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नववर्ष की अगवानी में सिटिजनशिप पर पूरे देश में हिंसा का ऐसा भयानक सबक

नववर्ष की अगवानी में सिटिजनशिप पर पूरे देश में हिंसा का ऐसा भयानक सबक

Monday December 23, 2019 , 4 min Read

कभी कविता की एक लाइन खूब पढ़ी गई थी कि 'सावधान संसद है, बहस चल रही है, बहस चल रही है कि देश जल रहा है', दुखद है कि देश आजाद होने के सात दशकों बाद आज भी ये पंक्ति मौजू बनी हुई है। नववर्ष की अगवानी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के बहाने हिंसा की लपटें उठ रही हैं। दर्जन से अधिक लोग मारे जा चुके और कल 23 दिसंबर से राजनीतिक हालात और ज्यादा अस्तव्यस्त होने जा रहे हैं। 

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फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया

देश का समूचा राजनीतिक परिदृश्य इनदिनो बड़े ही बिडंबनापूर्ण और अजीबोगरीब हालात में आ फंसा है। जैसे सीधे-सीधे यह हिस्सों में बंटता जा रहा हो। ऐसे हालात के लिए कोई सरकार, तो कोई विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रहा है। मीडिया के अपने विभाजित दृष्टिकोण हैं।


नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरुद्ध उठा यह जलजला आखिर कब तक, कैसे थमेगा, कहना मुश्किल है। अब तक हिंसक प्रदर्शनों में एक दर्जन से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। आज कांग्रेस शासित राजस्थान, उत्तराखंड में खुला ऐलान है तो अन्य प्रभावित 21 जिलों की भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है।


शिक्षण संस्थान, इंटरनेट-मोबाइल सेवाएं आदि, और इनके साथ पूरा जनजीवन जैसे अस्तव्यस्त हो चुका है। ऐसे में 'आईएएनएस-सीवोटर' का सर्वे धर्म के आधार पर अपने गुणा-गणित में बता रहा है कि देश के 62 प्रतिशत लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का समर्थन कर रहे हैं, जबकि असम के 68 प्रतिशत लोग इस कानून के खिलाफ हैं।


देश के राजधानी के हालात ऐसे हैं कि जामिया हिंसा के बाद अब दिल्ली में 22 दिसंबर को एक ओर पीएम मोदी की नागरिकता कानून को ही लेकर रामलीला मैदान में कड़े सुरक्षा इंतजामात के बीच रैली होने जा रही है तो 23 दिसंबर को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ राजघाट पर धरना देने जा रही हैं।





भाजपा देश में दस दिवसीय 1000 रैलियां करने जा रही है तो प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस भी विरोध प्रदर्शनों को देश भर में हवा देने वाली है। हिंसक प्रदर्शनों में एक हजार से अधिक लोग जेल पहुंच चुके हैं।


इसी माहौल के बीच त्रिवेंद्रम कोर्ट से सांसद शशि थरूर के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हो चुका है तो इसी बीच 'आईएएनएस-सीवोटर' 17 से 19 दिसंबर के बीच देश के तीन हजार नागरिकों में कराए गए अपने स्नैप पोल में नमूने के तौर पर लोगों को बता रहा है कि देश के 62.1 प्रतिशत लोग सीएए के समर्थन में और 36.8 प्रतिशत विरोधी हैं।


कल रात से मीडिया में गूंज रहे इस सर्वे का सबसे आपत्तिजनक पहलू ये है कि यह हमे भारत के धर्म-जाति-सम्प्रदाय की आकड़ेबाजी करते हुए समझा रहा है कि मुस्लिमों में 63.5 प्रतिशत लोग इसके खिलाफ 35 प्रतिशत समर्थन में, हिंदुओं में 66.7 प्रतिशत समर्थन में और 32.3 प्रतिशत विरोध में हैं। इसी प्रकार अन्य धर्मों 62.7 इसके पक्ष में है, वहीं 36 प्रतिशत विरोध कर रहे हैं।


सवाल उठता है कि सर्वे की मंशा क्या है, क्या देश यह सब जानना चाहता है अथवा ये मीडिया का कोई बड़ा रणनीतिक खेल है ताकि लोगों की सोच में धर्म-सम्प्रदाय के दृष्टिकोणों को और उकसाया जा सके।


नागरिकता संसोधन कानून पर 'आईएएनएस-सीवोटर' सर्वे की बात इसलिए भी बेहद गौरतलब और अत्यंत संवेदनशील हो सकती है कि देश के ऐसे जलते हालात में उसका सारा गुणा-गणित धर्म-जाति-सम्प्रदायों की रायशुमारी पर फोकस है।


मसलन, वह बताता है कि

‘‘सीएए को लेकर सरकार के साथ खड़े होने के मामले में हिंदू और मुस्लिम बंटे हुए हैं। 67 प्रतिशत हिंदू इसके समर्थन में हैं और 1.5 प्रतिशत मुस्लिम विपक्ष का साथ दे रहे हैं।’’


नागरिकता संसोधन कानून के विरोध के नाम पर असम, प.बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत तमाम राज्य तो धधक ही रहे हैं, इस बीच दिल्ली में हिंसा का भयानक खेल खेलने का एक बड़ा षडयंत्र उजागर हुआ है। जामिया में हुई घटना के बाद दिल्ली पुलिस इस उलझन में थी कि गुरुवार को प्रदर्शनकारियों को किस रूट या जगह पर और कितनी देर के लिए प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए।


पुलिस का अपना इंटेलिजेंस नेटवर्क अन्य दिनों की भांति सामान्य इनपुट जुटाने में व्यस्त था। उनके पास ऐसी सूचना नहीं थी कि कोई बाहर से आकर दिल्ली को हिंसा की आग में धकेलने की साजिश रच रहा है।


इंटेलिजेंस के मास्टर कहे जाने वाले पूर्व आईबी चीफ एवं मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को इस बात की आहट लग चुकी थी कि बाहर के लोग नागरिकता कानून पर प्रदर्शन की आड़ में राजधानी दिल्ली को हिंसा की आग में धकेलने का प्लान तैयार कर रहे हैं।


वह तो बुधवार आधी रात को दोभाल ने मेवात (हरियाणा) के सैकड़ों लोगों के दिल्ली में लाकर तांडव मचाने की कोशिशों को समय से पहले ही नाकाम कर दिया, वरना आज की दिल्ली शायद ही बुधवार जैसी होती।