सैनफे ने लांच किया दो साल तक 120 बार यूज होने वाला सेनेटरी नैपकिन
"आईआईटी छात्र सेनेटरी नैपकिन उत्पादन में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। आईआईटी दिल्ली के छात्रों के 'स्टैंड एंड पी' डिवाइस, आईआईटी बॉम्बे-गोवा की दो छात्राओं के 'क्लींस राइट' डिवाइस के बाद, अब आईआईटी दिल्ली से ही बीटेक अर्चित और हैरी के स्टार्टअप 'सैनफे' ने 120 बार इस्तेमाल होने वाला सेनेटरी पैड लॉन्च किया है।
आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसरों के संरक्षण में 'सैनफे' स्टार्टअप ने 120 बार रि-यूजेबल सेनेटरी नैपकिन लॉन्च किया है। केले के रेशे से ईज़ाद इस दो नैपकिन की कीमत 199 रुपए रखी गई है। इसी तरह दो साल पहले जनवरी 2017 में अहमदाबाद (गुजरात) की कंपनी 'साथी' ने केले के फाइबर वाले ही शतप्रतिशत बायोडिग्रेडेबल नैपकिन बनाने की शुरुआत की थी। आमतौर पर बाजार में बिकने वाले सैनेटरी पैड में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। ज्यादा देर तक इस पैड का इस्तेमाल कई बार बीमारियों का कारण बन रहा है। साथ ही इसे नष्ट करना भी एक बड़ी समस्या है। केले के रेशे में अवशोषण क्षमता प्राकृतिक रूप से बहुत अधिक होती है।
हमारे देश में 1.20 लाख एकड़ जमीन पर केले की खेती होती है, इसलिए इस नैपकिन के उत्पादन में केले के थम की कोई कमी नहीं। जब गुजरात में 'साथी पैड' का उत्पादन शुरू किया गया था, उस वक़्त आरोग्य फाउंडेशन की एकल आरोग्य योजना के स्टेट कॉआर्डिनेटर डॉ मृत्युजंय ने बताया था कि उस पैड का ग्रामीण इलाकों में मुफ्त वितरण किया जा रहा है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से बीटेक कर चुके स्टार्टअप 'सैनफे' (Sanfe - Sanitation for female) के संस्थापक अर्चित अग्रवाल और हैरी सेहरावत के मुताबिक, उनकी टीम द्वारा केले के रेशे से ही तैयार इस सेनेटरी नैपकिन का पेटेंट कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अधिकांश सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में कई दशक लग जाते हैं।
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सैनिटरी नैपकिन्स को कूड़ेदान, खुले स्थान या पानी में फेंक देना अथवा जमीन में दबा देना पर्यावरण के लिए खतरानाक होता है। यहां तक कि उसे जलाने पर डाइऑक्सिन के रूप में कार्सिनोजेनिक धुएं का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। इस कचरे को लैंडफिल में डालने से केवल कचरे का बोझ बढ़ता है। उनके स्टार्टअप का ये अनोखा सैनिटरी नैपकिन नैपकिन दो साल तक 120 बार इस्तेमाल किया जा सकता है। हैरी और अर्चित ने अपने इस स्टार्टअप की शुरुआत उस वक़्त ही कर दी थी, जब वे आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि हैरी और अर्चित से पहले आईआईटी दिल्ली के ही छात्र 'स्टैंड एंड पी' नाम का डिवाइस बना चुके हैं। यह एक ऐसा डिवाइस है, जिसके जरिए महिलाएं गंदे पड़े पब्लिक वॉशरूम्स में भी खड़े होकर टॉयलट कर सकती हैं। वन टाइम यूज वाले इस डिवाइस का दाम सिर्फ दस रुपए है।
वन टाइम यूज इस डिवाइस को इस्तेमाल के बाद सामान्य कचरे की तरह फेंका जा सकता है। यह भी बायोडिग्रेडेबल मेटेरियल से बना है। इस डिवाइस को पीरियड के दौरान भी यूज़ किया जा सकता है। इसी तरह आईआईटी बॉम्बे की इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की छात्रा ऐश्वर्या अग्रवाल और आईआईटी गोवा की छात्रा देवयानी मलाडकर हाल ही में क्लींस राइट (Cleanse Right) नाम से बायोमेडिकल वेस्ट घटाने में मददगार एक ऐसे डिवाइस का आविष्कार कर चुकी हैं, जो रि-यूजेबल सैनिटरी नैपिकन को साफ करता है। इस डिवाइस की कीमत डेढ़ हजार रुपए रखी गई है।