आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन से कम हो सकती है सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे के एक नए शोध में यह कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले 50 सालों में देश में सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता कम हो सकती है.
भारत में आज के समय में पवन ऊर्जा का विस्तार कुछ चुनिन्दा जगहों पर ही हो रहा है. इसके कई कारण हैं. अव्वल तो पवन चक्की के हिसाब से हवा कुछ ही राज्यों में है और दूसरे उसमें भी व्यवसायिक लाभ-हानि का चक्कर है. सरकारी आंकड़ें कहते हैं कि देश में कुल स्थापित पवन ऊर्जा में से 95 प्रतिशत देश के केवल आठ राज्यों में स्थित है– आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु. लेकिन अगर सौर ऊर्जा की बात करें तो इसका विस्तार देश के आधिकांश राज्यों में हो रहा है.
इस विस्तार के पीछे प्राकृतिक वजहें भी हैं जैसे हवा की गति, सूरज की रोशनी के अमुक जगह पर आना या न आना. लेकिन इस नए शोध में बताया गया है कि आने वाले समय में हवा और धूप का पैटर्न बदल सकता है. इसके अनुसार कई जगहों पर पवन की तीव्रता आने वाली दिनों में बढ़ सकती है. वहीं बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां अभी पवन या सौर ऊर्जा का अच्छा विस्तार हो रहा है पर वहां आने वाली दिनों में वातावरण से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. वहां हवा की गति कम हो सकती है.
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के हाल में हुए शोध में यह बात सामने आई है कि आने वाले अगले 50 सालों में देश के बहुत से हिस्सों में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के लिए लगे संयंत्र को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इस अध्ययन में कहा गया है कि देश के अधिकांश हिस्सों में आने वाले 50 सालों में सूरज के किरणों की तीव्रता कम हो सकती है. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि तटीय इलाकों में हवा की गति में तेजी आ सकती है. जमीनी क्षेत्र में हवा की गति के कम होने की आशंका भी है. यह बात मॉनसून के अतिरिक्त वाले मौसमों के लिए कही गयी है.
यह शोध जलवायु मॉडल के कुछ ऐसे मानकों पर आधारित है जिसका उपयोग इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अध्ययन रिपोर्ट में किया गया है. इन मानकों के आंकलन से आईआईटीएम के शोधकर्ताओं ने आने वाले 50 सालों में सूरज की किरणों की तीव्रता और पवन ऊर्जा के गति में होने वाले संभावित बदलाव का एक आंकलन पेश किया है.
शोधकर्ताओं ने पिछले 55 सालों के आंकड़ों और अगले 55 साल के संभावित आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगाया है. “यह अध्ययन आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को बताता है. इसका इस्तेमाल नीति निर्माता ऐसी नीति बनाने के लिए कर सकते हैं जिससे इस चुनौती से बेहतर तरीके से निपटा जा सके. ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है जिससे कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके. इसके साथ ही सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को अपने तकनीक में सुधार करने की जरूरत है. ऐसे संयंत्र बनाने की जरूरत है जो ऐसे प्रतिकूल स्थिति में भी करगार सिद्ध हो,” पार्थसार्थी मुखोपाध्याय कहते हैं. मुखोपाध्याय इस अध्ययन के सह-लेखक और आईआईटीएम, पुणे में एक मौसम वैज्ञानिक हैं.
इस अध्ययन में कहा गया है कि आने वाली दिनों में ओडिशा के दक्षिण तटीय इलाकों के साथ दक्षिणी राज्य जैसे आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हवा की गति बढ़ने के आसार हैं. पर वर्तमान में ओडिशा और जम्मू कश्मीर में पवन ऊर्जा का विकास नहीं के बराबर हुआ है. यह अध्ययन न सिर्फ ओडिशा में एक अच्छे पवन ऊर्जा की क्षमता की बात करता है बल्कि यह भी बताता है कि जम्मू और कश्मीर में आने वाले दिनों में धीमी बहने वाली हवाओं की आवृति बढ़ेगी.
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (एनआईडबल्यूई), चेन्नई की एक मूल्यांकन अध्ययन में कहा गया है कि ओडिशा, जम्मू कश्मीर जैसे कुछ हिस्सों में अगर 120 मीटर की ऊंचाई पर पवन ऊर्जा की अच्छी संभावना है. हालांकि आईआईटीएम के इस अध्ययन में आने वाले दिनों में एक अलग संभावना की ओर इशारा किया गया है.
आईआईटीएम के इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत के दक्षिणी और उत्तरपश्चिमी राज्यों में ठंड और मॉनसून के समय में हवा की गति में तेजी आ सकती है. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बात जब सौर ऊर्जा की आती है तो मध्य भारत, दक्षिण मध्य भारत, अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं. क्योंकि मॉनसून से पहले के समय में इस इलाके में सूर्य की रोशनी में कमी होने का अनुमान सबसे कम है.
अगर बात वार्षिक सूर्य की किरणों की की जाये तो इसका सबसे ज्यादा असर हिमालय के निचले इलाकों और मध्य भारत में हो सकता है. हालांकि अगले कुछ दशकों में सूरज की किरणों की तीव्रता में कमी होने की आशंका जताई गयी है पर मध्य और दक्षिण मध्य भारत में 2040-2070 के बीच रोशनी की तीव्रता बढ़ने का भी अनुमान लगाया गया है.
हवा की गति के बारे में इस अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर भारत में आने वाले कुछ दशकों में इसके घटने के आसार हैं. वही दक्षिण भारत में इसके बढ़ने का अनुमान लगाया गया है. इस शोध में सौर और पवन ऊर्जा के अच्छे तकनीक के विकास और इसमें विकसित शोध और निवेश की वकालत भी की गई है ताकि भविष्य की चुनौतियों से निपटने में आसानी हो.
आईआईटीएम के पार्थसार्थी कहते हैं कि सरकार को जलवायु परिवर्तन से स्वच्छ ऊर्जा पर होने वाले असर के आंकड़ों पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि वास्तविक स्थिति का पता चल सके. इससे भविष्य के लिए सही नीति बनाना आसान हो जाएगा. यह अध्ययन इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत दूसरे कई देशों की तरह जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से प्रभावित है. भारत में अधिकतर सौर और पवन ऊर्जा निजी क्षेत्र में है. यह अध्ययन उस समय आया है जब भारत ने विश्व के सामने 2070 तक उत्सर्जन मुक्त होने का लक्ष्य रखा है.
जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा
ऊर्जा क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु और मौसम का सौर ऊर्जा ओर पवन ऊर्जा की सफलता में बहुत बड़ा योगदान होता है और इसमे कुछ बदलाव होने से स्वच्छ ऊर्जा के ये स्रोत भी प्रभावित हो सकते हैं.
दीपक कृष्णन, वर्ल्ड रिसौर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया के एसोशिएट डाइरेक्टर (ऊर्जा) कहते हैं कि देश में पवन ऊर्जा की अधिकतर इकाईयां ऐसी जगहों पर है जहां उन्हे उचित वातावरण मिलता है. उनका कहना है कि सही भौगोलिक जगह इन सयंत्रों के व्यवसायिक क्षमता को भी प्रभावित करती है. कृष्णन कहते हैं कि अभी के समय में देश में सबसे ज्यादा पवन ऊर्जा के सयंत्र केरल के पालघाट के पास, तमिलनाडु के कन्याकुमारी क्षेत्र और गुजरात में है. यह सभी भारत के दक्षिण या पश्चिम तट पर स्थित हैं.
“जब कोई भी पवन ऊर्जा पर निवेश करना चाहता है तो वह इस बात पर विशेष ध्यान देता है कि उस जगह पर हवा की गति कितनी तेज है. अनुकूल भौगोलिक स्थिति के बाद निवेशकों का ध्यान इस बात पर भी जाता है कि उस जगह की सरकारी नीतियां और टैरिफ कितना आकर्षक है. आस पास के क्षेत्र में उद्योग का विकास कितना हुआ है. अनुकूल मौसम और जलवायु, पवन ऊर्जा के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होते है,” कृष्णन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
सप्तक घोष सेंटर फॉर स्टडी ऑन साइन्स, टेक्नालजी एण्ड पॉलिसी (सीएसटीईपी) में वरिष्ठ नीति विशेषज्ञ हैं. उन्होने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून, गर्मी और ठंड में भारी बदलाव देखने को मिल सकता है जोकि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की क्षमता को सीधे तौर से प्रभावित कर सकता है.
“जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून, गर्मी और ठंड की तीव्रता प्रभावित हो सकती है. इसका मतलब है कि कुछ क्षेत्रों में आने वाले दिनों में सूर्य की किरणें अधिक हो सकती हैं और कहीं कम. उसी तरह पवन ऊर्जा पर भी मौसमी बदलावों का असर दिख सकता है. अतः अगर भविष्य में नवीन ऊर्जा के उत्पादन में होने वाले बदलाव का आंकलन नहीं किया गया तो ग्रिड का संचालन जटिल हो सकता है. आईआईटीएम के अध्ययन के माध्यम से हम यह देख सकते हैं कि नवीन ऊर्जा पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कैसे कम कर सकते हैं,” घोष ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
पिछले कुछ वर्षों में बहुत से शोधों में यह बात सामने आई है कि आने जलवायु परिवर्तन से भारत और पूरे विश्व में कई नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा. 2018 में हिन्द महासागर पर किए गए एक शोध में 1980 से 2016 तक इस महासागर में पानी के गर्म होने और इसके प्रभावों का अध्ययन किया गया था. इससे पता चला कि हिन्द महासागर के गर्म होने के कारण मॉनसून की हवा का संचार कमजोर हुआ है और हवा की गति भी कम हुई है.
आईपीसीसी के इसी साल प्रकाशित होने वाले मूल्यांकन रिपोर्ट 6 में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर एशिया के कई देशों में देखा जा सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में बढ़ोतरी दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के देशों में देखने को मिलेगा. हिमालय के ग्लैसियर के पिघलने के आसार हैं और गंगा नदी घाटी में बह रह नदियों में पानी के कम होने का अनुमान लगाया गया है.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: ओडिशा के गंजम जिले में स्तिथ रामयपट्नम गांव जहां समुद्री अपरदन का प्रभाव देखा जा सकता है. तस्वीर - मनीष कुमार/मोंगाबे