अब मुनाफे वाली इस कंपनी को बेचने की तैयारी में है मोदी सरकार, टाटा-अडानी चाहते हैं खरीदना!
खबर है कि मोदी सरकार राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड को बेचने की तैयारी में है. दिलचस्प है कि यह कंपनी मुनाफा दे रही है, फिर भी इसे बेचा जा रहा है. टाटा और अडानी ने भी इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है.
मोदी सरकार (Modi Govt) ने एक और कंपनी को बेचने (Disinvestment) की तैयारी कर ली है. खबर है कि जल्द ही सरकार राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (Rashtriya Ispat Nigam Limited) यानी आरआईएनएल (RINL) को बेच सकती है. साथ ही सरकार इसकी सब्सिडियरी कंपनी को भी बेच सकती है. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2023 में इसके निजीकरण के लिए रुचि पत्र मंगवाने की योजना बनाए जाने की खबर भी है. रिपोर्ट के अनुसार सरकार इस कंपनी में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है. खबर है कि इसे गौतम अडानी (Gautam Adani) और रतन टाटा (Ratan Tata भी खरीदने की सोच रहे हैं.
टाटा-अडानी चाहते हैं खरीदना!
अगर रिपोर्ट की मानें तो दिसंबर की शुरुआत में प्री-बिड कंसल्टेशन के दौरान टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील और अडानी ग्रुप ने कंपनी को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी. यानी मुमकिन है कि जब इसे खरीदने के लिए सरकार रुचि पत्र मंगवाती है तो उसमें टाटा-अडानी को एक दूसरे से टक्कर लेते देखा जा सके. दोनों ही मजबूत दावेदारों की तरह सामने आएंगे.
मुनाफे वाली है ये कंपनी
आम तौर पर कोई भी अपना बिजनेस सिर्फ इसलिए बेचता है या बंद करता है, क्योंकि उसे नुकसान हो रहा होता है. हालांकि, यहां पर मामला उल्टा है. केंद्र सरकार को आरआईएनल से तगड़ा फायदा हो रहा है. 2021-22 में भी कंपनी ने करीब 913 करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज किया था. इस दौरान कंपनी का टर्नओवर करीब 28,215 करोड़ रुपये था. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार इसे बेचना क्यों चाहती है?
यहां आपके मन में एक सवाल ये उठ सकता है कि आखिर इस कंपनी को टाटा या अडानी क्यों खरीदना चाहेंगे. इसकी कई वजहें हैं. पहली और सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कंपनी मुनाफे वाली है. यानी इसे खरीदने के बाद उसका कायाकल्प करने की जरूरत नहीं है, बल्कि बिजनेस को और बूस्ट करने भर से मुनाफा और बढ़ जाएगा. वहीं दूसरी ओर इस कंपनी के पास करीब 22 हजार एकड़ जमीन है. इसका एक प्लांट गंगावरम पोर्ट के पास है, जो अडानी ग्रुप के पास है. यानी अगर गौतम अडानी इसे खरीदते हैं तो उनके पोर्ट के बेहद करीब एक बड़ी कंपनी उन्हें मिल जाएगी. वहीं टाटा को भी ये सारे फायदे दिख रहे हैं, जिसके चलते वह भी इसमें रुचि ले रही है.
टारगेट हासिल नहीं कर पा रही है
मोदी सरकार ने बजट में 2022-23 के दौरान 65 हजार करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा था. अभी तक सरकार को विनिवेश से करीब 24,544 करोड़ रुपये ही हासिल हुए हैं. देखा जाए तो सरकार के टारगेट का महज 38 फीसदी ही है. उसमें भी 20,500 करोड़ रुपये तो सिर्फ एलआईसी में 3.5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने से मिले थे. सरकार पवन हंस को भी बेचना चाहती है, जिसकी बिक्री अभी रुकी हुई है. हालांकि, इससे भी सरकार को सिर्फ 200 करोड़ रुपये ही मिलते. वहीं कॉनकोर और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की प्रोसेस भी अधर में लटकी है. इनके अलावा बीपीसीएल से सरकार को अपना टारगेट पूरा करने में मदद मिल सकती थी, लेकिन फिलहाल उसे बेचने वाली कंपनियों की लिस्ट से बाहर रखा हुआ है.