के लिये चारे की बड़ी समस्या होती है। किसानों की इस समस्या को देखते हुए भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत गोवा डेयरी की ओर से इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च के गोवा परिसर में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा उत्पादन की इकाई की स्थापना की गई है। ऐसी ही दस और इकाइयाँ गोवा की विभिन्न डेरी-कोऑपरेटिव सोसाइटियों में लगाई गई हैं। प्रत्येक इकाई की प्रतिदिन 600 किलोग्राम हरा चारा उत्पादन की क्षमता है।
शिवेंद्र सिंह ने आईआईएम अहमदाबाद से ग्रेजुएशन करने के बाद अपने स्टार्टअप की शुरुआत की थी। 2016 में सबसे पहले उन्होंने दुबई में इस काम को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया, जिसमें बाद में एग्रो टेक्नोलॉजिस्ट रत्नाकर राय भी बतौर कॉ-फाउंडर शामिल हो गए। उसके बाद उन्होंने अगले साल 2017 से भारत में यह काम शुरु कर दिया। इसके बाद सालभर के भीतर ही कंपनी ने हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में छह ऑटोमेटेड फार्म लगा दिए। आज उनकी कंपनी सीधे ग्राहकों को अपनी सब्जियां बेच रही है।
इस तकनीक से घर में ही खेती करने के अपने कई अलग फायदे हैं। मसलन, इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इंच ऊँचाई वाले पौधे के लिये प्रति वर्ष एक रुपए से भी कम खर्च आता है। इस तकनीक में पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खनिजों के घोल की कुछ बूँदें ही महीने में केवल एक-दो बार डालने की जरूरत होती है। परंपरागत बागवानी की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बागवानी करने पर पानी का 20 प्रतिशत भाग ही पर्याप्त होता है। चूँकि इस विधि से पैदा किए गए पौधों और फसलों का मिट्टी और जमीन से कोई संबंध नहीं होता, इसलिये इनमें बीमारियाँ कम होती हैं और इसीलिये इनके उत्पादन में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है।
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