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गुमनामी से लेकर 200 करोड़ कमाने तक बॉलीवुड में महिलाओं की सफलता का 96 साल लंबा सफर

आज भी बॉलीवुड में जेंडर रिप्रेजेंटेशन सिर्फ 18 फीसदी है और शून्‍य से यहां तक पहुंचने में हमें पूरे 96 साल लगे हैं. लेकिन इन 96 सालों में हमने एक लंबी यात्रा तय की है.

गुमनामी से लेकर 200 करोड़ कमाने तक बॉलीवुड में महिलाओं की सफलता का 96 साल लंबा सफर

Sunday September 18, 2022 , 7 min Read

1970 में एक फिल्‍म आई थी ‘पूरब और पश्चिम’. मुंबई के प्रसिद्ध इरोज और मराठा मंदिर सिनेमा हॉल में एक साल तक लगी रही यह फिल्‍म उस साल की तीसरी सबसे ज्‍यादा कमाई करने वाली फिल्‍म थी. इस फिल्‍म से रातोंरात मनोज कुमार की झोली में बतौर डायरेक्‍टर ख्‍याति और पैसा दोनों आ पड़े थे. लेकिन उस सुपरहिट फिल्‍म से जुड़े फैक्‍ट खोजते हुए आपको एक फैक्‍ट आसानी से नहीं मिलेगा. वो ये कि फिल्‍म की कहानी और पटकथा एक महिला ने लिखी थी. नाम था शशि गोस्‍वामी.

हिंदी फिल्‍मों की दुनिया में तब तक महिलाओं की मौजूदगी एक ही रूप में दिखाई देती थी- वो फिल्‍म के नायक की नायिका होती थीं. कुछ डेढ़ दशक बाद सई परांजपे (स्‍पर्श, चश्‍मे बद्दूर, कथा), मीरा नायर (सलाम बॉम्‍बे), इस्‍मत चुगताई (गर्म हवा, जुनून), विजया मेहता (राव साहब, पेस्‍तनजी), कामना चंद्रा (प्रेम रोग, चांदनी) जैसी कुछ महिलाओं ने बतौर स्‍टोरी राइटर, स्‍क्रीन राइटर और डायरेक्‍टर अपनी पहचान बनाई, लेकिन अब भी वो इतना बड़ा नाम नहीं थीं कि बॉक्‍स ऑफिस पर फिल्‍म की सफलता का श्रेय और बेहिसाब पैसा उन्‍हें मिलता, बावजूद इसके कि चश्‍मे बद्दूर, सलाम बॉम्‍बे, प्रेम रोग और चांदनी अपने समय की सुपरहिट फिल्‍में थीं.

औरतों को अपने काम का क्रेडिट पाने में जितने बरस लगे, शायद उतने ही उस काम का वाजिब पैसा मिलने में भी लग गए. लेकिन अब वक्‍त बदल रहा है. अब जिस तरह जीवन के हर क्षेत्र में औरतें अपनी जगह और अपना वाजिब हक क्‍लेम कर रही हैं, बॉलीवुड भी उससे अछूता नहीं है. पहले फिल्‍मों में हीरोइन सिर्फ हीरो का पुछल्‍ला होती थी, अब स्त्रियां अकेले अपने बलबूते न सिर्फ कहानी को होल्‍ड करती हैं, बल्कि बॉक्‍स ऑफिस पर भी सुपरहिट रहती हैं.  

डर्टी पिक्‍चर से हुई शुरुआत

साल 2011 में दो फिल्‍में आईं- नो वन किल्‍ड जेसिका और द डर्टी पिक्‍चर. दोनों ही फिल्‍मों के केंद्र में कोई हीरो नहीं, बल्कि हीरोइन थी. नो वन किल्‍ड जेसिका की लीड विद्या बालन और रानी मुखर्जी थी और द डर्टी पिक्‍चर की सोल हीरोइन तो अकेले विद्या ही थीं. दो दशक पहले भी भूमिका, अंकुर, अर्थ और चांदनी बार जैसी फिल्‍में बन चुकी थीं, जिसके केंद्र में महिला किरदार ही ही थीं, लेकिन ये ज्‍यादातर कला फिल्‍में थीं जो फिल्‍म डिवीजन के सहयोग से बनी थीं और इनके हिस्‍से कोई कमर्शियल सफलता नहीं आई थी.

द डर्टी पिक्‍चर बनाकर मिलन लूथरिया ने एक बड़ा रिस्‍क लिया था, लेकिन महज 18 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्‍म ने बॉक्‍स ऑफिस पर 117 करोड़ की कमाई की. ये किसी विमेन सेंट्रिक फिल्‍म के हिस्‍से में आई सबसे बड़ी क‍मर्शियल सक्‍सेस थी. उसी साल नो वन किल्‍ड जेसिका भी सुपरहिट रही. 9 करोड़ की लागत से बनी फिल्‍म ने 46 करोड़ की कमाई की.

अब नई तरह की कहानियों को जगह और मौका मिलने लगा था. फिल्‍म प्रोड्यूसर्स विमेन सेंट्रिक कहानियों में पैसा लगाने को तैयार थे. वो फिल्‍म की सफलता के लिए मेल स्‍टार का मुंह नहीं ताक रहे थे. राइटर ऐसी कहानियां लिख रहे थे, जिसमें कोई लार्जर देन लाइफ हीरो नहीं था. स्त्रियों ने कहानी की कमान अपने हाथों में थाम ली थी और बॉक्‍स ऑफिस पर पैसे पीट रही थीं.

पिछले 22 सालों में बॉलीवुड के हर क्षेत्र में स्त्रियों के प्रतिनिधित्‍व की कहानी काफी बदल गई है. द डर्टी पिक्‍चर के बाद विमेन सेंट्रिक फिल्‍मों की लंबी कतार है. कहानी (2012), इंग्लिश-विंग्लिश (2012), क्‍वीन (2013), नीरजा (2016), राजी (2018), छपाक (2020), शेरनी (2021) सब न सिर्फ उम्‍दा फिल्‍में हैं, बल्कि इन सबके केंद्र में एक महिला है. इनमें से कोई लार्जर देन लाइफ हीरो नहीं है, न 50 गुंडों को अकेले मार गिराने वाली अविश्‍वसनीय किस्‍म की हीरोइन है. सब सामान्‍य स्त्रियां हैं, लेकिन कहानी को अपनी प्रतिभा और क्षमता के बूते थामे रखने की कूवत रखती हैं. इनमें से कुछ फिल्‍मों की तो डायरेक्‍टर भी महिलाएं हैं.

successful women actors, writers and directors of bollywood

बॉलीवुड की सुपरहिट विमेन फिल्‍म डायरेक्‍टर

ये तो हुई उन महिलाओं की बात, जिन्‍होंने पिछले दो दशक में अपने अभिनय के बूते फिल्‍मों में केंद्रीय जगह हासिल की. इस दौरान महिलाओं ने बतौर राइटर और डायरेक्‍टर भी फिल्‍मों में अपना खास मुकाम बनाया है. न सिर्फ अपने टैलेंट के दम पर, बल्कि कमर्शियल सक्‍सेस के दम पर भी.  

बॉलीवुड की सुपरहिट विमेन फिल्‍म डायरेक्‍टर का जिक्र हो तो जोया अख्‍तर का नाम सबसे पहले जुबान पर आता है. 2011 में आई जोया अख्‍तर के निर्देशन में बनी फिल्‍म जिंदगी ना मिलेगी दोबारा उनकी पहली कमर्शियल सक्‍सेस थी. महज 45 करोड़ में बनी इस फिल्‍म ने बॉक्‍स ऑफिस पर 153 करोड़ की कमाई की. इसके पहले कमर्शियल सक्‍सेस पाने वाली विमेन सेंट्रिक सुपरहिट फिल्‍मों के लेखक और निर्देशक पुरुष ही थे. यह पहली फिल्‍म थी, जिसने बॉक्‍स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए थे.

एक साल बाद आई गौरी शिंदे निर्देशित फिल्‍म इंग्लिश-विंग्लिश भी सुपरहिट रही. महज 10 करोड़ में बनी इस फिल्‍म ने 102 करोड़ की कमाई की. तलवार और राजी से पहले मेघना गुलजार भी 4 और फिल्‍में बना चुकी थीं, लेकिन उनमें से कोई भी कमर्शियल सक्‍सेस नहीं थी. 2018 में आई राजी उनकी पहली सुपरहिट फिल्‍म थी, जो महज 35 करोड़ की लागत से बनी थी और जिसने बॉक्‍स ऑफिस पर 197 करोड़ की कमाई की. तलवार इतनी सफल तो नहीं रही थी, लेकिन 15 करोड़ में बनी फिल्‍म ने 50 करोड़ की कमाई तो की ही थी. 2017 में आई अश्विनी अय्यर तिवारी की लिखी और डायरेक्‍ट की फिल्‍म बरेली की बर्फी भी बॉक्‍स ऑफिस पर सफल रही. 20 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्‍म ने 60 करोड़ की कमाई की.

जोया अख्‍तर की अगली फिल्‍म दिल धड़कने दो भी बॉक्‍स ऑफिस पर सफलता के नए रिकॉर्ड बनाने वाली साबित हुई. 58 करोड़ में बनी फिल्‍म ने 158 करोड़ की कमाई की. तीसरी फिल्‍म गली बॉय ने सफलता के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. 70 करोड़ में बनी इस फिल्‍म ने 240 करोड़ रुपए की कमाई की. जोया अख्‍तर आज की तारीख में बॉलीवुड की सबसे ज्‍यादा कमर्शियली सक्‍सेसफुल वुमन फिल्‍म डायरेक्‍टर हैं.  

बॉक्‍स ऑफिस पर सक्‍सेस स्‍टोरी लिखती महिला स्‍क्रीन राइटर्स की कलम

न सिर्फ बतौर डायरेक्‍टर, बल्कि स्‍क्रीन राइटर भी महिलाओं ने पिछले दो दशकों में अपनी खास पहचान बनाई है. इसकी शुरुआत तो जूही चतुर्वेदी से ही होती है, जिन्‍होंने विकी डोनर की कहानी लिखी थी. न सिर्फ इस फिल्‍म की कहानी बहुत यूनीक थी, बल्कि सिर्फ 15 करोड़ में बनी इस फिल्‍म ने 66 करोड़ की कमाई की. उनकी लिखी दूसरी फिल्‍म पीकू भी सुपरहिट रही, जो 42 करोड़ की लागत से बनी थी और जिसने 141 करोड़ की कमाई की. इसके अलावा कनिका ढिल्‍लन, अलंकृता श्रीवास्‍तव, अन्विता दत्‍त गुप्‍ता, रीमा कागती जैसी महिला स्‍क्रीन राइटर्स ने बॉक्‍स ऑफिस पर भी सफलता के झंडे गाड़े हैं.

आज की तारीख में दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, तापसी पन्‍नू, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत और विद्या बालन जैसी अभिनेत्रियां बॉलीवुड में सबसे ज्‍यादा पैसे कमाने वाली एक्‍टर्स हैं. वो अब न सिर्फ अपने रोल के लिए अच्‍छे पैसे डिमांड कर रही हैं, बल्कि अपने मेल कोएक्‍टर के बराबर पैसे मांग रही हैं. दीपिका पादुकोण, तापसी पन्‍नू, प्रियंका चोपड़ा वगैरह अब खुलकर जेंडर पे गैप के मुद्दे पर बोल रही हैं.

फातमा बेगम बॉलीवुड की पहली विमेन फिल्‍म राइटर और डायरेक्‍टर थीं, जिन्‍होंने 1926 में बुलबुल-ए-परिस्‍तान नाम की फिल्‍म बनाई थी. उसके बाद तकरीबन 60 साल तक यदा-कदा ही किसी महिला का नाम बतौर राइटर या डायरेक्‍टर फिल्‍मों में सुनाई पड़ता था. आज भी बॉलीवुड में जेंडर रिप्रेजेंटेशन सिर्फ 18 फीसदी है और शून्‍य से यहां तक पहुंचने में हमें पूरे 96 साल लगे हैं. लेकिन इन 96 सालों में हमने एक लंबी यात्रा तय की है. अभी पूरा आधा हिस्‍सा क्‍लेम करने में और लंबा सफर तय करना है, लेकिन पिछले दो दशकों में मिली सफलता और हासिल हुआ मुकाम कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं.


Edited by Manisha Pandey