जज के ड्राइवर का बेटा बना जज
मध्य प्रदेश की कोर्ट में ड्राइवर गोवर्धनलाल के पुत्र चेतन बजाड़ का सिविल जज बन जाना, उनके परिवार के लिए तो सबसे बड़ी सौगात है ही, यह हर युवा के लिए एक प्रेरक मिसाल भी है। इसी तरह पूरी पीढ़ी के लिए प्रेरक हो सकती है। इसी तरह भागलपुर कोर्ट में चपरासी जगदीश की बेटी जूली कुमारी भी इसी साल जज बनीं।
कुछ कामयाबियां ऐसी होती हैं, जो पूरे देश के लिए मिसाल बन जाती हैं। जैसे, कुछ ही दिन पहले इंदौर (म.प्र.) में जज के ड्राइवर गोवर्धनलाल बजाड़ के बेटे चेतन बजाड़ सिविल जज बन गए। चेतन के दादा कोर्ट परिसर में ही चौकीदारी करते रहे हैं। इसी तरह का एक सुखद वाकया इसी साल बिहार में उस वक़्त सामने आया था, जब भागलपुर सिविल कोर्ट में चपरासी रहे जगदीश साह की बेटी जूली कुमारी सिविल जज बन गईं।
इसी तरह वर्ष 2016 में रामगढ़ (झारखंड) में सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड में चपरासी रहीं सुमित्रा देवी के सबसे छोटे बेटे महेंद्र कुमार सीवान के जिलाधिकारी बन गए। मोरिंडा (पंजाब) के राजस्व विभाग में चपरासी की पिता की बेटी संदीप कौर का आइएएस बन जाना भी गर्व से सिर ऊंचा कर देता है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर सिविल सेवा परीक्षा की चयन सूची गत बुधवार को जारी हुई तो सिविल जज वर्ग-दो की भर्ती परीक्षा में छब्बीस वर्षीय चेतन बजाड़ को अन्य ओबीसी वर्ग में 13वीं रैंक हासिल हुई। उन्हें लिखित परीक्षा और साक्षात्कार को मिलाकर 450 अंकों में कुल 257.5 अंक मिले।
चेतन बजाड़ बताते हैं कि 'उनके पिता गोवर्धनलाल बजाड़ इंदौर की जिला कोर्ट में ड्राइवर हैं। उनके दादा हरिराम बजाड़ उसी कोर्ट से चौकीदार के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनके पिता का हमेशा से सपना था कि उनके तीन बेटों में से एक बेटा जज बने। आखिरकार, उन्होंने उनका सपना पूरा कर दिया है। चौथी कोशिश में उन्हे सिविल जज बनने की कामयाबी मिली है। जज की कुर्सी संभालते हुए उनका प्रयास रहेगा कि लोगों को त्वरित इंसाफ मिले।' मालवा-निमाड़ अंचल की तीन बेटियां भी जज बनी हैं। इनमें शाजापुर की नीलम गुर्जर, पूजा विजयवर्गीय और नीमच की अंकिता पलास भी शामिल हैं। नीलम के पिता सिद्धनाथ गुर्जर बिजली विभाग में लाइनमैन हैं।
इसी साल जब भागलपुर (बिहार) के जगदीश साह, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के आईसीयू में भर्ती थे, उनकी बेटी जूली कुमारी 29वीं बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में सफल हो गईं। उस समय अचेतावस्था में होने के कारण भला उन्हे कहां पता था कि जिस सिविल कोर्ट में वह चपरासी की नौकरी करते-करते, जजों को सलाम ठोकते बूढ़े हो गए, उसी में उनकी बेटी अब न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर लोगों को इंसाफ देने जा रही है।
जूली ने सरकारी स्कूल से 2004 में हाईस्कूल और 2006 में इंटर की परीक्षा पास की थी। उसके बाद उन्होंने टीएनबी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई करके 2011 में डिग्री हासिल की। परीक्षा पास करने के बाद वह बिहार न्यायिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में जुट गईं इसी बीच 2009 में उनकी शादी हो गई। न्यायिक सेवा परीक्षा में सफल होने के बाद जूली को सबसे ज्यादा इस बात का दुख रहा कि वह इतनी बड़ी खुशखबरी ऐन वक़्त पर अपने पिता से ही साझा नहीं कर सकीं।
प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर भी मिसाल कायम करने वालों की फेहरिस्त में मोरिंडा (पंजाब) की संदीप कौर पिता रंजीत सिंह तहसील में चपरासी रहे। संदीप ने सातवीं कक्षा में ही आईएएस बनने का संकल्प ले लिया था। आखिरकार, आईएएस परीक्षा में 138वां रैंक हासिल करने में वह कामयाब हो गईं।
रंजीत सिंह ने बेटी के आईएएस बन जाने पर भी चपरासी की नौकरी नहीं छोड़ी। वह कहती हैं- वह अपना रोल मॉडल अपने माता-पिता को मानती हैं। एक बेटी को जिस तरह से उन्होंने पढ़ाया और हर तकलीफ सही, उनके जुझारूपन, लक्ष्य के प्रति निष्ठा और मेरे ऊपर उनके विश्वास ने ही कमायाबी की इस ऊंचाई तक पहुंचाया है। उनको अपने श्रमशील पिता पर गर्व है।