क्या हासिल हो सकता है एक बूढ़े आदमी को कसरत करने से
चिली के महाकवि निकानोर पार्रा एक ख़ब्ती इंसान के रूप में निकानोर खासे कुख्यात थे. पूछे जाने वाले हर सवाल को गुस्ताख़ी बताते.
“क्या हासिल हो सकता है एक बूढ़े आदमी को कसरत करने से?
क्या हासिल हो सकता है उसे टेलीफ़ोन पर बात करने से?
मुझे बताओ, उसे क्या हासिल हो सकता है नाम कमाने के चक्कर में?
क्या हासिल हो सकता है उसे आईने में ख़ुद को देखने से?”
चिली के महाकवि निकानोर पार्रा ने यह कविता साठ साल की आयु में लिखी थी.
पार्रा चिली यूनिवर्सिटी में फ़िजिक्स पढ़ाते थे. उन्होंने फ़िजिक्स की कुछ ज़रूरी किताबों का अंग्रेज़ी से स्पेनिश में तर्जुमा किया और स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग के डायरेक्टर भी बने. चिली की फ़िजिक्स सोसायटी ने साल 2016 में पार्रा को अपने मुल्क में विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया. तब पार्रा 102 साल के हो चुके थे.
इससे पांच साल पहले उन्हें स्पेनिश भाषा का सबसे बड़ा मिगेल सरवान्तेस सम्मान दिया गया था. एक ख़ब्ती इंसान के रूप में निकानोर खासे कुख्यात थे. पूछे जाने वाले हर सवाल को गुस्ताख़ी बताने वाले इस आदमी ने जीवन के आख़िरी चालीस-पचास सालों में एक भी इंटरव्यू नहीं दिया.
वाकया सन 1994 का है. पार्रा ने 80वीं सालगिरह मनाई थी. राजधानी सांतियागो में कविता-साहित्य में दिलचस्पी लेने वाले युवाओं ने इस मौके का उत्सव मनाया. कविता लिखने वाला 18 साल का नौजवान आलेहांद्रो ज़ाम्ब्रा भी उनमें से एक था.
उसके एक दोस्त ने उससे कहा – “पार्रा की मौत कभी भी हो सकती है”.
आलेहांद्रो ने पूछा, “बीमार हैं क्या?” दोस्त ने जवाब दिया, “जब आदमी अस्सी का हो जाता है तो समझ लो वह किसी भी पल मर सकता है.”
यह वाकया पार्रा और आलेहांद्रो के बीच एक गहरे सम्बन्ध की शुरुआत बना. कुछ दिन बाद जब पार्रा कवितापाठ के लिए सांतियागो आए तो उसमें आलेहांद्रो भी गया.
“जितने प्रशंसक पार्रा के हैं, उसके आधे भी किसी रॉक बैंड के हो जाएं तो वह खुशी से मर जाएगा,” पार्रा की लोकप्रियता देखने के बाद उसने एक लेख में लिखा.
कोई दस साल बाद 2003 में आलेहांद्रो को कुछ दोस्तों के साथ पहली बार निकानोर पार्रा के घर जाने और उनसे बात करने का मौक़ा मिला. पार्रा को मालूम था 27 साल का आलेहांद्रो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था और कविता लिखता था. पार्रा का नब्बेवां साल चल रहा था. उस मुलाक़ात के दौरान पार्रा ने वाइन पीने के मजे और टमाटरों के रंगों के बारे में घंटों बातें कीं.
एक सम्पादक ने उन्हीं दिनों लिखा था, “पार्रा क़यामत के बाद भी ज़िंदा रहेगा. उसे अमरता का वरदान मिला हुआ है.”
“जब आदमी नब्बे का हो जाता है तो समझ लो वह किसी भी पल मर सकता है” – उसका कॉलेज का दोस्त कहता, आलेहांद्रो सोच रहा था.
पार्रा के जीवन को लेकर चिली के पत्रकार हद से ज्यादा ऑब्सेस्ड रहते थे. उनकी दिलचस्पी इस बात में रहती थी कि कहीं से उनके किसी पुराने चक्कर का पता लगा सकें या किसी औरत के साथ उनकी कोई फोटो ढूंढ निकालें.
उन दिनों पार्रा शेक्सपीयर के नाटक ‘किंग लीयर’ का अनुवाद कर रहे थे. कुछ ऐसा इत्तफाक हुआ कि आलेहांद्रो को इस अनुवाद के सम्पादन का काम सौंपा गया. इस काम में पंद्रह साल लग चुके थे. पार्रा ने अपनी एक कविता में लिखा भी है:
“शेक्सपीयर का अनुवाद करने
और मछली खाने में
सावधानी बरता करो दोस्त
इस बात से बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आपको अंग्रेज़ी आती है”
पार्रा यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके अनुवाद में शेक्सपीयर की आवाज़ आये और निकानोर पार्रा की भी. आलेहांद्रो के हाथ इस अनुवाद की हाथ से लिखी पांडुलिपि के कई ड्राफ़्ट, प्रिंटआउट और काग़ज़ों के कई पुलिंदे आए. एक-एक पंक्ति में ख़ूब सारी काटछांट थी और नोट्स लगे हुए थे.
इसके बाद दोनों के बीच ढेर सारी मुलाक़ातें हुईं. कभी-कभी पार्रा एक विशेषण या एक रूपक पर बात करने में पूरी दोपहर बिता देते. फिर एक ऐसा भी क्षण आया, जब आलेहांद्रो को लगा उससे नहीं हो सकेगा. उसे लगा परफ़ेक्शन को लेकर नब्बे साल से ऊपर के हो चुके पार्रा की खूसट ज़िद के आगे वह पराजित हो गया है.
अगले दिन पार्रा खुद अपनी कार ड्राइव कर उसे अपने साथ एक रेस्तरां में लंच कराने ले गए. रास्ते में एक ट्रक को ओवरटेक करने के चक्कर में उनकी कार एक बस के नीचे आते-आते बची. “बच गए यार!” – पार्रा ने मुस्कराते हुए सामने लगे शीशे में आलेहांद्रो से आंखें मिलाकर कहा. "मैं एक पल को थर्रा गया था" - आलेहांद्रो ने इसे अपनी स्मृति में दर्ज करते हुए लिखा.
दो माह बाद अंततः अनुवाद की वह शानदार किताब छप कर आई. पार्रा के साथ आलेहांद्रो की दोस्ती और घनी हो गई. साल 2010 में एक दिन चिली की दिएगो पोर्तालेस युनिवर्सिटी में पार्रा के काम पर एक सेमिनार चल रहा था, जब अचानक पार्रा वहां खुद प्रकट हो गए. उसके बाद उन्होंने खुद वहां मौजूद छात्र-छात्राओं के सवालों के जवाब दिए.
5 दिसम्बर 2014 को आलेहांद्रो अपनी ब्राज़ीली दोस्त जोआना बारोसी के साथ पार्रा से मिलने गए. पार्रा की उम्र सौ साल थी, जबकि आलेहांद्रो की उनतालीस. जोआना बारोसी ने पार्रा की कविताओं का पुर्तगाली में अनुवाद किया था. पार्रा ने उन्हें लंच खिलाया और जोआना बारोसी को अपनी पुरानी तस्वीरों से बनाई गयी एक किताब दिखाते उए उसकी तफ़सीलें बताना शुरू किया. लंच के बाद आलेहांद्रो पार्रा की बेटी कोलोम्बीना के साथ आइसक्रीम लेने बाजार चले गए. एक घंटे बाद जब वे लौटे तो देखा वे जोआना को तस्वीरों की कहानियां सुना ही रहे थे. अगले दो घंटों तक वे ऐसा करते रहे.
"इस आदमी की कहानियां सृष्टि के समाप्त हो चुकने से पहले ख़तम नहीं होंगी!" आलेहांद्रो ने जोआना से फुसफुसाते हुए कहा.
“जब लोग सौ से अधिक साल के हो जाते हैं, इस बात की भरपूर संभावना होती है कि वे कभी भी मर सकते हैं” – जिजीविषा से भरे उस खूसट बूढ़े के घर से वापस लौटते हुए, कार चलाते आलेहांद्रो ने खुद से कहा.
103 साल 4 ,महीने और 18 दिन का हो चुकने के बाद 23 जनवरी 2018 को निकानोर पार्रा ने दुनिया को विदा कहा.
‘कसरत करने से एक बूढ़ा आदमी क्या हासिल कर सकता है’ का जवाब पार्रा उसी कविता में आगे देते हैं:
"बेवकूफ़ बूढ़े, उसकी माँ उससे कहती है
तुम और तुम्हारा बाप बिलकुल एक जैसे हो
वह भी मरना नहीं चाहता था.
मेरी दुआ है ईश्वर तुम्हें गाड़ी चला पाने की ताक़त दे
मेरी दुआ है ईश्वर तुम्हें टेलीफ़ोन पर बात कर सकने की ताक़त दे
मेरी दुआ है ईश्वर तुम्हें सांस लेने की ताक़त दे
मेरी दुआ है ईश्वर तुम्हें ताक़त दे कि तुम अपनी माँ को दफ़ना सको"
Edited by Manisha Pandey