Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

होम शेफ़: 'घरेलू' मम्मियों की घर-घर तक पहुंचने की कहानी

इंटरनेट और ब्लॉगिंग कल्चर की आमद के साथ इस पुरुष प्रधान फ़ील्ड में महिलाएं उस तरह घुस गई हैं, जिस तरह दाल में तड़का जाता है और उसकी रंगत से लेकर स्वाद तक, सब बदल देता है.

होम शेफ़: 'घरेलू' मम्मियों की घर-घर तक पहुंचने की कहानी

Tuesday May 17, 2022 , 7 min Read

औरतें किचन के लिए बनी हैं.

पुरुष किचन के लिए बने हैं.

हम सभी किचन के लिए बने हैं.

क्योंकि किचन में खाना होता है.

ये तथाकथित 'मीम' सोशल मीडिया के कई चक्कर काट चुका है. ये बताना न होगा कि ये 'मीम' उस मानसिकता पर एक 'फ़नी टेक' है, जो ये मानती है कि महिलाओं की जगह किचन में ही है. समाज के एक बड़े तबके को औरतें किचन में ही अच्छी लगती भी हैं. और बच्चों की स्कूली किताबों से लेकर प्रेशर कुकर और मसालों के विज्ञापनों तक, औरतें किचन में दिखती हैं. ये बात और है कि ये सभी किचन घर के अंदर के किचन होते हैं.

घर के बाहर के रसोईघरों में औरतें कितनी मौजूद हैं, इंडिया के मामले में इस सवाल के जवाब में कोई पक्का डाटा नहीं मिलता. हालांकि 'डेकन हेरल्ड' के लिए एक ब्लॉग में 'अकैडमी ऑफ़ पेस्ट्री एंड कलिनरी आर्ट्स ग्रुप' के संस्थापक निकलेश शर्मा लिखते हैं कि कलिनरी इंडस्ट्री में 80 से 90 फ़ीसद तक शेफ़ पुरुष हैं. यानी घर के बाहर के किचन, चाहे वो बड़े होटल हों, रेस्तरां हों या बेकरी हों- उन्हें पुरुष चला रहे हैं. 'इंडियन शेफ्स' टाइप कर किया गया एक सादा सा गूगल सर्च बताता है कि टॉप 10 नामों में 8 पुरुष हैं.

कुल मिलाकर महिलाओं द्वारा किया जा रहा तमाम अनपेड लेबर, अपने आप में पूरे घर के लिए खाना बनाना जैसा काम भी समेटे हुए हैं. और जहां कलिनरी इंडस्ट्री में काम कर रहे पुरुष की कुकिंग को कला पुकारा जा रहा है, और उन्हें उसकी कीमत चुकाई जा रही है, महिलाओं के लिए खाना पकाने को एक ज़िम्मेदारी और उसकी नैसर्गिक भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है.

ऐसे वक़्त में यूट्यूब चैनल्स और फ़ूड ब्लॉगिंग की एंट्री होती है.

'आंत्रप्रेन्योर'

2012 में आई गौरी शिंदे की फ़िल्म 'इंग्लिश विंगलिंश' में एक सीन है जिसमें श्रीदेवी का किरदार शशि अंग्रेजी सीखने एक क्लास में जाता है. शशि का टीचर उससे पूछता है कि वो इंडिया में क्या करती है. शशि बताती है कि वो लड्डू बनाकर छोटे स्तर पर बेचती है. टीचर उसे जवाब देता है कि शशि असल में एक 'आंत्रप्रेन्योर' है. एक मां और पत्नी के अतिरिक्त भी शशि की एक पहचान है, इस बात का एहसास होते ही उसके चेहरे पर जो खुशी आती है, उसे आप फिल्म के इस क्लिप में देख सकते हैं.

ऐसी ही एक आंत्रप्रेन्योर हैं कबिता सिंह. फ़िलहाल यूट्यूब पर इनके एक करोड़ से भी ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. योर स्टोरी से हुई एक बातचीत में कबिता बताती हैं:

"हम यूके शिफ्ट हुए तो मेरे पति काम पर जाते थे और मैं खाली रहती थी तो कई रेसिपीज बनानी ट्राय कीं. फिर इंडिया लौटे तो बच्चे स्कूल जाने लगे. मैं सोचती थी पूरे दिन क्या करूं तो मैंने वीडियोज़ बनाने शुरू किए. कुछ भी हाई-फाई नहीं था, जैसे हम घर पर खाने के लिए भिंडी की सब्जी बनाते हैं, वैसे ही बनाकर मैंने वीडियो डाला. और फिर मैंने पाया कि घर से दूर रह रहे लोग असल में घरेलू खाना पकाना ही सीखना चाहते हैं."

कबिता बताती हैं कि जब उनके तीन लाख फॉलोवर हुए, उसके बाद से ही उनके पास ब्रांड कोलैबोरेशन के प्रस्ताव आने लगे. लेकिन जबतक उनके फॉलोवर 20 लाख नहीं हुए, उन्होंने विज्ञापन लेने शुरू नहीं किये. उनके लिए ये ज़रूरी था कि लोग ये न समझने लगें कि वो पैसों के लिए खाना पकाती हैं.

फॉलोवर्स की रेस में होते हुए उनका विश्वास भी बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है, ये बात निशामधुलिका से बेहतर कौन समझता होगा! अगर बात हिंदी की करें तो फ़ूड ब्लॉगिंग की दुनिया में उनका नाम सबसे पुराना है. निशा ने 2007 में टेक्स्ट ब्लॉगिंग से शुरुआत की थी, एक ऐसा काम जो उन्होंने पति की 'इजाज़त' लेकर शुरू किया. वो रेसिपीज लिखकर पब्लिश करती थीं. जब रेसिपीज 100 से ज़यादा हो गईं तो उनके बेटे ने उनके लिए एक वेबसाइट बना दी. और इस तरह 2008 में nishamadhulika.com का जन्म हुआ.

निशा बताती हैं कि जब उन्होंने यूट्यूब पर पहली बार वीडियो डाला तो उन्हें ज़रा भी तकनीकी जानकारी नहीं थी. सबकुछ धीरे-धीरे परिवार की मदद से सीखा. आज निशा के भी एक करोड़ से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. ये याद रखना जरूरी है कि निशा भी एक ऐसी ही महिला हैं जिनके पति नौकरी पर चले जाते थे और बच्चे पढ़ने के लिए बाहर थे. खाली समय में उन्होंने ब्लॉगिंग शुरू की.

'कुकिंग मॉम्स'

यूट्यूब के के बड़े नामों से इतर हम देखते हैं तो पाते हैं कि महिलाओं ने अपनी पाक कला को नुमाया करने के लिए फ़ोन और सोशल मीडिया का सहारा लिया है. सोशल मीडिया यूं ही एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो वर्चुअल दुनिया में एक वर्चुअल स्वीकार्यता के पैमाने सेट करता है. रोज़ सुबह उठकर बच्चों के लिए टिफिन बनाना एक महिला के लिए ज़ाहिर तौर पर कोई रिवॉर्ड लेकर नहीं आता है. लेकिन उसी रेसिपी का वीडियो शूट कर सोशल मीडिया पर शेयर करना भले ही आपके बटुए में पैसे न लेकर आए, आपके कमेंट सेक्शन और इनबॉक्स में तारीफ़ ज़रूर लेकर आ सकता है.

वीडियो ब्लॉगिंग के लिए एक सुंदर किचन और हेवी लाइटिंग की ज़रुरत नहीं है, ऐसा उन महिलाओं से साबित किया है जिन्होंने अपने ही किचन में, लाइव कुकिंग करते हुए मोबाइल से वीडियो शूट किए. मगर सिर्फ फॉर्मल सेटअप न होना ही वो इकलौता तरीका नहीं है जिससे इन महिलाओं ने वीडियो ब्लॉगिंग के व्याकरण को बदला. ब्लॉगर महिलाओं की भाषा घरेलू है और अपने जैसी दूसरी महिलाओं से संवाद करने का प्रयास करती दिखती है. कुल मिलाकर, इस दुनिया में 'मॉम्स' दूसरी 'मॉम्स' के लिए वीडियो बनाती हैं: 'घर में कोई सब्जी नहीं है तो झटपट ये बनाएं', 'बच्चे हरी सब्जी नहीं खाते तो ये टेस्टी रेसिपी ज़रूर ट्राय करें', या फिर 'बच्चों के स्कूल टिफिन के लिए बेस रेसिपीज'.

मांओं का मांओं के लिए कुकिंग वीडियो बनाना, ज़ाहिर है, इस पूर्वाग्रह को पक्का करता है कि 'किचन औरतों का एरिया है'. मगर ये कई स्तर पर औरतों के हक़ में दिखता है:

1. ये साबित करना कि औरत के लिए भी खाना पकाना एक कला है, न सिर्फ पुरुष के लिए.

2. कुकिंग 'मॉम्स' की पहचान एक मां के तौर पर न होकर एक आर्टिस्ट के तौर पर होना.

3. खाना पकाकर पैसे कमाना- ये काम केवल पुरुष नहीं, स्त्री भी कर सकती है. यानी घर पर रहकर खाना पकाना भी उतना ही कमाऊ पेशा हो सकता है जितना किसी रेस्तरां में शेफ के तौर खाना पकाना.

खाना बनाने वाली मॉम्स की ऐसी ही कम्युनिटी बनाई है अपेक्षा हल्दिया ने. अपेक्षा ने पाया कि उनकी मां अच्छा खाना बनाती हैं मगर उनकी उतनी पूछ नहीं है जितना वो डिजर्व करती हैं. अपेक्षा ने अपनी मां से शुरुआत की. और फिर कई मांओं के साथ मिलकर 'ज़ायका का तड़का' नाम के चैनल के लिए वीडियोज बनाए.

अपेक्षा अपनी वेबसाइट 'जायका का तड़का' में बताती हैं कि उन्होंने अपनी मां को एक आम 'हाउस वाइफ' से एक कॉन्फिडेंट महिला में परिवर्तित होते हुए देखा है. उनके मुताबिक 'वीडियो के तौर पर कुकिंग को दुनिया को दिखाना मांओं को सशक्त करता है और अपना टैलेंट पहचानने और निखारने का मौका देता है." इस फेसबुक पेज पर फ़िलहाल 20 लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं.

'होम शेफ्स'

घर से वीडियो बनाने वाली 'होम शेफ्स' की फेहरिस्त लंबी है. इनमें भावनाज़ किचन चैनल की भावना पटेल (10 लाख सब्सक्राइबर), मंजुलाज़ किचन की मंजुला जैन (लगभग 6 लाख), मिंट्स रेसिपीज की रेशू द्रोलिया (12 लाख से ज्यादा), मास्टर शेफ़ सीजन 1 विजेता पंकज भदौरिया (लगभग 8 लाख) जैसे कुछ नाम हैं जो घर-घर में लिए जाते हैं.

ये बात रोचक है कि इनमें से अधिकतर महिलाओं ने अपने ब्लॉग कि शुरुआत शौकिया की. और ये बात वो बार-बार ज़ाहिर करने से नहीं चूकतीं कि पैसे कमाना उनका शुरुआती लक्ष्य नहीं था. औरत पैसे कमाए, ये उससे अपेक्षित नहीं होता जबतक घर में पिता या पति के अलावा आय के दूसरे स्रोत की आवश्यकता महसूस न होने लगे. मगर इन महिलाओं के लिए पैसे कमाना केवल ज़रूरतें पूरी करने का ज़रिया नहीं है, बल्कि खुद की पहचान बनाने का जरिया है.

एक इंटरव्यू में निशामधुलिका के पति एमएस गुप्ता कहते हैं: "फेसबुक पर होता हूं या कहीं बाहर जाता हूं तो लोग अब मेरा परिचय ऐसे ही करवाते हैं- इनसे मिलिए, ये निशामधुलिका के पति हैं."

इंटरनेट और ब्लॉगिंग कल्चर की आमद के साथ इस पुरुष प्रधान फ़ील्ड में महिलाएं उस तरह घुस गई हैं, जिस तरह दाल में तड़का जाता है और उसकी रंगत से लेकर स्वाद तक, सब बदल देता है.