सरोगेसी नियमन विधेयक : विभिन्न दलों के सदस्यों ने कई प्रावधानों पर जतायी असहमति
विभिन्न दलों के सदस्यों ने प्रस्तावित कानून को मजबूती देने के मकसद से सरोगेसी के लिए इच्छुक दंपती की पांच साल के वैवाहिक जीवन की शर्त की अवधि को कम करने और ‘‘निकट रिश्तेदार’’ वाले प्रावधान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का सुझाव दिया।
नयी दिल्ली, किराए की कोख (सरोगेसी) की समूची प्रक्रिया के नियमन के मकसद से लाये गये एक महत्वपूर्ण विधेयक पर राज्यसभा में मंगलवार को सरकार के लिए उस समय असहज स्थिति बन गयी जब विभिन्न दलों के साथ स्वयं सत्तारूढ़ दल के एक वरिष्ठ सदस्य ने इसके कई प्रावधानों की खामियों की खुलकर चर्चा की। विभिन्न दलों के सदस्यों ने प्रस्तावित कानून को मजबूती देने के मकसद से सरोगेसी के लिए इच्छुक दंपती की पांच साल के वैवाहिक जीवन की शर्त की अवधि को कम करने और ‘‘निकट रिश्तेदार’’ वाले प्रावधान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का सुझाव दिया।
उच्च सदन में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक पर चर्चा के दौरान अधिकतर दलों के सदस्यों का मानना था कि इस विधेयक में सरकार को संसद की संबंधित स्थायी समिति की महत्वपूर्ण सिफारिशों को शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस विधेयक में समिति की महत्वपूर्ण सिफारिशों को लगभग छोड़ दिया। विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा के सुरेश प्रभु ने भले ही विधेयक का समर्थन किया किंतु इसकी कई खामियों की भी खुलकर चर्चा की। बाद में अधिकतर दलों के सदस्यों ने सुरेश प्रभु द्वारा उठाये गये मुद्दों का हवाला देते हुए सरकार से इस विधेयक में समुचित संशोधन करने को कहा।
प्रभु ने कहा कि इस विधेयक में प्रावधान रखा गया है कि केवल भारतीय नागरिक या अनिवासी भारतीय दंपती ही सरोगेसी के जरिये बच्चे हासिल कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि भारत में यदि कोई विदेशी दंपती रहता है तो उसे भी किसी कारण से इसकी आवश्यकता पड़ सकती है। ऐसे लोगों को इससे वंचित नहीं करना चाहिए। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि इस विधेयक में केवल नजदीकी रिश्तेदार को सरोगेट माता बनाने का प्रावधान रखा गया है। उन्होंने कहा कि नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा को स्पष्ट किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें भ्रम रहने से कई कठिनाइयां आएंगी।
उन्होंने कहा कि विधेयक में प्रावधान है कि केवल ऐसे ही दंपती सरोगेट प्रक्रिया से बच्चा हासिल कर सकेंगे जिनके विवाह को पांच साल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में पांच साल की शर्त व्यावहारिक नहीं है और इसे घटाकर एक साल करना चाहिए।
चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के एमवी राजीव गौड़ा ने कहा कि इस विधेयक के कई अव्यावहारिक पक्ष हैं और यह लाल फीताशाही से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रजनन में प्रामाणिक अक्षमता का प्रावधान समुचित नहीं है। उन्होंने कहा कि दुर्घटना, गर्भपात आदि कई कारणों से दंपत्ती संतानोत्तपति में अक्षम हो सकता है।
गौड़ा ने ये भी कहा कि किराये की कोख देने वाली मां को समुचित मुआवजा देना चाहिए क्योंकि यदि वह कामकाजी हुई तो नौ माह तक वह आय अर्जन भी नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि आजकल समाज में परिवारों का आकार छोटा होता जा रहा है, ऐसे में विधेयक में रखी गयी नजदीकी रिश्तेदार की शर्त अव्यावहारिक है।
कांग्रेस नेता का कहना है कि आज समाज में अविवाहित, सिंगल अभिभावक, विधुर या विधवा भी बच्चे पालते हैं। ऐसे में सरोगेसी के लिए वैवाहिक दंपती का प्रावधान रखने से समाज के कई वर्गों के साथ न्याय नहीं होगा।
विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि इस संबंध में संसद की स्थायी समिति ने जो रिपोर्ट दी थी, उसकी किसी भी महत्वपूर्ण सिफारिश को सरकार ने शामिल नहीं किया। उन्होंने कहा कि विधेयक में यह प्रावधान होना चाहिए कि किराये की कोख देने वाली महिला को समुचित मुआवजा प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि इसके लिए अल्ट्रुइस्ट (निस्वार्थ) सरोगेसी के बजाय कम्पनसेटरी (मुआवजे वाली) सरोगेसी का प्रावधान रखना चाहिए।
यादव ने भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों (ओसीआई) और भारतीय मूल के लोगों (पीआईओ) को भी यह सुविधा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय मूल के बहुत सारे लोग चाहते हैं कि उनको भारतीय बच्चे ही मिलें।
बीजद के अमर पटनायक ने इस विधेयक में कई खामियां होने का दावा करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि सरोगेसी को गोद लेने के समान नहीं माना जा सकता है। यह दोनों अलग अलग प्रक्रियाएं हैं और इनके लिए अलग अलग कानून भी होने चाहिए।
जदयू की कहकशां परवीन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि सरोगेसी से बच्चा प्राप्त करने वाले दंपती के लिए पांच साल के वैवाहिक जीवन की शर्त को घटाकर एक साल किया जाना चाहिए। चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के अधीर रंजन विश्वास, अन्नाद्रमुक के ए नवनीतकृष्णन, माकपा के के सोमप्रसाद और द्रमुक के पी विल्सन ने विधेयक के प्रावधानों में विभिन्न खामियों को उजागर करते हुए इनमें सुधार के लिए विभिन्न सुझाव दिये।
इससे पहले विधेयक को चर्चा के लिए पेश करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य देश में व्यावसायिक मकसद से जुड़े किराये की कोख के चलन (सरोगेसी) पर रोक लगाने, सरोगेसी पद्धति का दुरुपयोग रोकने और नि:संतान दंपतियों को संतान का सुख सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही हर्षवर्धन ने ये भी कहा कि न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, जापान, फिलीपीन, स्पेन, स्विट्जरलैंड और जर्मनी समेत अनेक देशों में व्यावसायिक सरोगेसी अवैध है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन, अमेरिका के कैलीफोर्निया प्रांत आदि में ही यह वैध है।
विधेयक के तहत राष्ट्रीय स्तर पर एक सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड के गठन का प्रस्ताव है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत विभिन्न देशों के दंपतियों के लिये किराये की कोख के केंद्र के रूप में उभर कर आया है । अनैतिक व्यवहार, सरोगेट माताओं के शोषण, सरोगेसी से उत्पन्न बालकों के परित्याग और मानव भ्रूणों आदि की घटनाएं हुई हैं । पिछले कुछ वर्षो में विभिन्न प्रिंट और इलेक्ट्रानिक संचार माध्यमों में भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी की व्यापक भर्त्सना हुई है ।
भारत के विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में उपयुक्त विधान के माध्यम से वाणिज्यिक सरोगेसी का निषेध करने की सिफारिश की है। सरोगेट माता आशय वाले दंपति की निकट की नातेदार होनी चाहिए और वह पहले से विवाहित होनी चाहिए जिसका स्वयं का बालक हो। राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा अधूरी रही।