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Story of Britannia: ब्रिटिश राज में 295 रुपये से हुई थी शुरू; आज 9000 करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यु

शुरुआत से अब तक कंपनी ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे, यहां तक कि कॉरपोरेट वॉर भी झेले.

Story of Britannia: ब्रिटिश राज में 295 रुपये से हुई थी शुरू; आज 9000 करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यु

Sunday June 19, 2022 , 5 min Read

भारत के ज्यादातर घरों में Britannia का कोई न कोई प्रॉडक्ट आपको मिल ही जाएगा. फिर चाहे वह बिस्किट हो, टोस्ट हो, ब्रेड हो या केक...Britannia Industries भारत की पहली बिस्किट कंपनी है. यह जब शुरू हुई थी तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह कंपनी इतनी कामयाबी देखेगी. लेकिन आज इसका सालाना रेवेन्यु 9000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का है. शुरुआत से अब तक कंपनी ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे, यहां तक कि कॉरपोरेट वॉर भी झेले. आइए जानते हैं ब्रिटानिया की फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी...

ब्रिटानिया को ब्रिटिश व्यवसायियों के एक ग्रुप ने साल 1892 में कलकत्ता (वर्तमान नाम कोलकाता) में 295 रुपये में शुरू किया था. शुरुआत में सेंट्रल कलकत्ता के एक छोटे से घर में बिस्किट बनाए जाते थे. बाद में इस एंटरप्राइज को गुप्ता ब्रदर्स ने खरीद लिया, जिनमें नलिन चंद्र गुप्ता प्रमुख थे. वह वेंचर को वीएस ब्रदर्स के नाम से चलाने लगे. इसके बाद 1910 में इलेक्ट्रिसिटी की मदद से कंपनी ने मशीन से बिस्किट बनाने शुरू किए.

मुंबई फैक्ट्री 1924 में सेटअप

1918 आते आते कंपनी को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए गुप्ता ब्रदर्स ने इंग्लिश बिजनेसमैन सुयश चार्ल्स को साथ लिया और फिर यहां से ब्रिटानिया ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1918 में ही कलकत्ता में रहने वाले एक इंग्लिश बिजनेसमैन सीएच होम्स पार्टनर के तौर पर इससे जुड़े और ब्रिटानिया बिस्किट कंपनी लिमिटेड (BBCo) को लॉन्च किया गया. 1921 में प्रॉडक्शन बढ़ाने के लिए कंपनी ने इंडस्ट्रियल गैस ओवन्स का इंपोर्ट करना शुरू किया. मुंबई फैक्ट्री 1924 में सेटअप हुई और लंदन की पीक फ्रेन्स नाम की बिस्किट कंपनी ने BBCo में कंट्रोलिंग स्टेक खरीद लिए। इसके बाद ब्रिटानिया बिस्किट्स पॉपुलर होने लगे.

दूसरे विश्व युद्ध के वक्त से मिली मजबूती

दूसरे विश्व युद्ध के वक्त ब्रिटानिया बिस्किट की उच्च मांग थी, जिसने कंपनी की बिक्री को बढ़ाया. उस दौरान ब्रिटानिया को भारत के मित्र देशों से, फौजों को सप्लाई करने के लिए उस वक्त का सबसे बड़ा ऑर्डर मिला था, जिसने कंपनी की सालाना बिक्री को 8 फीसदी बढ़ाकर 1.36 करोड़ पर पहुंचा दिया. 1954 में ब्रिटानिया ने भारत में हाई क्वालिटी वाली स्लाइस्ड और रैप्ड ब्रेड को विकसित किया. 1955 में ब्रिटानिया ने बरबन बिस्किट लॉन्च किया. 1963 में ब्रिटानिया केक ने मार्केट में एंट्री की और देखते ही देखते छा गया. 3 अक्टूबर 1979 को कंपनी का नाम ब्रिटानिया बिस्किट कंपनी लिमिटेड से बदलकर ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड हो गया.

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जब नेबिस्को ब्रांड्स इंक ने खरीदी बहुलांश हिस्सेदारी

1982 में एक अमेरिकी कंपनी नेबिस्को ब्रांड्स इंक ने पीक फ्रेन्स से हिस्सेदारी खरीद ली और ब्रिटानिया में बहुलांश हिस्सेधारक बन गई. 1986 में ब्रिटानिया ने पॉपुलर गुड डे ब्रांड लॉन्च किया. 1989 में एग्जीक्यूटिव ऑफिस बंगलौर शिफ्ट किया गया. इसके बाद 1993 में लिटिल हर्ट्स और 50-50 बिस्किट को लॉन्च किया गया. 1997 में कंपनी डेयरी प्रॉडक्ट्स के मार्केटमें उतरी. साल 2000 में ब्रिटानिया फोर्ब्स ग्लोबल की 300 स्मॉल कंपनियों की लिस्ट में शामिल हुई और 2004 में ब्रिटानिया को सुपरब्रांड का दर्जा मिला. 2014 में ब्रिटानिया ने एक सुपर प्रीमियम चॉकलेट चिप कुकी, गुड डे चंकीज को लॉन्च किया. इसके लॉन्च के लिए कंपनी ने अमेजॉन से एक एक्सक्लूसिव टाई अप किया गया. 2017 में कंपनी ने एक ग्रीक कंपनी चिपिता एसए के साथ एक जॉइंट वेंचर शुरू किया ताकि रेडी टू ईट प्रॉडक्ट्स बनाए और बेचे जा सकें.

कितना फैला हुआ बिजनेस

ब्रिटानिया की 60 से ज्यादा देशों में मौजूदगी है. कंपनी के प्रॉडक्ट नॉर्थ अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और साउथ ईस्ट एशिया में एक्सपोर्ट होते हैं. ब्रिटानिया बिस्किट, ब्रेड, केक, रस्क, डेयरी प्रॉडक्ट कैटेगरी में प्रॉडक्ट मौजूद हैं. डेयरी बिजनेस इसके कुल रेवेन्यु में 5 फीसदी का योगदान देता है. 1 लाख आउटेलट पर ब्रिटानिया के डेयरी प्रॉडक्ट सीधे तौर पर जाते हैं. भारत में कंपनी के 50 लाख से ज्यादा रिटेल आउटलेट हैं. ब्रिटानिया ब्रेड, आर्गेनाइज्ड ब्रेड मार्केट में सबसे बड़ा ब्रांड है. भारत में ब्रिटानिया की 13 फैक्ट्री हैं. कंपनी का सालाना रेवेन्यु 9000 करोड़ रुपये से ज्यादा है. BSE पर कंपनी के शेयर की कीमत 3334.60 रुपये और मार्केट कैप 80,319.94 करोड़ रुपये है.

जब टेकओवर बैटल हुई चर्चित

1990 के दशक में ब्रिटानिया, वाडिया ग्रुप द्वारा टेकओवर बैटल के चलते चर्चा में रही थी. उसके बाद इसके मैनेजमेंट को लेकर कंपनी को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा. मामला कुद इस तरह था कि जनार्दन मोहनदास राजन पिल्लई, सिंगापुर की 20th Century Foods के मालिक थे और ओले ब्रांड नाम से आलू चिप्स बेचते थे. उन्होंने अपने राइवल स्टैंडर्ड ब्रांड्स के साथ एक जॉइंट वेंचर शुरू किया. स्टैंडर्ड ब्रांड्स को बाद में नेबिस्को ने खरीद लिया. 1985 में राजन पिल्लई ने अपने सिंगापुर के जॉइंट वेंचर में 50 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी और लंदन में इंटरनेशनल नेबिस्को ब्रांड्स में एक सीनियर रोल को जॉइन कर लिया. 1982 में नेबिस्को ब्रांड्स ने ब्रिटानिया में कंट्रोलिंग शेयर खरीदा था. इसके बाद 1987 में पिल्लई ने ब्रिटानिया में 11 फीसदी इन्वेस्टमेंट स्टेक हासिल किए और दिसंबर 1988 में ब्रिटानिया में 38 फीसदी हिस्सेदारी के मालिक बन गए.

1993 में वाडिया ग्रुप ने एसोसिएटेड बिस्किट्स इंटरनेशनल में हिस्सेदारी ली और ग्रुप डैनोन के साथ ब्रिटानिया में बराबर की हिस्सेदार बन गया. वाडिया ग्रुप और डैनोन को इस बीच राजन पिल्लई के साथ तगड़ी बोर्डरूम बैटल का सामना करना पड़ा. 1995 में राजन पिल्लई वित्तीय घोटाले के चलते जेल चले गए और गिरफ्तारी के चार दिन बाद तिहाड़ जेल में उनका निधन हो गया. इसके बाद नुस्ली वाडिया और एक और विदेशी कंपनी डैनोन ने ब्रिटानिया को पूर्णत: खरीद लिया. 2009 में इन दोनों साझेदारों के बीच एक बोर्डरूम बैठक हुई, जिसके बाद इस कंपनी पर वाडिया परिवार का पूरा कब्जा हो गया.