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कोवर्किंग स्टार्टअप शुरू करने के लिए बिहार के इस युवा ने क्यों छोड़ दी सरकारी नौकरी

ओप्लस कोवर्क, एक पटना आधारित कोवर्किंग स्टार्टअप है। यह अधिक लचीली, उद्यमी और सहयोगी कार्यशैली के बढ़ते चलन का लाभ उठा रहा है और इसका मकसद भारत में एक कोवर्किंग कल्चर विकसित करना है।

कोवर्किंग स्टार्टअप शुरू करने के लिए बिहार के इस युवा ने क्यों छोड़ दी सरकारी नौकरी

Sunday May 16, 2021 , 6 min Read

बिहार के रहने वाले प्रीतेश आनंद को दुनिया भर के निवेशकों, एक्सलेटर्स और इन्क्यूबेटर्स के साथ काम करने का मौका मिला। हालांकि वह सिर्फ इतने से ही खुश नहीं थे। वह अपने गृह राज्य बिहार को कुछ वापस देना चाहते थे और इसी सोच ने उन्हें एक स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रेरित किया।


2019 में, उन्होंने ओप्लस कोवर्क (Oplus Cowork) नाम से पटना-आधारित कोवर्किंग स्पेस शुरू किया। यह स्टार्टअप, छोटे व्यवसायों, फ्रीलांसरों और कंपनियों के साथ काम करती है और उन्हें ऑफिस के लिए जगह, नेटवर्किंग और सहयोग के अवसर प्रदान करती है और वह भी कम लागत में।


31 वर्षीय प्रीतेश कहते हैं, "हमारा लक्ष्य एक राष्ट्रीय कोवर्किंग चेन बनाने और हमारे स्थानीय समुदाय की मदद करने की है। वह कहते हैं कि ओप्लस कोवर्क "सेवा के रूप में स्थान" के साथ ही एक अवसर मुहैया कराती है, जो अधिक लचीले, उद्यमशील और सहयोगी कार्य शैलियों के बढ़ते चलन का लाभ उठा रही है।

प्रीतेश आनंद

प्रीतेश आनंद

वह कहते हैं, “ओप्लस एक ऐसा वर्कस्पेस है, जिसे इनोवेशन, शिक्षा और विकास को शुरू करने, प्रबंधन करने और उसका निर्माण करने के इरादे से शुरू किया गया है। हम उद्यमशीलता, व्यवसाय और रचनात्मकता के बारे में बहुत भावुक हैं। हम स्टार्टअप्स और कॉरपोरेट्स के बीच की खाई को पाटते हैं और उन्हें एक साथ लाने के लिए, एक दूसरे के साथ जुड़ने, सीखने, और बढ़ने के तरीकों की स्थापना करते हैं।"


ओप्लस के पास 10 सदस्यों की एक टीम है, जिसमें संस्थापक सदस्य अजीत कुमार और संरक्षक अखिलेश कश्यप और रंगनाथ कृष्ण चंद्र शामिल हैं।

शुरुआत

यह सब 2014 में शुरू हुआ। अधिकतर बिहारी युवाओं की तरह, प्रीतेश भी बिहार से निकलकर उच्च अध्ययन के लिए दिल्ली आ गए और पढ़ाई के बाद एक नौकरी पाने की योजना पर जुट गए। उन्होंने कहा, "मुझे एक सरकारी कंपनी में नौकरी भी मिल गई।" हालांकि उन्होंने बताया कि उन्हें इस नौकरी में सुकून नहीं मिला।


एक बच्चे के रूप में, वह हर दिन को एक नए दिन के रूप में देखते थे। यह कुछ ऐसा था, जिसका वह उम्र बढ़ने के साथ तलाश कर रहा था। इसमें एक 9 से 5 बजे की नियमित नौकरी से उन्हें सुकून नहीं मिला। उन्होंने महसूस किया कि उनके दिल में हमेशा से "उद्यमशीलता और बिहार के इकोसिस्टम के लिए कुछ करने की इच्छा थी।"

 

प्रीतेश ने जल्द ही अपनी नौकरी छोड़ दी और छोटे और मध्यम व्यवसायों के साथ एक फ्रीलांसर के रूप में काम करना शुरू कर दिया ताकि उन्हें अपना कारोबार बढ़ाने में मदद मिल सके।


बाद में, वह बिहार में अपने कारोबार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पटना चले गए और 2014 में उन्होंने SPLAN कॉर्पोरेट सॉल्यूशंस LLP की शुरुआत की। यह एक स्टार्टअप था, जो व्यवसायों को डिजिटल सेवाओं के साथ शुरू होने, बढ़ने और विस्तार करने में मदद करती थी। यह स्टार्टअप अभी भी चालू है और सह-संस्थापकों के साथ उनकी टीम इसे चला रही है।


लेकिन वह अभी भी संतुष्ट नहीं थे और कई अन्य व्यवसायों में भी अपने हाथ आजमा रहे थे।


प्रीतेश के जीवन में एक अहम पड़ाव 2018 में आया, जब उन्होंने महसूस किया कि छोटे शहरों को भी मेट्रो शहरों की तरह कोवर्किंग स्पेस, कम्युनिटी बिल्डिंग और एक स्टार्टअप इकोसिस्टम की जरूरत है। इसी एहसास के साथ उन्होंने अगस्त 2019 में पटना में ओप्लस कोवर्क को शुरू किया। उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों की मदद से 20 लाख रुपये के साथ इस स्टार्टअप को शुरू किया और अब तक इसमें कुल 75 लाख रुपये का निवेश कर चुके हैं।


ग्रोथ और भविष्य की योजना

पटना के बेली रोड पर स्थित यह कोवर्किंग स्पेस 5,000 वर्ग फुट में फैला है। यह क्लाइंट को कई तरह के पैकेज ऑफर करता है, जो एक महीने में 3,000 रुपये से शुरू होकर लाखों (कॉर्पोरेट साझेदारी के आधार पर) तक जाते हैं। इसके पास लगभग 100 ग्राहक हैं, जिनमें व्यक्तियों से लेकर कंपनियां तक शामिल है। कंपनी के क्लाइंट में बजाज इलेक्ट्रिकल्स, फ्लिपकार्ट, बाटला, जस और आर्ट, लीफाइडेकर और एएएचएल (ओएमईडी) जैसे बड़े नाम शामिल हैं।


वह कहते हैं, “भारत इन 'लोकल फॉर वोकल' नीति पर फोकस कर रहा है। साथ ही कोरोना महामारी ने हमारे वर्कफोर्स के एक बड़े हिस्से को वापस टीयर II और टीयर III शहरों में भेज दिया है। इसलिए, इन शहरों में वर्कस्पेस की मांग अधिक है।"

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प्रीतेश संस्थापक के साथ ही इस स्टार्टअप में कई और भूमिकाओं को भी निभाते हैं। इसमें स्टार्टअप सलाहकार से लेकर तकनीकी विशेषज्ञ सहित बहुत कुछ शामिल हैं। वे कहते हैं कि उनका विचार एक इनक्यूबेशन के साथ वर्किंग स्पेस शुरू करना है, जिसका फोकस देश के छोटे शहरों पर हो।


वह कहते हैं कि लॉकडाउन अवधि को छोड़ दें तो, पिछले साल ओप्लस की सारी जगहें फुल रहीं और यह हर महीने 3-3.5 लाख रुपये का राजस्व कमा रहा है। स्टार्टअप अब पटना में अपनी जगह का विस्तार कर रहा है ताकि बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। कंपनी का लक्ष्य वित्त वर्ष 2022 में दोहरे अंकों में ग्रोथ हासिल करने की है।


आने वाले समय में ओप्लस कोवर्क देश के अन्य छोटे शहरों के विस्तार पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहती है। यह अपने विकास के अगले चरण में रांची, लखनऊ, वाराणसी और इंदौर जैसे टियर II और टीयर III के शहरों पर फोकस करना चाहती है।

मार्केट और प्रतिस्पर्धा

एशिया पैसिफिक देशों में भारत लचीले कार्यक्षेत्रों के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। इससे आगे सिर्फ चीन है। ओआरएफ ने जून 2020 की एक रिपोर्ट में कोवर्किंग मार्केट के संभावित आकार के 15.5 मिलियन का होने का अनुमान लगाया। इसमें जिसमें 1.54 मिलियन फ्रीलांसर, 0.1 मिलियन स्टार्टअप, 1.54 मिलियन एसएमई और 10.3 मिलियन उद्यम शामिल हैं।


इस सेक्टर की अहम कंपनियों में ऑफिज, इनोव8, कोवर्ली, स्मार्टवर्क्स, टी-हब यसवर्क्स, एबीएल वर्कस्पेसेज, इनक्यूस्पेज, वीवर्क, और 91स्प्रिंगबोर्ड सहित कई कंपनियां है, जो इस तेजी से बढ़ते मार्केट की अगुआई करने की दिशा में काम कर रही हैं। कोरोना महामारी ने कारोबार पर जरूर असर डाला है, लेकिन उन्हें भविष्य में कोवर्किंग स्पेस के ग्रोथ पर पूरा भरोसा है।


प्रीतेश ने 2016 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में पटना के एक 'ग्लोबल शेपर्स कम्युनिटी’का प्रतिनिधित्व किया था। वह कहते हैं ओप्लस एक ऐसा कोवर्किंग स्पेस है, जो लोगों को न केवल काम करने के लिए जगह देती है, बल्कि सहयोग और नेटवर्किंग के अवसरों को भी मुहैया कराती है।


प्रीतेश कहते हैं, "इसके अलावा, हम महानगरों के बजाय बिहार में एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहे हैं। हमारा फोकस समुदाय, स्थानीय और उनके परे वाली चीजों पर है।" उन्होंने बताया "हमारा उद्देश्य एक ऐसी जगह बनाना है जहां लोग जीवन बनाने के लिए काम करते हैं, न कि केवल एक जीवन जीने के लिए।"