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सांप से लेकर तेंदुए तक की जान बचा रहीं हैं कश्मीर की आलिया मीर

कश्मीर की आलिया मीर इंसानी आबादी के बीच वन्यजीवों के आ जाने पर उन्हें पकड़कर सुरक्षित जंगल में छोड़ती हैं. एक गणितज्ञ होने का बाद आलिया मीर ने वन्यजीव संरक्षण की चुनौती स्वीकार की है. आलिया शहरी इलाकों से सांप, भालू और तेंदुए जैसे कई जंगली जानवरों को सुरक्षित निकाल लेने में सक्षम हैं.

सांप से लेकर तेंदुए तक की जान बचा रहीं हैं कश्मीर की आलिया मीर

Wednesday August 31, 2022 , 7 min Read

पिछले साल दिसंबर में श्रीनगर की गलियों में एक तेंदुआ भटकता हुआ दिखा. इसका एक वीडियो भी सामने आया. तेंदुआ जंगल के बाड़े को पार कर बाग-ए-महताब इलाके में चला आया था. जिसने भी यह खबर सुनी वह दहशत से भर गया.

कुछ लोग डर के मारे अपने घरों में दुबक गए तो कुछ तेंदुए को ठिकाने लगाने की ठानकर उसके पीछे लाठी-डंडा लेकर दौड़े. नुकसान होना तय लग रहा था. या तो तेंदुआ कोई नुकसान पहुंचाता, आम लोगों पर हमले करता या फिर उसकी खुद की जान पर आफत आती.

ऐसे में तेंदुए को शहर से सुरक्षित निकालने का बीड़ा उठाया वाइल्डलाइफ एसओएस की टीम ने. टीम की बागडोर संभाली आलिया मीर ने. मीर की टीम ने कश्मीर के वन विभाग की मदद की और तेंदुए की जान बचाकर उसे जंगल में छोड़ा. कई घंटों की मशक्कत के बाद शहर ने चैन की सांस ली.

“बर्फबारी के बीच तेंदुए को पकड़ना एक मुश्किल चुनौती थी. काफी कोशिशों के बाद तेंदुए का पता चल पाया. इसके लिए हमने तेंदुए के पांव के निशान का पीछा किया,” मीर ने बीते साल का किस्सा याद करते हुए बताया.

“जब किसी बड़े और दमदार जानवर का बचाना होता है तो हमारी भी सांस अटकी रहती है. हमलोग भी पूरी सावधानी बरतते हैं,” उन्होंने अपने काम में पेश आने वाली कठिनाइयों का जिक्र किया.

“एकबार मैं एक जानवर को पकड़ने की कोशिश कर रही थी ताकि उसे सही-सलामत जंगल में छोड़ा जा सके. आसपास के लोगों को यकीन दिलाना मुश्किल था कि एक महिला होते हुए भी मैं यह काम कर सकती हूं. कैसे? वहां खड़े लोग ऐसा बार-बार कह रहे थे,” मीर ने एक किस्सा याद करते हुए बताया.

“मुझे याद है लोग कह रहे थे, मैडम आप साइड में आ जाओ. आपके लिए मुश्किल होगा. लेकिन जब काम खत्म हुआ तब लोगों को यकीन आया, मीर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.

शहरों के आसपास के माहौल में ढलने लगे हैं तेंदुए

श्रीनगर की सड़कों को तेंदुए का दिखना यूं तो आम बात नहीं है, लेकिन पिछले 15 वर्षों में इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं, कहते हैं राशिद नकश, जो कश्मीर के वाइल्डलाइफ वार्डेन हैं.

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में तेंदुए शहरी और कस्बाई इलाकों में रहना सीख गए हैं.

दूसरी तरफ जंगली जानवर के शहर में घुसने पर लोग इतने भयभीत हो जाते हैं कि जानवर की जान पर बन आती है. पिछले दिनों कश्मीर में भीड़ द्वारा जानवरों के मारे जाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. फरवरी में दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में लोगों ने मिलकर एक तेंदुए का मार दिया. गांव वालों का आरोप था कि तेंदुए ने गांव पर हमला किया था.

कश्मीर के विद्यार्थियों को संरक्षण के बारे में बताती आलिया मीर। तस्वीर- वाइल्डलाइफ एसओएस

कश्मीर के विद्यार्थियों को संरक्षण के बारे में बताती आलिया मीर. तस्वीर - वाइल्डलाइफ एसओएस

कश्मीर में बढ़ रहा इंसान और जानवर के बीच टकराव

मोंगाबे-हिन्दी ने कश्मीर के आधिकारिक आंकड़े खंगाले तो पता चला कि 2012 से लेकर 2020 तक 44 तेंदुए और 124 काले भालू मरे हैं. इनमें से कुछ मौतें इंसान और जानवर के टकरावों की वजह से हुईं.

पिछले 14 वर्षों (वर्ष 2006 से 2020) में कश्मीर में इंसान-जानवर के इस संघर्ष में कम से कम 242 लोगों की जानें गई हैं और 3,528 लोग घायल हुए हैं.

जानकार मानते हैं कि सर्दी में प्रकृति में शिकार की संख्या कम हो जाती है, इसलिए जानवर खाने और आसरे की तलाश में शहर का रुख करते हैं.

आलिया मीर ने जिस तेंदुए को बचाया उसके कारेवास के जंगल से आने का अनुमान है. यह जंगल बडगाम की तरफ पड़ता है.

“किसी वन्यजीव की जान बचाकर उसे वापस अपने घर में छोड़ना काफी सुकुन देने वाला काम है,” कहते हैं बिलाल अहमद जो साउथ एशियन वॉलेंटरी एसोसिएशन ऑफ एंवायरनमेंट (एसएवीएई) के संस्थापक हैं.

“अगर संरक्षणकर्ताओं ने तेंदुए को बचाया न होता तो लोग उसे मार ही डालते,” बिलाल अहमद का कहना है.

जीव-जंतुओं से लगाव खींच लाया संरक्षण के क्षेत्र में

मीर ने अबतक सांप, भालू, चिड़िया, तेंदुआ सहित दर्जनों प्रजाति के पशु-पक्षियों का बचाया है. उन्होंने महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला जैसे राजनेताओं के घरों से भी सांप को सुरक्षित निकाला है. उन्होंने एकबार पुराने चिनार के पेड़ पर बैठे घायल ऊल्लू को फायर ब्रिगेड की सीढ़ी की मदद से नीचे उतारा था.

मीर ने कुछ वर्ष पहले भालू के दो नन्हें बच्चों को बचाया था जो श्रीनगर बॉटेनिकल गार्डेन में अपनी मां से बिछड़ गए थे. मीर और उनकी टीम ने मां (भालू) की तलाश की और उसके बच्चों को उससे मिलाने की नाकाम कोशिश भी की.

तमात कोशिशों के बावजूद भालू नहीं मिला तो मीर ने पहले भालू के बच्चों की आवाज रिकॉर्ड की और जंगल में जोर-जोर से उसे बजाया. हर कोशिश के बाद नाकामी मिली तो बच्चों को दाचीगाम नेशनल पार्क में भेजा गया जहां दूध पिलाकर बच्चों को बड़ा किया गया.

श्रीनगर के वजीर बाग इलाके में रहने वाली मीर ने गणित से उच्च शिक्षा प्राप्त की है. जानवरों के प्रति उनके मन में हमेशा से अच्छी भावना रही, लेकिन पढ़ाई के दौरान अधिक मदद करने का मौका नहीं मिला. पढ़ाई खत्म होने के बाद श्रीनगर के एक स्कूल में उन्होंने पढ़ाना शुरू किया. मीर की शादी एक जानवरों के चिकित्सक के साथ हुई. इसके बाद संरक्षण की तरफ उनका रुझान बढ़ा.

“हम दोनों एक ही तरह की सोच रखते हैं. हमें लगता है कि लोगों को जागरूक कर जंगली जानवरों के प्रति उनकी सोच बदली जा सकती है,” मीर ने बताया.

“वाइल्डलाइफ एसओएस से जुड़ने के बाद मैंने संरक्षण के क्षेत्र में काम और तेज किया और इस तरह शौक ही मेरा काम बन गया. देखते-देखते इस बात को 13 वर्ष हो गए,” वह कहती हैं.

कश्मीर में वन्यजीव संरक्षण की स्थिति पर मीर कहती हैं कि यहां संरक्षण को लेकर वह काफी आशावान हैं. “मैं स्थिति को बहुत खराब नहीं कहूंगी, लेकिन इतना जरूर है कि जिस रफ्तार से चीजें ठीक होनी चाहिए, उतनी रफ्तार से हो नहीं रही,” उन्होंने कहा.

वह मानती हैं कि नई पीढ़ी के लोग संरक्षण को काफी गंभीरता से ले रहे हैं. “मुझे नई पीढ़ी के लोगों से काफी उम्मीदें हैं. वह वन्यजीवन को काफी महत्व देते हैं और इसका संरक्षण करते हैं,” उन्होंने कहा.

मीर मानती हैं कि लोगों को वन्य जीवों के महत्व के बारे में बताना काफी महत्वपूर्ण है. इससे उनमें संरक्षण करने की भावना जगेगी.

सांप को पकड़कर जंगल में छोड़ती आलिया मीर। तस्वीर- वाइल्डलाइफ एसओएस

सांप को पकड़कर जंगल में छोड़ती आलिया मीर. तस्वीर - वाइल्डलाइफ एसओएस

बतौर महिला, जीव-जंतुओं के संरक्षण का कैसा रहा अनुभव?

वन्यजीव को बचाने का मतलब आए दिन उनके संपर्क में आना. ऐसे समय में एक महिला के प्रति आसपास के लोगों का व्यवहार भी काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

“अव्वल तो लोगों को यकीन ही नहीं होता कि एक महिला किसी खतरनाक जानवर को काबू में कर सकती हैं,” उन्होंने बताया.

“मुझे लगता है कि लोगों का एक महिला संरक्षणकर्ता के प्रति व्यवहार जंगली जानवर से भी अधिक मुश्किलें पैदा करता है. ऐसे वक्त में यह मुश्किल और चुभती है जब मेरा पूरा ध्यान जानवर की सुरक्षा करना होता है. वह जानवर इलाके में कई लोगों को कई तरह से नुकसान पहुंचा चुका होता है और उसे बचाना कम ही लोग चाहते हैं,” वह कहती हैं.

यह काम कश्मीर के लिए और भी मुश्किल है, क्योंकि यहां न तो मौसम साथ देता है, न ही यहां की पहाड़ी धरती इस काम के लिए आसान है. राजनीतिक माहौल में अस्थिरता की वजह से काम और मुश्किल होता चला जाता है, मीर कहती हैं.

(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर तस्वीर: भालू को बचाने की कोशिश करतीं आलिया मीर. तस्वीर - वाइल्डलाइफ एसओएस