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[सर्वाइवर सीरीज़] ईंट भट्ठे में काम करने से लेकर मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करने तक, मेरी कहानी...

इस हफ्ते की सर्वाइवर सीरीज़ की कहानी में, खेमलाल खटर्जी इस बारे में बात कर रहे हैं कि कैसे वह एक भट्ठे में पैदा होने से लेकर दूसरे सर्वाइवर लोगों का पुनर्वास करने लगे।

[सर्वाइवर सीरीज़] ईंट भट्ठे में काम करने से लेकर मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करने तक, मेरी कहानी...

Thursday June 10, 2021 , 3 min Read

मेरा नाम खेमलाल खटर्जी है। मेरी उम्र 28 साल है और मैं छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। मैं बचपन से ही ईंट भट्ठों में और उसके आसपास रहा हूं। दरअसल, मेरा जन्म एक ईंट भट्टे में हुआ था, जहां मेरे माता-पिता काम करते थे। वे उस समय मेरठ में काम कर रहे थे और छत्तीसगढ़ वापस जाने वाले थे लेकिन मैं उनके घर जाने से पहले ही पैदा हो गया।


अपने जीवन के शुरुआती दिनों से ही मुझे याद है कि मजदूर ठेकेदार मेरे माता-पिता को ईंट भट्ठों में काम करने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में ले जाते थे और मैं उनके साथ जाता था। वे मुझे पीछे नहीं छोड़ सकते थे क्योंकि मैं बहुत छोटा था और मैं उनके बिना नहीं रहना चाहता था।


जब तक वे काम करते थे, मैं साइट पर प्रतीक्षा करता था। बहुत बार, दिन भर की मेहनत के बाद उन्हें जो पैसा दिया जाता था, वह मुश्किल से हमारे लिए पर्याप्त होता था। कुछ ही समय बाद मुझे भी भट्ठों में काम पर लगाया गया।


इन स्थानों पर बाल मजदूरों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था। मुझे पीटा गया, गाली दी गई, थप्पड़ मारा गया, अतिरिक्त काम करने के लिए कहा गया और कोई पैसा नहीं मिला। एक बार सज़ा के तौर पर ठेकेदार ने एक बड़ा चम्मच लिया, उसे आग से गर्म किया और मेरे गाल पर दबा दिया।


मुझसे प्रतिदिन लगभग 15 से 18 घंटे काम कराया जाता था और मैं कुपोषित और थका हुआ था।

खेमलाल खटर्जी का जन्म एक ईंट भट्ठे में हुआ था और 13 साल की उम्र में उनके माता-पिता के साथ उन्हें बचाया गया था। (फोटो साभार: Shutterstock)

खेमलाल खटर्जी का जन्म एक ईंट भट्ठे में हुआ था और 13 साल की उम्र में उनके माता-पिता के साथ उन्हें बचाया गया था। (फोटो साभार: Shutterstock)

शिक्षा की कोई आशा नहीं थी, और किसी ने मेरी मदद नहीं की। जब मेरे माता-पिता ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो उन्हें भी धमकी दी गई। हम सभी को एक छोटे से कमरे में रखा गया था। वह इतना छोटा था कि मेरा सिर छत से टकरा जाता था।


13 साल की उम्र में मुझे एक स्थानीय एनजीओ ने ईंट भट्ठे से छुड़ाया था। अब कुछ साल हो गए हैं और मैं बेहतर जगह पर हूं। मैंने हाल ही में अपनी शिक्षा पूरी की है, और अब मेरे पास कलिंग विश्वविद्यालय से सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री है। मैं अपने परिवार के साथ रहता हूं - मेरी पत्नी और बच्चे, मेरे माता-पिता, मेरे भाई, उनकी पत्नी और बच्चे।


पिछले साल, मैंने श्रम तस्करी से बचे कुछ अन्य लोगों के साथ एक सर्वाइवर कलेक्टिव शुरू किया।


प्रारंभ में, हम एक और सर्वाइवर कलेक्टिव का हिस्सा थे, लेकिन हम उससे अलग हो गए जब हमें एहसास हुआ कि वे हमें लीड करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। इसलिए, हमने अपना स्वयं का SAANS (श्रमिक अधिकार और न्याय संगठन) शुरू किया। हमारा प्रयास है कि हम एक टीम शुरू करें जो हमारे अनुभव का लाभ उठाकर तस्करी को रोकने में मदद कर सके - इस लड़ाई में अग्रणी बनने में हमारी मदद कर सके।


SAANS इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग का एक हिस्सा है, जो एक व्यापक एंटी-ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्स बिल के लिए सरकार की वकालत कर रहा है। यह हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तस्करी से संबंधित बहुत सारे अस्पष्ट कानून हैं, और बहुत सी कमियां हैं, जिनका शोषण किया जा रहा है।


पिछले साल, जब लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, मैं पठानकोट (पंजाब) में एक ईंट भट्टे में फंसे 12 श्रमिकों की मदद करने में कामयाब रहा। मैंने उन्हें समन्वय और निरंतर संचार प्रदान करके, सूचनात्मक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करके घर लौटने में मदद की।


अभी के लिए, मेरा मंत्र है, 'जब हम बेहतर जानते हैं, तो हमें बेहतर करने की आवश्यकता होती है'। इसलिए SAANS मेरे लिए महत्वपूर्ण है।


अंग्रेजी से अनुवाद : रविकांत पारीक