तीस्ता समझौते की सफलता के लिए पानी की कम खपत वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी: विशेषज्ञ
भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी समझौते के समाधान को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को शुष्क मौसम के दौरान नदी घाटी क्षेत्र में पानी की कम खपत वाली फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करके ऐसा किया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने धान की एक किस्म ‘बोरो’ का उदाहरण देते हुए कहा कि इसके अपेक्षाकृत सूखे अनाज की अन्य किस्मों के लिए आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित इसकी खेती को हतोत्साहित किया जा सकता है। ऐसे में किसान कम पानी की खपत वाली फसलों की ओर जाएंगे और पानी की मांग में कमी आएगी।
भारत और बांग्लादेश के बीच सितंबर 2011 में तीस्ता समझौता होने वाला था, लेकिन अंतिम क्षण में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति के बाद इसे टाल दिया गया।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (कोलकाता) के निदेशक नीलांजन घोष ने कहा,
“क्षेत्र (तीस्ता घाटी) में सिंचाई पर आधारित धान की फसल का रकबा कई गुना बढ़ने के चलते पानी की मांग कई गुना बढ़ी है। प्रवाह में कमी आने के साथ ही पानी के बंटवारे को लेकर विवाद बढ़ने लगता है।”
उन्होंने बताया कि 'बोरो' धान के लिए लगभग 1,800-2,800 मिमी पानी की आवश्यकता होती है, जो सोरघम या रागी जैसे सूखे अनाज की तुलना में 10 गुना अधिक है।
उन्होंने कहा कि नदी घाटी के कुल क्षेत्र 1,24,040 वर्ग किमी का लगभग 83 प्रतिशत भारत में है।
आईआईएम कलकत्ता के प्रोफेसर और नदी विशेषज्ञ जयंत बंद्धोपाध्याय ने कहा कि यदि किसानों ने संसाधनों को समझे बिना अधिक पानी वाली फसलों की खेती जारी रखी तो इससे विवाद बढ़ेंगे।
उन्होंने कहा कि
“किसान धान की खेती करते हैं, क्योंकि इसके लिए उन्हें अधिक समर्थन मूल्य मिलता है, और वे पानी की खपत को कम करना नहीं चाहते हैं।”
घोष ने कहा कि इसमें वोट बैंक की राजनीति की भी भूमिका है और इसलिए केंद्र तथा राज्य सरकार बोरो की खेती को हतोत्साहित नहीं करना चाहते हैं।
आपको बता दें कि तीस्ता का पानी बांग्लादेश के लिए भी महत्वपूर्ण है, खासतौर से दिसंबर से मार्च के महीनों के दौरान, जब पानी का प्रवाह काफी कम हो जाता है।
(Edited by रविकांत पारीक )