दिल्ली में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ‘सामूहिक सौर पैनल’ के प्रोत्साहन पर ज़ोर
दिल्ली सरकार ने साल 2022 की अपनी हालिया ड्राफ्ट सोलर पॉलिसी में प्रस्ताव रखा था कि जिन लोगों के पास सोलर लगवाने का विकल्प या उसके लिए जगह नहीं है उनके लिए सामुदायिक सोलर योजना अपनाई जाए. दिल्ली की साल 2016 की नीति में साल 2020 तक छतों पर सोलर से 1000 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा गया था.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने साल 2016 में आई अपनी आखिरी सोलर नीति में ऐलान किया था कि साल 2020 के अंत तक रूफटॉप सेटअप यानी लोगों के घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाकर 1000 मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से पैदा की जाएगी. हालांकि, दिल्ली सरकार के मुताबिक, छतों पर सौर ऊर्जा से अभी तक 230 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है. यह उस लक्ष्य के 25 प्रतिशत से भी कम है जिसे 3 साल पहले हासिल कर लिया जाना चाहिए था. ग्राहकों और कंपनियों को इन्सेन्टिव दिए जाने और 500 वर्ग मीटर की छत वाली सरकारी इमारतों पर सोलर पैनल लगाना अनिवार्य किए जाने के बावजूद इतना ही लक्ष्य हासिल किया जा सका है.
अभी 2016 की नीति का 1000 मेगावाट का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है लेकिन दिल्ली सरकार अपनी नई ड्राफ्ट सोलर पॉलिसी 2022 ले आई है. इस नीति के तहत छतों पर लगाए जाने वाले सोलर में बढ़ोतरी की जानी है. इस पॉलिसी का लक्ष्य है कि छतों पर लगे सोलर की क्षमता को बढ़ाकर 750 मेगावाट तक पहुंचाना है और दिल्ली के बाहर के यूटिलिटी स्केल सोलर प्रोजेक्ट के तहत 5,250 मेगावाट क्षमता जोड़ी जानी है और इस तरह अगले 3 सालों में यानी 2025-26 तक सौर ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 6,000 मेगावाट तक पहुंचाना है. यह नीति कहती है कि फिलहाल दिल्ली में वार्षिक ऊर्जा जरूरतों का सिर्फ 9 प्रतिशत हिस्सा छतों पर लगाए गए सोलर और यूटिलिटी स्केलर सोलर से मिलता है. नई नीति की योजना है कि 2025 के अंत तक इस वार्षिक ऊर्जा खपत में इस हिस्सेदारी को बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक पहुंचाया जाए. इस नीति का लक्ष्य है कि 2025 के आखिर तक कोयले से बानी बिजली यानी थर्मल एनर्जी से ज्यादा सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी हो जाए.
सरकार सामुदायिक सोलर रूफटॉप की अवधारणा भी लाई है जिसमें वो लोग, जो फ्लैट या अपार्टमेंट में रहते हैं या जिनकी छत छोटी है, साथ आकर किसी एक जगह पर सोलर पैनल लगवा सकते हैं और अपने-अपने निवेश के हिसाब से सौर ऊर्जा का फायदा ले सकते हैं. यह सबकुछ ग्रुप नेट-मीटरिंग या वर्चुअल मीटरिंग की मदद से संभव किया जा सकता है.
सरकार का दावा है कि इस नीति के तहत घरेलू ग्राहकों को सहायता भी दी जा रही है ताकि रूफटॉप सोलर लगाने के लिए आने वाले बड़े खर्च से बचा जा सके. इसके लिए, ग्राहकों को रीन्यूएबल एनर्जी सर्विस कंपनी (RESCO) मॉडल से मदद दी जाती है. इस मॉडल में सोलर प्लांट कोई कंपनी लगाती है और ग्राहकों के घर या अन्य जगहों पर सोलर प्लांट लगाने का खर्च वही उठाती है, इसके बदले वह तय पैसे लेती है. अब इस नीति में RESCO मॉडल का हाइब्रिड वर्जन प्रस्तावित है. इसमें सोलर डेवलपर्स और डिस्कॉम के बीच पॉवर परचेज एग्रीमेंट (PPA) या विद्युत क्रय अनुबंध किया जाएगा और ग्राहक और डिस्कॉम के बीच नेट-मीटरिंग एग्रीमेंट किया जाएगा.
इस नीति के तहत, दिल्ली सरकार यह दावा भी करती है कि वह निजी और व्यावसायिक ग्राहकों के लिए 500 मेगावाट तक के पहले डेप्लॉयमेंट के लिए जेनरेशन-बेस्ड इन्सेंटिव दे रही है. इसके अलावा, घरेलू ग्राहकों को मदद भी दी जा रही है. इस नीति के तहत, बिना किसी खर्च के अपनी छत पर सोलर लगवाने का असेसमेंट कराया जा सकता है. इसमें, ग्राहक एक सोलर कार्ड रिपोर्ट/सोलर स्कोर बनवा सकता है जो किसी घर की छत या अन्य जगह पर सोलर रूफटॉप की संभावना के बारे में बताता है.
रूफटॉप सोलर में बढ़ोतरी की उम्मीद
इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि नई ड्राफ्ट पॉलिसी 2022 में कुछ बातें ऐसी हैं जो इस सेक्टर को प्रेरणा देंगी. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) में रीन्यूएबल एनर्जी के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर बिनीत दास ने मोंगाबे-इंडिया से कहा कि दिल्ली के सामने सोलर रूफटॉप लगाने के लिए कुछ समस्याएं हैं, जैसे घरेलू ग्राहकों को इसके लगवाने के लिए ज्यादा खर्च, रूफटॉप सोलर लगाने के लिए मिलने वाली सब्सिडी का देरी से मिलना और शहर में सोलर लगवाने वाले ग्राहकों की संख्या बढ़ने से डिस्कॉम कंपनियों की आमदनी में कमी आना. वह कहते हैं कि राजधानी दिल्ली में कमर्शियल और इंडस्ट्रियल जगहों पर लोगों ने ज्यादा बिजली की मांग को पूरी करने के लिए सोलर प्लांट लगवाए हैं ताकि बिजली का बिल कम किया जा सके.
बिनीत दास ने मोंगाबे इंडिया से कहा, “नई पॉलिसी में ‘हाइब्रिड RESCO मॉडल’ जैसे कुछ समाधान भी हैं जिसमें सोलर डेवलपर्स (RESCO) ग्राहकों के घरों की छतों पर सोलर रूफटॉप लगाते हैं और डिस्कॉम कंपनियों से संपर्क रखते हैं. इसमें सीधे ग्राहकों को बिजली देने के बजाय ये सोलर डेवलपर एक PPA के जरिए डिस्कॉम कंपनियों को बिजली बेचते हैं. ग्राहक इसके बदले बिजली कंपनियों को पैसे चुकाते हैं और अपने बिजली पर उन्हें मीटरिंग बेनिफिट मिलते हैं. इसमें डेवलपर के चुनाव और बिजली का रेट तय करने का काम पूरी तरह से डिस्कॉम कंपनियों का होता है. इससे डिस्कॉम कंपनियों और ग्राहकों दोनों को फायदा होगा.”
उन्होंने यह भी कहा कि नई नीति के तहत घरेलू ग्राहकों को जेनरेशन बेस्ड इन्सेन्टिव या बिजली उत्पादन के आधार पर दिए जाने वाले इनाम का प्रस्ताव एक बार मिलने वाली सब्सिडी की तुलना में सरकार के लिए काफी सस्ता और प्रभावी है.
साल 2016 में आई पिछली नीति की में पैदा की जाने वाली बिजली के लिए जेनरेशन-बेस्ड इन्सेन्टिव 2 रुपये प्रति यूनिट था. नई नीति में इसे बढ़ाकर अधिकतम 3 किलोवाट क्षमता वाले सोलर रूफटॉप प्लांट लगाने वाले लोगों के लिए 3 रुपये प्रति यूनिट कर दिया है. यह इन्सेन्टिव ग्राहकों के घर पर सोलर प्लांट से पैदा हुई बिजली के आधार पर दिया जाता है. बिनीत दास आगे कहते हैं, “सोलर प्लांट लगाना और उससे बिजली पैदा काफी कठिन काम है. कई बार तो रख-रखाव खराब होने की वजह से कई सोलर प्लांट बिजली पैदा नहीं कर पाते हैं लेकिन अगर उनके लिए हर यूनिट के हिसाब से सब्सिडी दी जाए तो सोलर प्लांट लगाने वाले लोगों को इसका रख-रखाव बेहतर करने और ज्यादा बिजली पैदा करने में प्रोत्साहन मिलेगा और इससे दिल्ली में सोलर प्लांट्स से बिजली का उत्पादन बढ़ेगा.”
इन इन्सेन्टिव के अलावा, यह नीति सौर ऊर्जा पर टैक्स और शुल्क में छूट दिए जाने पर भी चर्चा की गई है.
अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के लिए ‘सामुदायिक सोलर’ काफी हद तक नया है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की तरह ही भारत के ज्यादातर राज्य ऐसे हैं जहां शहरी इलाकों में जनसंख्या काफी ज्यादा है और वहां बिजली की मांग भी बहुत ज्यादा है. आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में राष्ट्रीय औसत की तुलना में प्रति व्यक्ति बिजली की मांग ज्यादा है.
सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (CEED) में क्लीन एनर्जी के हेड अश्विनी अशोक ने मोंगाबे इंडिया से कहा कि कम्युनिटी सोलर रूफटॉप योजना कई ऐसे लोगों की बिजली की जरूरतों को पूरा कर सकती है जो निजी जगहों की कमी की वजह से सोलर रूफटॉप लगा नहीं सकते या अभी तक वे सोलर नहीं लगवा पाए हैं. इस तरह के ग्राहकों में अपार्टमेंट या प्लैट में रहने वाले लोग, कई मंजिला इमारतों में रहने वाले लोग या छोटी जगहों में बिना पक्की छतों वाले घरों या झुग्गियों में रहने वाले लोग शामिल हैं. अशोक कहते हैं कि अगर इस पॉलिसी को अच्छे से लागू किया जाए तो इससे दिल्ली में रूफटॉप सोलर से बिजली का कुल उत्पादन काफी बढ़ाया जा सकता है.
अशोक इस नई नीति को लागू करने में आने वाली चुनौतियों के बारे में भी चर्चा करते हैं. वह कहते हैं, “दिल्ली में सौर ऊर्जा को हमेशा से सरकार की 100 यूनिट हर महीने मुफ्त बिजली योजना से कड़ी चुनौती मिलती है. ऐसी बिजली का फायदा उठा रहे ग्राहक मुश्किल से ही तैयार होते हैं कि वे सोलर प्लांट लगाने का इतना भारी भरकम खर्च उठा सकते हैं. इस नीति के तहत राजधानी दिल्ली की सरकार काफी आकर्षक इन्सेन्टिव भी नहीं देती है. इसके अलावा, छोटे घरों के लिए मिलने वाला जेनरेशन बेस्ड इन्सेन्टिव भी काफी मामूली है और वह सिर्फ पांच सालों के लिए सीमित है जबकि ऐसे सोलर प्लांट से 25 सालों तक बिजली पैदा की जा सकेगी. ज्यादातर लोग तो इस सब्सिडी के लिए योग्य ही नहीं माने जाएंगे. अगर हम दिल्ली में रूफटॉप सोलर को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें इन्सेन्टिव को बढ़ाना होगा और लागत पर भी छूट देनी होगी क्योंकि ग्राहक वही चाहते हैं.”
उन्होंने यह भी कहा कि 2016 की नीति में कागजों पर दर्ज होने के बावजूद RESCO मॉडल घरेलू ग्राहकों को लुभाने में नाकामयाब रहा है क्योंकि सोलर डेवलपर्स को छोटे यूनिट्स के लिए यह मॉडल वित्तीय रूप से ठीक नहीं लगता है. यह मॉडल औद्योगिक क्षेत्र और सामाजिक क्षेत्र में क्लीन एनर्जी प्रोजेक्ट जैसे कि केंद्र सरकार की सोलर-सिंचाई योजना PM-KUSUM तक ही सीमित रहा है.
कम जगह और बड़े स्तर के सोलर प्रोजेक्ट्स के अभाव में दिल्ली अब सौर उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर रूफटॉप योजना पर फोकस कर रही है. साल 2022 की ड्राफ्ट पॉलिसी के मुताबिक, ज़्यादातर बड़े सोलर प्रोजेक्ट (5250 मेगावाट तक) दिल्ली से बाहर लगने वाले प्रोजेक्ट की मदद से चालू किए जाएंगे. इसका मतलब है कि सोलर प्लांट की मदद से पैदा की गई बिजली दूसरे राज्यों से आयात की जा सकेगी, ठीक उसी तरह जैसे पिछले कई सालों से दिल्ली में बिजली दूसरे राज्यों से आ रही है.
दिल्ली का एनर्जी ट्रांजिशन
हाल ही में फ़िनलैंड की लाप्पिनरांटा-लाहटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी (LUT) यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दिल्ली में बिजली के ट्रांजिशन पर एक रिसर्च की है. इस रिसर्च में पता चला है कि अगर दिल्ली में साल 2050 तक पॉलिसी अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करे और 100 प्रतिशत ट्रांजिशन का इस्तेमाल करे तो दिल्ली सबसे ज्यादा बिजली सौर ऊर्जा से मिलने वाली बिजली से लेगी और इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा उन लोगों का होगा जो खुद बिजली बनाकर उसका इस्तेमाल कर रहे होंगे. इसके अलावा, कुछ बिजली राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे अक्षय ऊर्जा के धनी राज्यों से भी मिलेगी.
इस स्टडी के सह-लेखक मनीष राम ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि दिल्ली में जगह की कमी के चलते, बड़ी क्षमता वाले सोलर प्लांट नहीं बनाए जा सकते और इसीलिए सोलर रूफटॉप और इसके ग्राहकों में बढ़ोतरी आने की भरपूर संभावना है.
दिल्ली सरकार की 2016 की नीति के मुताबिक, दिल्ली में सूरज की अच्छी रोशनी वाले दिन 300 से ज्यादा होते हैं. इससे घरों की छतों पर लगे सोलर पैनल से साल भर में 2500 मेगावाट से ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है. इसमें लोगों की घरों पर लगने वाले सोलर पैनल से 49 प्रतिशत, सरकारी दफ्तरों से 26 प्रतिशत और कमर्शियल और इंडस्ट्रियल यूनिट्स से 25 प्रतिशत बिजली पैदा की जा सकती है.
मनीष राम ने मोंगाबे इंडिया से बातचीत में कहा, “ऐसी स्थितियों में दिल्ली के लिए सबसे बेहतर विकल्प यही है कि वह घरेलू और व्यावसायिक इमारतों की छतों का भरपूर इस्तेमाल करे. अभी भी दिल्ली में ज्यादातर बिजली दूसरे राज्यों से ही आती है और भविष्य में भी यही जारी रहने की संभावना है. दिल्ली आने वाले समय में राजस्थान, हरियाणा और आसपास के इलाकों में सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए निवेश कर सकती है और उनके साथ PPA साइन करके ‘क्लीन एनर्जी मिक्स बास्केट’ को बढ़ा सकती है. राजस्थान जैसे रीन्यूएबल एनर्जी के मामले में धनी राज्यों में क्लीन एनर्जी पैदा करने का खर्च दिल्ली की तुलना में कम है. ऐसे इलाकों का दिल्ली फायदा उठा सकती है.”
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर:सोलर पैनल लगाने के लिए कर्मचारियों की पर्याप्त ट्रेनिंग से उसके टूटने का डर खत्म हो जाएगा और सोलर पैनल की लाइफ भी बढ़ जाएगी. तस्वीर - भास्कर देओल